गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024

जलवायु न्याय, नदियों और समाज' पर

काठमांडू संकल्प पत्र

विश्व सामाजिक मंच. 2024 का सम्मेलन, नेपाल की राजधानी , काठमांडू में 15-19 फरवरी 2024 के बीच "एक और दुनिया संभव है" के स्लोगन के साथ, सम्पन्न हुआ .प्रतक्ष्य दर्शियों के मुताबिक, पांच दिवसीय सम्मलेन में 92 देशों के 1,252 से अधिक संगठनों ने व्यक्तिगत रूप से और वस्तुत, 30,000 लोगों ने सक्रिय रूप से ने  भाग लिया।

 

इसमें बहुत सारे मुद्दों पर सत्र हुए.16,17 और 18 फरवरी 2024 को  'जलवायु न्याय, नदियों और समाज' पर, तीन दिन के सत्रों में व्यापक  बातचीत हुयीं और एक संकल्प पत्र बनाया गया और पारित हुआ. जिस पर सभी प्रीतिभागिओं ने हस्ताक्षर कर निम्नलिखित संकल्प लिये  ----

१. हम अपनी नदियों को जीवित इकाईओं के रूप में जीवन, आजीविका, अर्थव्यवस्था, संस्कृति और सभ्यता का अभिन्न अंग मानते हुए उन्हें विनम्रतापूर्वक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं । 

२. हम स्वीकार करते हैं कि हमारी नदियों और इन पर निर्भर हमारे समाज आज वैश्विक औपनिवेशिक-पूंजीवादी और नवउदारवादी लूट के चलते गंभीर संकट और खतरों का सामना कर रही हैं। हम समझते हैं कि जलवायु संकट भी इन आर्थिक राजनैतिक तथा सामाजिक अन्याय की प्रक्रियाओं की ही देन है।

३. हम बांधो- बैराजों, तटबंधों, बड़ी पनबिजली परियोजनाओं, अनियोजित वाणिज्यिक रेत खनन, नदी तट विकास के नाम पर बन रहे रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट, सीवेज और अपशिष्ट डंपिंग और बड़ी विनाशकारी परियोजनाओं के निर्माण के विरोध में हैं। हम मानते हैं कि इन परियोजनाओं से नदी के पारिस्थितिक तंत्र का वाणिज्यीकरण, निजीकरण, विनियोजन और शोषण के साथ और साथ में तटवर्ती नदी समाजों का विस्थापन होता आया है इसलिए हम इनके पक्ष में नहीं! 

४. हमारा मानना ​​है कि सरकारी और कॉर्पोरेट समर्थित नीतियों ने लोगों और उनके पारिस्थितिक तंत्र के साथ-साथ अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम तटवर्ती समुदायों के बीच अलगाव और संघर्ष पैदा किया है, जिससे गाँव, ज़िले, राज्य और राष्ट्रों की प्रशासनिक सीमाओं के पार दोष और अविश्वास का माहौल पैदा हो गया है।

५. हम प्रमुख नदी/जल प्रबंधन व्यवस्थाओं की पूर्ण विफलता को पहचानते हैं और इनका खड़ंन करते हैं क्यों कि ये मात्र औपनिवेशिक और आर्थिक इंजीनियरिंग की तकनीकी पर आधारित हैं, और जल विज्ञान, भू-आकृति विज्ञान, समाज शास्त्र और नदी पारिस्थितिकी तंत्र के पारंपरिक ज्ञान की अनदेखी करते आये हैं।

अतः हम यह संकल्प लेते हैं कि हम निम्न मूल्यों और दिशाओं को आधार मानते हुए कार्य करेंगे:

१. हमारी नदियाँ मुक्त बहने वाली और निर्मल जीवित इकाइयां हैं - हमारी प्राकृतिक दुनिया और समाज का एक अमूल्य हिस्सा मानते हुए हम अपनी नदियों की रक्षा करेंगे।

२.हम राजनीतिक/प्रशासनिक सीमाओं से उपर उठ कर - वर्ग, जाति, लिंग और जातीयता के विभाजन से परे नदियों के विविध मूल्यों की एक साझा समझ का निर्माण करंगे।

३.सबसे अधिक हाशिए पर रहने वाले तटीय समुदायों और उनके ज्ञान को साझा नदी संवादों के केंद्र में रखकर एक बहु-अनुशासनात्मक लेंस के माध्यम से हमारे नदी इतिहास और समकालीन चुनौतियों और खतरों पर खुद को शिक्षित करेंगे।

