गुरुवार, 30 मई 2024

पिछले 5 दशकों में, मीठे पानी के प्रवासी मछलियों में,

आई 81 प्रतिशत की गिरावट

एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि पिछले कुछ दशकों में मीठे पानी में पाई जाने वाली प्रवासी मछलियों की आबादी तेजी से घट रही है। इनमें सैल्मन, ट्राउट, ईल और स्टर्जन जैसी मछलियां शामिल हैं, जो अपने जीवन के विभिन्न चरणों में लम्बी यात्राएं करती हैं।

यह प्रवासी मछलियां अपने अस्तित्व के लिए मीठे पानी की धाराओं, नदियों पर निर्भर करती हैं। अपने प्रवास के दौरान इनमें से कुछ मछलियां लंबी यात्राएं करती हैं। यह छोटी धाराओं से लेकर बड़ी नदियों तक कभी-कभी तो पूरे महाद्वीप को पार कर उसी धारा में लौट आती हैं, जहां वे पैदा हुई थी।

बता दें कि बहामास के निकट अपने प्रजनन स्थल तक पहुंचने के लिए यूरोपीय ईल दो वर्षों में करीब 10,000 किलोमीटर तक की यात्रा कर सकती है। ऐसे में इन मछलियों की आबादी में आती गिरावट न केवल मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा रही है, साथ ही इसके चलते लाखों लोगों की खाद्य सुरक्षा और जीविका पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं।

साफ पानी में पाई जाने वाली प्रवासी मछलियों पर जारी लिविंग प्लैनेट इंडेक्स 2024 के नवीनतम अपडेट के मुताबिक 1970 के बाद से मीठे पानी में पाई जाने वाली प्रवासी मछलियों की आबादी में 80 फीसदी से अधिक की गिरावट आई है। मतलब की इनमें हर साल औसतन 3.3 फीसदी की दर से गिरावट आ रही है।

यह इंडेक्स और उससे जुड़ी रिपोर्ट इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन), जूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ लंदन, वर्ल्ड फिश माइग्रेशन फाउंडेशन, द नेचर कन्जर्वेंसी, वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फण्ड और वेटलैंड्स इंटरनेशनल द्वारा जारी की गई है। इस इंडेक्स में मीठे पानी में पाई जाने वाली प्रवासी मछलियों की 284 प्रजातियों को ट्रैक किया गया है।

इस बारे में जारी रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के सभी क्षेत्रों में इन प्रवासी मछलियों की आबादी में गिरावट आ रही है। लेकिन दक्षिण अमेरिका और कैरीबियाई क्षेत्रों में यह सबसे तेजी से घट रही है, जहां पिछले 50 वर्षों में इन प्रजातियों की आबादी में 91 फीसदी की गिरावट आई है। गौरतलब है कि यह वो क्षेत्र है जहां दुनिया में मीठे पानी का सबसे बड़ा प्रवास होता है, लेकिन बढ़ती इंसानी महत्वाकांक्षा के चलते जिस तरह नदियों बांध, खनन और धाराओं को मोड़ने के लिए चलाई जा रही परियोजनाओं के चलते पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाया जा रहा है वो इन मछलियों की आबादी में गिरावट की वजह बन रहा है।

वहीं यूरोप में मीठे पानी में पाई जाने वाली प्रवासी मछलियों की आबादी में गिरावट का यह आंकड़ा 75 फीसदी दर्ज किया गया है। उत्तर अमेरिका से जुड़े आंकड़ों पर गौर करें तो इनकी आबादी में 35 फीसदी की जबकि एशिया और ओशिनिया में 28 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि अफ्रीका में इन मछलियों की क्या स्थिति है, वो आंकड़ों की कमी के चलते स्पष्ट नहीं है।

कौन है इनकी आबादी में आती गिरावट का कसूरवार

रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन दशकों से इन मछलियों की आबादी में गिरावट की प्रवृत्ति लगातार बनी हुई है। यदि वैश्विक स्तर पर इनकी प्रजातियों के रुझान देखें तो जहां 65 फीसदी प्रजातियों में गिरावट आई है, वहीं 31 फीसदी में वृद्धि हुई है।

इतिहास पर नजर डालें तो यह मछलियां सदियों से प्राकृतिक चुनौतियों से जूझने के बाद भी अपने अस्तित्व को बचाए रखने में सफल रहीं हैं। लेकिन जिस तरह इंसानी गतिविधियों के चलते इनका प्रवासन बाधित हो रहा है उसका खामियाजा इनकी गिरती आबादी के रूप में सामने आ रहा है।

दरअसल, यह प्रवासी प्रजातियां इतनी लंबी दूरी तक यात्राएं करती हैं, ऐसे में उन्हें अपने लंबे सफर के दौरान मानव निर्मित अनगिनत बाधाओं और खतरों से निपटना पड़ता है। ऊपर से बदलती जलवायु और प्रदूषण नई चुनौतियां पैदा कर रहा है।

