भारत की बोतल बंद पानी इंडस्ट्री पर एक नजर
1.
औसत
घरेलू पानी (ड्रिंकिंग वाटर, इसमें
शामिल है) की मांग 2000 में
85 लीटर प्रति व्यक्ति प्रति दिन (एलपीसीडी) से बढ़कर क्रमशः 2025 और 2050 तक 125 एलपीसीडी
और 170 एलपीसीडी
हो जाएगी।
2. बोतल बंद पानी की बिक्री में बडोतरी- ट्रेड प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया के अनुसारए भारत में पैकेज्ड ड्रिंकिंग वॉटर बॉटल का बाजार 2020 में 36000 करोड़ रूपये का आँका गया था ,अब 2023 के अंत तक इसके 60 बिलियन डॉलर यानि 60000 करोड़ रुपए (एक्सचेंज @82.39 रु) तक पहुंचने की उम्मीद है .
3.
अनुसंधान
और विश्लेषण फर्म स्टेटिस्टा की रिपोर्ट के अनुसार 2021 में
भारत की वार्षिक बोतलबंद पानी की खपत 23,605 मिलियन
लीटर थी, जो 2026 तक 27,444.7 मिलियन लीटर तक पहुंच जाएगी। ये आंकडे खपत के हैं और इस में बिना बिका माल शामिल नहीं है।
4.
22 मार्च 2021 को विश्व जल दिवस पर जारी संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट से पता चलता है। भारत मूल्य के हिसाब से बोतलबंद पानी का 12वां सबसे बड़ा और 2021 में
मात्रा के हिसाब से 14वां सबसे बड़ाउपभोक्ता था।
5.
यह पानी
पीता कौन
है- 2019 में अनुमान लगाया गया कि 12.2 प्रतिशत, शहरी परिवार अपनी पीने के पानी की जरूरतों के लिए बोतलबंद पानी पर निर्भर हैं, जो 10 साल
पहले 2.7 प्रतिशत
था। बाहर
से आने वाले टूरिस्टों की बड़ती संख्या इस में शामिल नहीं है जबकि वो भी बोतल बन्द पानी को ही प्राथमिकता देते है।
6.
रिटेलर
का प्रॉफिट मार्जिन 30 से 55 प्रतिशत प्रति बोतल होता है ।
7.
भारतीय
मानक ब्यूरो (बीआईएस) के साथ पंजीकृत, पैकेज्ड पेयजल में कारोबार करने के लिए 6,000 से अधिक लाइसेंसशुदा बॉटलर्स हैं। इस संख्या में गैर - ब्रांडेड और अपंजीकृत बॉटलर्स शामिल नहीं हैं।
8. प्रमुख ब्रांड्स- बिसलेरी ,किनले ,अकुँफिना ,बेली,हिमालयन ,किंगफ़िशर ,क़ुआ ,मानिकचंद ओक्स्यरीच,टाटा वाटर प्लस ,रेल नीर , भारतीय बाज़ार के प्रमुख ब्रांड्स हैं .
9. बाज़ार में कंपनियों की हिस्सेदारी &
10. बोतलों के वज़न के अनुसार बाज़ार मे हिस्सेदारी (2018) &
14.
औसतन पैकेज्ड
ड्रिंकिंग वॉटर बेचने वाला एक सिंगल बॉटलर हर घंटे 5,000 से 20,000 लीटर भूजल निकालता है। जादातर
मामलो में उद्योग व्यवहारिक रूप से मुफ्त में पैसा कमा रहा है। क्यों कि बाटलिंग कम्पनियां सरकार को पानी निकालने के लिए एक छोटा उपकर ही भुगतान करती हैं। उदाहरण के लिए जयपुर के पास काला डेरा में कोका कोला कम्पनी ने 2000 से 2002 यानी की तीन साल में सिर्फ पांच हजार रूपये से कुछ ही अधिक भुगतान किया ।
15.
