शनिवार, 21 जनवरी 2023

पानी से घिरे रहते हैं और फिर भी प्यासे रहते हैं

 

    पानी से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलनपानी पत्रक

पानी से घिरे रहते हैं और फिर भी प्यासे रहते हैं

बांग्लादेश जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिए दुनिया के सबसे कमजोर देशों में से एक है। यह पहले से ही नियमित और गंभीर प्राकृतिक खतरों का सामना करता है: उष्णकटिबंधीय चक्रवात, नदी का कटाव, बाढ़, भूस्खलन और सूखा। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की व्यापक श्रेणियां जो बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों (देश का 32% हिस्सा और लगभग 35 मिलियन लोगों का घर ) को प्रभावित करेंगी, वे हैं तापमान और वर्षा के पैटर्न में परिवर्तन, समुद्र के स्तर में वृद्धि, चक्रवातों की आवृत्ति और तीव्रता में परिवर्तन, तूफान की वृद्धि, नदी और मिट्टी की लवणता में परिवर्तन। समुद्र के स्तर में वृद्धि का प्रभाव अधिक खतरनाक है। खारा पानी धीरे-धीरे तटीय भूमि को डुबो देता है, फसलों और घरों को नष्ट कर देता है और इसे पीने वालों के लिए बीमारी लाता है। अतिरिक्त नमक उच्च रक्तचाप का कारण बन सकता है, जिससे लोगो में स्ट्रोक, दिल के दौरे और गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है।

पिछले कुछ दशकों में तटीय बांग्लादेश में मिट्टी, भूजल और सतही जल का लवणता स्तर बढ़ रहा हैतटीय क्षेत्र समतल है। यहां तक कि अगर पानी एक मीटर भी बढ़ जाता है, तो इससे 17 फीसदी जमीन को नुकसान पहुंचेगा। समुद्र के शीर्ष पर खारा पानी नीचे बैठ जाता है, जिससे भूजल की लवणता भी बढ़ रही है.  विशेसग्यों का यह भी मानना है कि ऊपरी गंगा में पानी के घटते प्रवाह के कारण भी लवणता बढ़ रही है। एक नीति संस्थान, बांग्लादेश सेंटर फॉर एडवांस्ड स्टडीज, के कार्यकारी निदेशक और जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ अतीक रहमान ने कहाबांग्लादेश के तटीय जिलों - खुलना, सतखिरा, और बागेरहाट - में सतह का अधिकांश पानी इतना खारा हो गया है कि इसे अब पीने या अन्य घरेलू उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।“ वहां के कुछ इलाकों में लगभग 70 प्रतिशत निवासी दूर के तालाबों में पानी पर निर्भर हैं, और दूर से पानी लाने का बोझ महिलायों को उठाना पड़ता है. हाल के सालों में लोग पीने के पानी के लिये, बरसात के मौसम में बर्षा जल छत के टैंकर में इक्कठा  कर रखते हैं या फिर मीठा पानी काफी ज्यादा दामों पर खरीदते हैं. सरकार ने भी लोगों के घर की छत पर वर्षा जल संचयन के लिए टैंक स्थापित किये है




( यह चित्र, बाएं से दायें - वर्ष 2017 में सतखिरा,खुलना और बागेरहाट जिलो में, खारेपन को दिखाता है)

प्राकृतिक स्रोतों में लवणता के कारण क्षेत्र में नलकूप से पानी खींचना उपयुक्त नहीं हैं और खारे पानी का शुध्ध्करण कर मीठा करना एक महंगा तरीका है. तटीय क्षेत्र में 1,000 मिलीग्राम प्रीति लीटर की सीमा की तुलना में 4,400 मिलीग्राम प्रति लीटर (mg/L)  नमक की मात्रा पायी जाती है। एक एकल रिवर्स ऑस्मोसिस जल शोधन प्रणाली की लागत 3 मिलियन बांग्लादेशी टका (लगभग $35,000) है। पीएसएफ फिल्टर्स भी  सरकार द्वारा पीने के पानी की आपूर्ति के लिए लगाये गये थे . उनमें से अधिकांश बेकार या प्राकृतिक आपदाओं से नष्ट हो गए हैं. इसलिए,  वर्षा जल संचयन अभी भी एक कम लागत में प्रभावी तरीका है।

बांग्लादेश कृषि विकास निगम की लघु सिंचाई सूचना सेवा इकाई द्वारा 2018 के एक अध्ययन, 'दक्षिणी क्षेत्र के भूजल में खारे पानी की घुसपैठ प्रदान करना' से पता चला है कि खारे पानी बंगाल की खाड़ी से भूजल स्रोतों में भी प्रवेश कर रहा था। अप्रैल-मई 202 में समुद्र से करीब 200 किलोमीटर दूर नरैल जिले के लोहागढ़ में मधुमती नदी में खारा पानी मिला था।