४.हम अपनी नदियों के वस्तुकरण, विनियोजन, शोषण और प्रदूषण, और ऐसी परियोजनाओं का जो नदियों और नदी मूल्यों को खतरे में डालती हैं - के खिलाफ आवाज़ उठाएंगे। 

५. सबसे पहले कमजोर छोटे किसानों और भूमि धारकों, कारीगरों, मछुआरों, महिलाओं और अन्य हाशिए पर रहने वाले समूहों के हितों को ध्यान में रखते हुए सततता, समानता, न्याय के सिद्धांतों के साथ हमारे तटवर्ती उपयोगकर्ता अधिकारों को सुरक्षित करेंगे।

६. संकटग्रस्त नदियों, नदी के पारिस्थितिकी तंत्र और निर्भर तटवर्ती आजीविकाओं को पुनर्जीवित और नवीनीकृत करने पर निर्माण कार्य करेंगे!

७. न्यूनीकरणवादी इंजीनियरिंग-आधारित जल ज्ञान और जलवायु समाधानों को अस्वीकार कर, जलवायु न्याय के समग्र दृष्टिकोण के आधार पर प्रकृति और समुदाय केंद्रित जल और नदी प्रशासन की वकालत करेंगे। 

८. विस्थापित और वंचित तटवर्ती समुदायों के लिए उचित मुआवजा और पुनर्वास प्रदान करने के लिए राज्य से जवाबदेही लेनेके लिए संघर्ष करेंगे।

तीन दिन के इन सत्रों को ,कोशी नवनिर्माण मंच,नर्मदा बचाओ आंदोलन,नदी घाटी मंच,कोशी विक्टिम सोसाइटी,काली गंडकी बचाओ अभियान,डिगो विकास संस्थान,पथ,चितवन कचहरी,नदी बचाओ जीवन बचाओ,गंगा मुक्ति आंदोलन,लखदेई बचाओ संघर्ष समिति एवम कुछ अन्य संस्थाओं ने मिल कर आयोजित किया . भारत  और नेपाल के साथ साथ इन सत्रों में श्री लंका, इंडोनेशिया , थाईलैंड , फ्रांस के साथी भी आये और अपनी बात रखी .

सभी लोगों ने मिलकर तय किया कि हम लोग पीपल्स डायलॉग लगातार आयोजित करेंगे, विशेषकर भारत नेपाल के बीच, और आगे इसे अन्य नदियों के संबंधित लोगों के साथ जोड़ते जायेंगे।

(सन्दर्भ –एन ए पी एम-व्हाट्सउप ग्रुप,सोम्म्या दत्ता,राहुल यादुका ,महेंद्र यादव से बातचीत  )

  पानी से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलन पानी पत्रक 

पानी पत्रक ( 141-29 फरवरी  2024 ) जलधारा अभियान, 221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com

 

शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2024

समाज और सरकार की प्राथमिकता हो

नर्मदा को स्वच्छ और अविरल रखना

( मध्य भारत की प्रसिद्ध नदीं का महोत्सव - नर्मदा जयंती 16 फरवरी 2024 को मनाई जा रही है . इस अवसर पर एक सामायिक टिपण्णी )

 

(जबलपुर में नर्मदा 2021)

नर्मदा किनारे छोटे- बङे शहरों का मलमुत्र नर्मदा में गिरता है।बरगी से भेङाघाट के बीच करीब  जबलपुर शहर के 25 हजार घरों का गंदा पानीसैकड़ों अस्पताल का गंदगी, रेलवे और कार वाशिंग का गंदा पानी 60 नालों के माध्यम से गंदगी  हर दिन नर्मदा में मिल रहा है।इन नालों से 30 लाख लीटर प्रति घंटा गंदा पानी नर्मदा में मिल रहा है ।जबकि 4.5 लाख प्रति घंटा नगर निगम के वाटर ट्रिटमेंट की क्षमता है अर्थात 25.5 लाख लीटर प्रति घंटा पानी बीना ट्रिटमेंट के नदी में मिलता है।जबलपुर में नर्मदा नदी को प्रदूषित करने में शहर के आस-पास करीब 100-150 डेयरियां है, जहां से निकलने वाला मवेशियों का मलमुत्र नर्मदा की सहायक नदी परियट और गौर में गिरता है।केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट 2015 के अनुसार मंडला से भेङाघाट के बीच 160 कि.मि., सेठानी घाट से नेमावर के बीच 80 कि.मि. और गुजरात में गरूरेशवर से भरूच के बीच नर्मदा प्रदुषित है।आश्चर्य की बात है कि जिस आबादी का मलमुत्र ढोने के लिए नर्मदा अभिशप्त है।वे सभी शहर पेयजल के लिए नर्मदा पर ही निर्भर है।