बॉटलर्स निकाले गए भूजल के 65 प्रतिशत से अधिक का उपयोग करने का दावा करते हैं। इससे भूजल की बर्बादी कम से कम 35 प्रतिशत तो
होती ही है।
16. कीमत कौन चुकाता है - बोतलबंद पानी के लिए पानी निकालने से उस क्षेत्र में भूजल की कमी हो जाती है। जहां से पानी निकाला जा रहा है। उदाहरण के लिएए कोका-कोला द्वारा बोतलबंद पानी और अन्य पेय के लिए पानी निकालने से भारत में 50 से अधिक भारतीय गांवों में पानी की कमी हो गई ।
बोबोतल बंद पानी की बड़े पैमाने पर खपत का पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पानी को पैकेज करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली बोतलों को बायो-डीग्रेड होने में 500 से 1,000 साल से अधिक का समय लगता है.
o अगर इन्हें जलाया जाता है, तो वे जहरीले धुएं का उत्पादन करती हैं।
o
दुनिया
भर में बोतलबंद पानी की खपत में 1980 के दशक में प्लास्टिक या पैट की बोतलों का उत्पाद बाजार में आने के बाद बहुत तेजी आयी जबकी सिर्फ प्लास्टिक की बोतलों के उत्पादन हर साल 50 मिलियन
बैरल पेट्रोलियम तेल का उपयोग करता है जिसमें अंतिम उत्पाद को बाजार तक पहुंचाने के लिए आवश्यक जीवाश्म ईंधन और ग्रीनहाउस गैसों की उत्सर्जन लागत शामिल नहीं है।
o
अनुमान
है कि एक लीटर बोतलबंद पानी को पैक करने में करीब तीन लीटर पानी खर्च होता है। यह भूजल स्तर को कम करने और डाउनस्ट्रीम जल आपूर्ति को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
o
पानी
की बॉटलिंग प्रक्रिया सालाना 2.5 मिलियन
टन कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में छोड़ती है।
o
डिस्पोजेबल
पानी की बोतल का कचरा समुद्र में बहता है और हर साल 1.1 मिलियन समुद्री जीवों को मारता है
17. अभी भी ऐसे लोग हैं- जिन्हें पीने का साफ पानी नहीं मिल रहा है। भारत में , बोतलबंद पानी उद्योग का राजस्व 40300 करोड़ रु से अधिक होने का अनुमान लगाया गया है।जबकि यूनिसेफ इंडिया की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में 15 शहरों में 50 मिलियन लोगों के पास सुरक्षित , किफायती पेयजल तक पहुंच नहीं है ,
o 2018 की वाटरएड रिपोर्ट के अनुसारए भारत की 1.3 बिलियन
आबादी में से लगभग 163 मिलियन
लोगों, यानि 10 में से एक से अधिक को अपने घर के पास साफ पानी की सुविधा नहीं है। दूर से पानी लाने के बाबजूद 91 मिलियन
लोगों (जनसंख्या का 6प्रतिशत) को सुरक्षित पानी की सुविधा नहीं है।
o रमेश चंदप्पा, पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय ,में राज्य मंत्री ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह बात कही कि देश में कुल जनजातीय आबादी के 26.66 प्रतिशत के पास पीने के पानी के सुरक्षित स्रोत तक पहुंच नहीं है ।
o नीतिआयोग ने 2018 में बताया कि 2030 तक 40 प्रतिशत भारतीयों के पास पीनेका पानी नहीं होगा
o
यदि इस धन को सार्वजानिक पेयजल प्रणाली पर खर्च कर
दिया
जाए तो साफ पानी तक पहुंच के बिना लोगों की संख्या को काफी कम कर सकते हैं।
18. हमारा मानना -- स्वास्थ्य के लिए सुरक्षीत बोतल बंद पानी एक मिथक हो सकता है क्यों कि बोतल बंद पानी जो सामान्य नल के पानी से जादा सुरक्षित होने का दावा करता है वो स्वयं में संदिग्ध है। सेण्टर फॉर एनवायमेन्ट और दुनिया के कई देशों में हुई स्टेडीज ये बतलाती है।
भा भारत में बोतल बंद पानी के बढ़ते बाजार से भारत में जल एवं जल-वितरण पर कॉरपोरेट नियंत्रण तेजी से बढ़ रहा है।इसे रोकना ही होगा | प्लाचीमाड़ा (केरल ), कालाडेरा (जयपुर- राजस्थान) और मेह्न्दीगंज (बनारस- उतरप्रदेश ) में चले आंदोलनों के कारण, इन जगहों के बॉटलिंग प्लांट्स को बंद होना पड़ा.
(संदर्भ-- maximize market research, statista, mint, business wire, money control, research and market.com)