बांग्लादेश सरकार के मृदा संसाधन विकास संस्थान द्वारा 2017 के एक अध्ययन में पाया गया कि समुद्र के पास की नदियों में लवणता का स्तर काफी बढ़ गया है, और लंबे समय तक बना रहता है। इसने कहा कि मिट्टी की लवणता भी 2005-2015 से 10 वर्षों में 7.6 से 15.9 भागों प्रति हजार (पीपीटी) तक बढ़ी है। स्वीकृत स्तर 0.4 से 1.8 पीपीटी है।

सूत्रों का कहना है कि बरिसाल संभाग की 11.7 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में से 386,870 हेक्टेयर अत्यधिक लवणीय है. पटुआखली, भोला, पिरोजपुर और बरिसाल जिलों की नदियों में भी लवणता बढ़ गई है।

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल, बांग्लादेश के जलवायु वित्त विश्लेषक एम जाकिर हुसैन खान ने कहा कि दक्षिण-पश्चिम तट पर 11 जिलों के 64 उपजिलों में लगभग पांच मिलियन सीमांत लोगों को प्रभावित करने वाले चक्रवात आइला की भी जल संकट में भूमिका है। उन्होंने कहा कि मिट्टी की लवणता ने वनस्पति को भी खतरनाक स्तर तक कम कर दिया है, और मछलियों सहित जलीय जानवर बढ़ती लवणता के कारण नष्ट हो रहे हैं।

अमेरिकी भूभौतिकीय संघ की एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि 2050 तक, समुद्र के बढ़ते स्तर - जो स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता को प्रभावित करते हैं - के व्यापक प्रभाव होंगे और देश भर में लगभग 1.3 मिलियन लोगो के पलायन की स्तिथि उत्पन्न हो सकती है. आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र के अनुसार, पिछले दशक में प्राकृतिक आपदाओं से हर साल लगभग 700,000 बांग्लादेशियों को विस्थापित किया गया है। बांग्लादेश सेंटर फॉर एडवांस स्टडीज के कार्यकारी निदेशक डॉ अतीक रहमान ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण आजीविका का नुकसान, विशेष रूप से कृषि में, इस विस्थापन का मुख्य चालक है।

 बांग्लादेश के दक्षिण-पश्चिम तट में पानी की समस्या को हल करने के लिए स्थानीय नागरिकों की एक जल समिति कई वर्षों से काम कर रही है। जल समिति सरकार से जो मुख्य मांगें कर रही है, उनमें शामिल हैं: राष्ट्रीय जल नीति और राष्ट्रीय जल प्रबंधन योजना में पेयजल की लवणता को शामिल करना; प्रत्येक प्रभावित गाँव में कम से कम एक तालाब खोदें; सभी के लिए नमक रहित पीने योग्य पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करना; और कृषि और घरेलू उद्देश्यों के लिए मीठे पानी की आपूर्ति।

(सन्दर्भ –वर्ल्ड एशिया पसिफ़िक,यूनाइटेड न्यूज़ बांग्लादेश ,रिलीफ वेव ,अर्थ जर्नलिज्म नेट वर्क )

 

 

पानी पत्रक ( 112-20 जनवरी 2023 ) जलधारा अभियान (समतामूलक पानी-पर्यावरण समिति) 221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्र शंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com

 

 

 

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बुधवार, 11 जनवरी 2023

ज्यादा अम्लीय होते साफ पानी (Fresh Water) की झीलों पर मंडरा रहे खतरों से वैज्ञानिक चिंतित, संकट गहराया

 

          पानी से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलनपानी पत्रक

ज्यादा अम्लीय होते साफ पानी (Fresh Water) की झीलों पर मंडरा रहे खतरों से वैज्ञानिक चिंतित, संकट  गहराया

 

 

जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया में चरम मौसमी घटनाएं बढ़ रही हैं. इसमें वायु प्रदूषण की वजह से ग्लोबल वार्मिंग, महासागरों का अम्लीयकरण, अम्लवर्षा या ऐसिड रेन जैसी परिघटनाओं में इजाफा होने लगा है. इन सब के बीच साफ पानी की झीलों पर मडंरा रहे खतरे ने वैज्ञानिकों को एक चिंता में डाल दिया है. पाया जा रहा है कि दुनिया में साफ पानी के तंत्र, खास तौर पर साफ पानी की झीलें और ज्यादा अम्लीय होते जा रहे हैं और इससे यहां पाए जाने वाले पौधों और यहां की मछलियों सहित अन्य जीवों की आवासीयत कम होती जा रही है.