अपनी यात्रा के दौरान इन जीवों को आराम और भोजन की जरूरत होती है, लेकिन जिस तरह प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं। उसकी वजह से इन्हें पर्याप्त आहार नहीं मिल पाता। ऐसी स्थिति में थकान और भूख से उनकी मौत हो सकती है।

आंकड़ों की माने तो आज मीठे पानी की करीब एक तिहाई प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। हालांकि यह खतरा प्रवासी मछलियों पर कहीं ज्यादा है। देखा जाए तो इनके प्रवास के लिए धाराओं, नदियों का उन्मुक्त प्रवाह जरूरी है, लेकिन जिस तरह इन नदियों को नुकसान हो रहा है, बांध जैसी बाधाएं खड़ी की जा रही हैं और प्रवाह में गिरावट आ रही है, वो इनके अस्तित्व के लिए खतरा बन रहा है। उदाहरण के लिए यूरोप में नदियों के उन्मुक्त बहाव की राह में बांध जैसी करीब 12 लाख बाधाएं मौजूद हैं।

इसी तरह नदियों में बढ़ता प्रदूषण, इनका बेतहाशा होता शिकार और जलवायु में आता बदलाव भी इन प्रजातियों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। नदियों में पानी की उपलब्धता का समय और मात्रा भी इनके प्रवासन के पैटर्न को प्रभावित कर रहा है।

इनकी गिरावट के लिए जिम्मेवार अन्य कारकों में शहरों और उद्योगों से निकला गन्दा पानी और खेतों से बहकर आने वाला पानी जिम्मेवार है, जिसमें हानिकारक कीटनाशक मौजूद होते हैं। इसी तरह जलवायु में आते बदलावों के चलते इनके आवास और पानी की उपलब्धता पर असर पड़ रहा है, जो इनके लिए खतरा बन रहा है।

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने अपने एक अन्य विश्लेषण में कहा है कि वैश्विक स्तर पर ताजे पानी में पाई जाने वाली मछलियों की करीब एक चौथाई प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। यह खतरा प्रवासी प्रजातियों पर कहीं ज्यादा है। वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि इसके लिए प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसे कारण जिम्मेवार हैं।

ऐसे में रिपोर्ट में इनकी निरंतर निगरानी के साथ-साथ नदियों के उन्मुक्त बहाव को बहाल करने पर जोर दिया है। इनके संरक्षण के प्रयासों पर ध्यान देना भी जरूरी है। साथ ही इन प्रजातियों के प्रवास के दौरान रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर करना भी महत्वपूर्ण है। जलवायु परिवर्तन जो आज पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है, उसके प्रभावों को सीमित करने के लिए उत्सर्जन पर लगाम जरूरी है। इसी तरह बढ़ते प्रदूषण और नदियों की जल गुणवत्ता में आती गिरावट से निपटना न केवल इन प्रजातियों बल्कि स्वयं इंसानों के अस्तित्व के लिए भी बेहद जरूरी है।

                                                                                                ( सन्दर्भ --डाउन टू एअर्थ ,वैज्ञानिक  चेतना  )

पानी से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलनपानी पत्रक                 

पानी पत्रक ( 152-31 मई  2024 ) जलधारा अभियान, 221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com

 


बुधवार, 22 मई 2024

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में पाया गया कि पर्यावरण पत्रकारिता पर हमला हो रहा है

 पिछले 15 वर्षों में 44 लोग मारे गए

  3 मई, 2024 को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर यूनेस्को द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में जलवायु और पर्यावरण पत्रकार बढ़ती हिंसा का सामना कर रहे हैं, पिछले 15 वर्षों में 44 पत्रकार मारे गए हैं।

(पर्यावरण पत्रकार डोम फिलिप्स और स्वदेशी विशेषज्ञ ब्रूनो परेरा की मौत पर 2022 में न्याय के लिए स्वदेशी लोग और मानवाधिकार कार्यकर्ता एक मार्च में शामिल हुए। फ़ोटोग्राफ़: आंद्रे पेननर/ए)

 यह दिन हर 3 मई को एक विशेष थीम के साथ मनाया जाता है। 2024 में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की थीम "ए प्रेस फॉर द प्लैनेट: जर्नलिज्म इन द फेस ऑफ द एनवायर्नमेंटल क्राइसिस" है।

 जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की हानि और प्रदूषण के वैश्विक पर्यावरणीय संकट, दुनिया भर में अरबों लोगों के जीवन को प्रभावित करते हैं और दुनिया इसे कैसे समझती है, इसमें पर्यावरण पत्रकारिता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। राज्य और निजी अभिनेताओं, साथ ही आपराधिक समूहों को उनकी रिपोर्टिंग को चुप कराने के प्रयास में पत्रकारों को डराने, परेशान करने या यहां तक कि शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाने के लिए जाना जाता है।

 3 मई, 2024 को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर यूनेस्को द्वारा जारी अपनी नई रिपोर्ट प्रेस एंड प्लैनेट इन डेंजर में, ऐसे उदाहरणों का खुलासा किया गया जिसमें पर्यावरणीय मुद्दों पर रिपोर्टिंग करने वाले कम से कम 749 पत्रकारों और समाचार मीडिया आउटलेट्स को हत्या, शारीरिक हिंसा का निशाना बनाया गया।  