बूँद- बूँद नर्मदा जल का दोहन:-

राजस्थान में बाड़मेर से लेकर गुजरात के सौराष्ट्र और मध्यप्रदेश के 35 शहरों और उद्योगों की प्यास बुझाने की जिम्मा नर्मदा पर है।इंदौर, भोपाल समेत मध्यप्रदेश के 18 शहरों को नर्मदा का पानी दिया जा रहा है।नर्मदा के पानी को क्षिप्रा, गंभीर, पार्वती, ताप्ती नदी सहित मालवा, विंध्य और बुंदेलखंड तक पानी पहुंचाने  की योजना बनी है।

गंगा-यमुना की तरह नर्मदा ग्लेशियर से निकलने वाली नदी नहीं है।यह मुख्य रूप से वर्षा और सहायक नदियों के पानी पर निर्भर है।नर्मदा की कुल 41सहायक नदियां है।सहायक नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में जंगलों की बेतहाशा कटाई के चलते ये नदियाँ अब नर्मदा में मिलने की बजाय बीच रास्ते में सुख रही है।केंद्रीय जल आयोग द्वारा गरूडेश्वर स्टेशन से जुटाये गये वार्षिक जल प्रवाह के आंकड़ों से नर्मदा में पानी की कमी के संकेत मिलते हैं।

खनन से खोखली होती नर्मदा:-

नर्मदा घाटी में बाक्साइट और रेत जैसे खनिजों की मौजूदगी भी नर्मदा के लिए संकटों की वज़ह बनी है।नर्मदा के उदगम वाले क्षेत्रों में 1975 में बाक्साइट का खनन शुरू हुआ था।जिसके कारण वनों की अंधाधुंध कटाई हुईं।जहां बालको कम्पनी ने 920 हैक्टर क्षेत्र में खुदाई कर डाली है वहीं हिंडालको ने 106 एकड़ क्षेत्र में खनन किया था।अब खनन कार्य पर रोक लगा दी गई है परन्तु तबतक पर्यावरण को काफी क्षति पहुंच चुकी थी।दिसंबर 2016 में डिंडोरी जिले में बाक्साइट के बङे भंडार का पता चला था।इसका पता लगते ही भौमिकी एवं खनकर्म विभाग ने जिले के दो तहसीलों में बाक्साइट की खोज अभियान शुरू कर दिया था। इस खनन का विरोध होने के कारण मामला शांत है।अपर नर्मदा बेसिन के डिंडोरी और मंडला जिले में वनस्पति और जानवरों का जीवाश्म बहुतायत में पाये जाते हैं।दूसरी ओर अवैध रेत खनन माफिया  नर्मदा नदी को खोखला कर दिया है। 

(राज कुमार सिन्हा)

(बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ)

  पानी से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलनपानी पत्रक 

पानी पत्रक ( 140-16 फरवर 2024 ) जलधारा अभियान, 221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com

 


 


शनिवार, 10 फ़रवरी 2024

तमिलनाडु में ग्रामीण

 बंदरगाह विस्तार के प्रस्ताव के खिलाफ लड़ रहे हैं

दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु में हजारों ग्रामीण गौतम अडानी के स्वामित्व वाले बंदरगाह के विस्तार के प्रस्ताव के खिलाफ लड़ रहे हैं।

ग्रामीण, जिनमें से अधिकांश मछली पकड़ने से अपनी जीविका चलाते हैं, कहते हैं कि कट्टुपल्ली (बंगाल की खाड़ी के तट के साथ तिरुवल्लूर जिले में स्थित गाँव) में बंदरगाह का विस्तार से उनकी भूमि जलमग्न हो जाएगी और उनकी आजीविका पर कहर आ जायेगा ।

133.50 हेक्टेयर का यह बहुउद्देश्यीय बंदरगाह - मूल रूप से भारतीय समूह लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) द्वारा निर्मित किया गया था जिसे कि जून 2018 में अदानी पोर्ट्स द्वारा अधिग्रहित कर लिया गया

कंपनी ने बाद में तट के किनारे की भूमि के कुछ हिस्सों पर दावा करके इसे 18 गुना से अधिक, क्षेत्र में विस्तारित करने का प्रस्ताव रखा.  संशोधित मास्टर प्लान में 2,472.85 हेक्टेयर (हेक्टेयर) क्षेत्र शामिल है, जिसमें 133.50 हेक्टेयर का मौजूदा क्षेत्र और 761.8 हेक्टेयर की अतिरिक्त सरकारी भूमि, 781.4 हेक्टेयर की निजी भूमि और 796.15 हेक्टेयर में  समुद्री सुधार कर, जमीन समुद्र से ली जाएगी .