(अम्लीय वर्षा )

वायुमंडल में कार्बनडाइऑक्साइड के बहुत ज्यादा होने से जो अम्लीयकरण होता है, वह अम्लवर्षा से अलग होता है. अम्लवर्षा सल्फरडाइऑक्साइड और नाइट्रोजन की ऑक्साइड से होती है. ये गैसें जीवाश्म ईंधन की उपयोग की वजह से वायुमंडल में ज्यादा मात्रा में आ जाती हैं

अमेरिका के नेशनल ओशियानिक एंड एटमॉस्फिरिक एडमिस्ट्रेशन के ग्रेट लेक्स एनवायर्नलमेंट के रिसर्च इकोलॉजिस्ट रीगन एरेरा कहना है कि रासायनिक बदलाव चीजों के बर्ताव बदल देते हैं जिसमें खाद्य जाल (फ़ूड चैन) भी शामिल है. उनके प्रोजेक्ट का लक्ष्य पिछले कई सालों में पांच बड़ी झीलों में कार्बन डाइऑक्साइड और पीएच स्तरों की निगरानी करना है. ये सुपीरियर, मिशिगन, हूरोन, ऐर और ओन्टारियो झीले हैं.

वैज्ञानिक अब एक सेंसर नेटवर्क बनाने पर काम कर रहे है जिससे वे पानी के रसायनशास्त्र की बेहतर तरह से निगरानी कर सकें. यह उन्होंने मिशिगन के एलपीना के पास थंडर बे नेशनल मरीन सैंक्चूरी में लगाए हैं. इनमें से एक पानी की गहराई तक कार्बनडाइऑक्साइड का दबाव और दूसरा पीएच का मापन करता है. इस क्षेत्र के 11137 वर्ग किलोमीटर में अलग अलग गहराइयों में पानी के नमूने जमा किए जा रहे हैं.

महासागरों में वायुमंडल से कार्बनडाइऑक्साइड अवशोषित करने की एक प्रक्रिया होती है. वे वायुमंडल की अतिरिक्त कार्बनडाइऑक्साइड भी अवशोषित कर लेते हैं जिससे उनका अम्लीयकरण होता है. यही वजह है कि मानवीय गतिविधियों के कारण वायुमंडल में जा रही बहुत सारी कार्बनडाइऑक्साइड महासागरों में जाती है जिससे मूंगा की चट्टाने और अन्य महासागरीय जीवन को खतरा हो रहा है.

 जहां शोधकर्ताओं का मानना है कि महासागरों में ऐसा होने से वहां विलुप्त होने की वजह से विनाश की स्थिति तो नहीं होगी, लेकिन फिर भी सागरीय जीवन में बड़े बदलाव देखने को जरूर मिल रहें/सकते हैं. कम्प्यूटर प्रतिमानों के आधार पर किए गए अध्ययन बता रहे हैं कि ऐसा ही कुछ साफ पानी की झीलों में भी हो रहा है.

 

लेकिन इस बारे में जानकारी हासिल करने के लिए बहुत ही कम कार्यक्रम या अध्ययन किए जा रहे हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि इसका मतलब यह नहीं है कि साफ पानी की झीलें तैरने के लिहाज से भी असुरक्षित हो रही हैं. हम इन झीलों को किसी एसिड की झीलों में बदलता नहीं पा रहे हैं. उनका कहना है कि इंसानों की वजह से हो रहे इन बदलावों की गंभीरता को हम अभी समझ नहीं रहे हैं.



वास्तव में वैज्ञानिक कह रहे हैं कि धीरे धीरे यह एक बड़े प्रभाव में बदलने लगेगा. साफ पानी का पारिस्थितिकी तंत्र महासागरों के तंत्र से बहुत अलग होता है. इसके जीवों की संवेदनशीलता भी अलग और ज्यादा होती है. थोड़ा सा भी बदलाव उनके लिए घातक हो सकता है. दुनिया की कई झीलों का भी ऐसा ही हाल है. खासतौर पर बर्फीले इलाकों के पास की झीलों में जरूरत से ज्यादा पानी बह कर पहुंचने से वहां के तंत्र को प्रभावित कर रहा है.

( साभार –वैज्ञानिक चेतना )


पानी पत्रक (
111-10 जनवरी 2023) जलधारा अभियान, 221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्र शंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com

 

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