2-4 मई 2024 को सैंटियागो, चिली में 2024 विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस वैश्विक सम्मेलन में लॉन्च की गई रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि समस्या वैश्विक है, दुनिया के सभी क्षेत्रों के 89 देशों में हमले हो रहे हैं।

 रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में पर्यावरण पत्रकारों को बढ़ती हिंसा का सामना करना पड़ रहा है, पिछले 15 वर्षों में लगभग 44 पत्रकार मारे गए हैं, जिनमें से केवल 5 को दोषी ठहराया गया है - लगभग 90% की चौंकाने वाली दंड दर। हत्याएं एशिया और प्रशांत क्षेत्र में सबसे अधिक 30 मामलों के साथ हुईं, जबकि लैटिन अमेरिका और कैरेबियन में 11 मामले दर्ज किए गए।

रिपोर्ट के अनुसार, 129 देशों के सर्वेक्षण में शामिल कुल 905 पत्रकारों और एजेंसियों में से 70 प्रतिशत से अधिक ने बताया कि उन पर हमला किया गया, धमकी दी गई या दबाव डाला गया। जिन पत्रकारों पर हमला किया गया, वे मुख्य रूप से पर्यावरणीय विरोध, खनन, भूमि संघर्ष, वनों की कटाई, चरम मौसम की घटनाओं, प्रदूषण, जीवाश्म ईंधन उद्योग और पर्यावरणीय क्षति जैसे विषयों पर रिपोर्टिंग कर रहे थे। पर्यावरणीय विरोध, खनन और भूमि संघर्ष को कवर करने वालों को सबसे अधिक हमलों का सामना करना पड़ा। रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि हाल के वर्षों में हमले दोगुने से भी अधिक हो गए हैं, जो 2014-2018 में 85 से बढ़कर 2019-2023 के बीच 183 हो गए हैं। रिपोर्ट से पता चलता है कि कम से कम 194 हमले पर्यावरणीय विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुए, जिनमें से 89 के पीछे पुलिस और सैन्य बल थे।

शारीरिक हमलों के अलावा, सर्वेक्षण में शामिल एक तिहाई पत्रकारों ने कहा कि उन्हें सेंसर किया गया था, और लगभग आधे (45%) ने कहा कि वे पर्यावरण को कवर करते समय खुद पर सेंसर लगा रहे थे, हमला होने के डर से, अपने स्रोतों के उजागर होने के डर से, या किसी कारण से। जागरूकता कि उनकी कहानियाँ संबंधित हितधारकों के हितों से टकराती हैं।

 अध्ययन में पाया गया कि ये हमले पुलिस, सैन्य बलों, सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों और स्थानीय अधिकारियों जैसे राज्य तंत्र की ओर से हुए। इसमें कहा गया है, "निजी अभिनेता - निष्कर्षण उद्योग कंपनियां, आपराधिक समूह, प्रदर्शनकारी और स्थानीय समुदाय - भी हमलों के लिए जिम्मेदार थे।"

 यूनेस्को के महानिदेशक, ऑड्रे अज़ोले ने कहा, “वर्तमान पर्यावरण संकट के बारे में विश्वसनीय वैज्ञानिक जानकारी के बिना, हम कभी भी इस पर काबू पाने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। और फिर भी इस विषय की जांच करने और जानकारी की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए हम जिन पत्रकारों पर भरोसा करते हैं, वे पूरी दुनिया में अस्वीकार्य रूप से उच्च जोखिमों का सामना कर रहे हैं, और जलवायु संबंधी दुष्प्रचार सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर चल रहा है। विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर, हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा और दुनिया भर में पत्रकारों की सुरक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहरानी चाहिए।

 फरवरी (2024) में इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट (आईपीआई) द्वारा जारी यह  व्यापक रिपोर्ट, जलवायु और पर्यावरण पत्रकारिता अंडर फायर: जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय गिरावट के स्वतंत्र और स्वतंत्र कवरेज के लिए खतरे, इसके विभिन्न पहलुओं पर गहराई से नज़र डालती है। और, रिपोर्ट प्रेस की स्वतंत्रता के अंतर्निहित खतरों को भी उजागर करती है

(सन्दर्भ –ग्राउंड जीरो,द जकार्ता  पोस्ट ,द डेली मिरर द गार्जयन, )

पानी से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलन –पानी पत्रक                 

पानी पत्रक ( 151-22 मई 2024 ) जलधारा अभियान, 221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com

 




पाकिस्तान की कृषि बर्बाद हो रही है: आर्थिक सर्वेक्षण ने सरकारी नीतियों की विफलता को उजागर किया

पाकिस्तान का कृषि क्षेत्र ढह रहा है - और इसका दोष पूरी तरह से शहबाज शरीफ सरकार की विनाशकारी नवउदारवादी नीतियों पर है। संघीय बजट से पहले 9 ज...