 प्रस्तावित विस्तार परियोजना में अंतर्ज्वारीय क्षेत्र, नमक क्षेत्र, मैंग्रोव और तटीय विस्तार क्षेत्र आते हैं।

तट पर स्थित कम से कम 100 कस्बों और गांवों के मछुआरों का कहना है कि इससे उनके काम पर गंभीर असर पड़ेगा। यहां पाई जाने वाली मछली की किस्मों की संख्या पहले ही काफी कम हो गई है। किसी भी प्रकार के विस्तार से इसकी आबादी और कम हो जाएगी,” क्षेत्र की एक मछुआरिन राजलक्ष्मी का कहना है।

प्रस्तावित परियोजना क्षेत्र के परिणामस्वरूप पुलिकट झील के आसपास की 45 बस्तियों के मछुआरों की आजीविका  भी प्रभावित होगी। कट्टुपल्ली कुप्पम गांव, जो तब विस्थापित हो गया था जब एलएंडटी समूह ने पहली बार बंदरगाह का निर्माण किया था, उसे फिर से बेदखल होने का खतरा है क्योंकि नई योजना उनके वर्तमान गांव को कवर करती है। यदि परियोजना पूरी हो जाती है तो कुछ अन्य गांवों को भी संभावित समुद्री कटाव के कारण विस्थापन का खतरा है

 जबकि कंपनी के मास्टर प्लान के अनुसार, विस्तार से बंदरगाह की कार्गो क्षमता 24.6 मीट्रिक टन से बढ़कर 320 मीट्रिक टन प्रति वर्ष हो जाएगी और नए रेल और सड़क नेटवर्क विकसित होंगे जो क्षेत्र में व्यापार को बढ़ावा देंगे।

विस्तार को पर्यावरणविदों के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है , जो दावा करते हैं कि इस योजना से बड़े पैमाने पर तटीय क्षरण होगा और जैव विविधता का नुकसान होगा, विशेष रूप से स्वदेशी मछली प्रजातियों और क्षेत्र में पाए जाने वाले केकड़ों, झींगा और छोटे कछुओं का । पर्यावरणविद् मीरा शाह ने कहा, कि यह क्षेत्र हाल के वर्षों में बड़े पैमाने पर पर्यावरण प्रदूषण और तटीय कटाव का सामना कर रहा है। उनका दावा है कि यह विस्तार , देश की दूसरी सबसे बड़ी खारे पानी की झील “पुलिकट” को भी नष्ट कर सकता है।

फिलहाल, तट की जमीन , झील और बंगाल की खाड़ी के बीच, एक बाधा के रूप में कार्य करता है जिससे कि समुद्र का पानी झील तक नहीं पहुँचता.यदि यहां अधिक निर्माण किया जाता है, तो तट और सिकुड़ जाएगा, "जिससे झील तक समुद्र  का पानी पहुँच सकता है”.

बंदरगाह विस्तार के खिलाफ विरोध, पहली बार 2018 के अंतिम महीनों  में ही शुरू हो गया  था  और आगामी वर्षों में रुक-रुक कर जारी रहा . पर्यावरण और वन मंत्रालय ने परियोजना स्थल पर विस्तार के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए एक ईएसी की स्थापना की । समिति को अपनी यात्रा के दौरान इलाके के निवासियों, मछुआरों और कई कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन का सामना करना पड़ा। उन्होंने प्रस्तावित विस्तार पर अपना विरोध व्यक्त करते हुए साइट का दौरा करने वाली पर्यावरण मूल्यांकन समिति (ईएसी) को एक ज्ञापन भी सौंपा था

सितंबर 2023 में आंदोलन फिर से तेज हो गया, जब राज्य सरकार ने परियोजना को पर्यावरण मंजूरी देने की प्रक्रिया शुरू की, जिससे विस्तार कार्य शुरू करने का मार्ग प्रशस्त होता है . उसी महीने, राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भारी विरोध के बीच परियोजना के लिए,05सितम्बर 2023,को एक अनिवार्य सार्वजनिक सुनवाई स्थगित करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

हालाँकि, अदानी पोर्ट के एक प्रवक्ता ने आन्दोलनकारीओं के आरोपों को खारिज कर दिया और उन्हें गलतबताया। उन्होंने कहा “ विस्तार का विरोध करने वाले व्यक्ति अपने दावों को किसी प्राथमिक डेटा के आधार पर सत्यापित नहीं करते “

कंपनी का कहना है कि वह समुद्र के कुछ हिस्सों को रेत से भरकर,जमीन  पुनः प्राप्त करेगी और उसे बंदरगाह क्षेत्र में शामिल करेगी। इसकी योजना समुद्र के एक हिस्से को गहरा करने और उसके चारों ओर एक समुद्री दीवार बनाने की भी है ताकि अधिक जहाज तट के साथ चल सकें।

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इससे क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास में हाइड्रोजियोलॉजी के प्रोफेसर डॉ इलंगो लक्ष्मणन का दावा है कि भारत के पूर्वी तट - और विशेष रूप से तमिलनाडु तट - में बंदरगाह निर्माण के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिदृश्य नहीं है, विस्तार की तो बात ही छोड़ दें।

उन्होंने कहा, "इससे तटीय स्थलाकृति बाधित होगी और अधिक समुद्री कटाव होगा।"

कंपनी के एक वरिष्ठ प्रवक्ता ने दावे को खारिज कर दिया और कहा कि क्षेत्र में समुद्री कटाव को केवल बंदरगाह के निर्माण से नहीं जोड़ा जा सकता है।

कुछ उद्योग विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि विस्तार योजना को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इससे राज्य की अर्थव्यवस्था को लाभ होगा और अधिक रोजगार मिलेगा।, हिंदुस्तान चैंबर ऑफ कॉमर्स के पूर्व अध्यक्ष, वल्लियप्पन नागप्पन ने कहा, "विस्तार से अधिक जहाज आएंगे, जिससे इसके आर्थिक पैमाने में वृद्धि होगी।हालांकि, कंपनी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि स्थानीय लोगों को अच्छी तरह से मुआवजा दिया जाए और [यदि आवश्यक हो] ठीक से स्थानांतरित किया जाए, उनकी आजीविका पर कोई प्रभाव डाले बिना,” श्री नागप्पन ने कहा।

कट्टुपल्ली में, बंदरगाह अधिकारी स्थानीय समुदाय को मुफ्त चिकित्सा सहायता और नौकरी का वादा करके लुभा रहे हैं।

अदानी पोर्ट्स के वरिष्ठ अआधिकारी (जिन्होंने नाम नहीं बताया ) ने कहा, "हम बंदरगाह क्षेत्र के आसपास के ग्रामीणों और समुदायों के संपर्क में हैं और वे इस परियोजना और नौकरियां पाने में बहुत रुचि रखते हैं।"

जबकि , प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे ऐसे सभी मामलों में सावधानी बरत रहे हैं।

हम परियोजना के खिलाफ अपनी लड़ाई में कुछ भी सामना करने के लिए तैयार हैं। हमारी आजीविका की हर कीमत पर रक्षा की जानी चाहिए,”पुलिकट की एक मछुआरिन ने कहा।

उनमें से एक ने कहा, "अगर वे हमें दवाएं देना चाहते हैं और हमारी जमीन लेना चाहते हैं, तो हम ऐसा नहीं होने देंगे।"

प्रदर्शनकारियों ने तमिलनाडु सरकार पर उनके हितों की रक्षा के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने का आरोप लगाया।

 लोगों का कहना है कि राज्य चुनावों से पहले, मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने बार-बार वादा किया था कि वह विस्तार योजना को रद्द कर देंगे, लेकिन 2021 में सत्ता में आने के बाद से कुछ नहीं हुआ है.

विरोध अभियान में महिलायें अग्रिम पंक्ति में हिम्मत के साथ खड़ीहैं .

(सन्दर्भ –न्यूज़ क्लिक ,बी बी सी न्यूज़ )

 पानी से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलनपानी पत्रक           

पानी पत्रक (139-10 फरवरी 2024 जलधारा अभियान, 221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com



पाकिस्तान की कृषि बर्बाद हो रही है: आर्थिक सर्वेक्षण ने सरकारी नीतियों की विफलता को उजागर किया

पाकिस्तान का कृषि क्षेत्र ढह रहा है - और इसका दोष पूरी तरह से शहबाज शरीफ सरकार की विनाशकारी नवउदारवादी नीतियों पर है। संघीय बजट से पहले 9 ज...