गुरुवार, 25 जुलाई 2024

ऐतिहासिक अदालती फैसले में इक्वाडोर की नदी में

 

“प्रदूषण” नदी के अधिकारों का उल्लंघन माना गया

दक्षिण अमेरिकन देश , इक्वाडोर की राजधानी ,क्विटो, की एक अदालत ने 5 जुलाई 2024 को  फैसला सुनाया कि शहर से होकर बहने वाली नदी “माचांगारा” के पास, जीवित इकाई के अधिकार हैं, और  इस तरह,इसमें  “प्रदूषण” नदी के अधिकारों का उल्लंघन करता है। उसमे होने वाले प्रदुषण के लिए, क्विटो की नगरपालिका सरकार जिम्मेदार है.

अदालत ने माना कि चूंकि नदी एक  जीवित इकाई  है, इसलिए यह इक्वाडोर के संविधान के तहत अधिकारों से सम्पन्न है । संविधान का अध्याय 7 स्थापित करता है कि प्रकृति के पास खुद के , संरक्षण, संवर्धन और बहाली का अधिकार है। इसका मतलब है कि "सभी/कोई भी ,व्यक्ति, समुदाय, लोग या राष्ट्र प्रकृति के इन  अधिकारों को लागू करने के लिए जिम्मेदार सार्वजनिक अधिकारियों को बुलाने में सक्षम हैं।" इक्वाडोर के संवैधानिक न्यायालय ने पहले 2022 में माना था कि संविधान के अध्याय 7 के तहत सभी नदियाँ संरक्षित हैं।

माचांगारा नदी और उसके किनारे ट्रीटमेंट प्लांट

माचांगारा नदी, एंडीज पहाड़ों में बहुत ऊपर से शुरू होती है लेकिन जब यह, 2.6 मिलियन की आबादी वाले शहर क्विटो से होकर गुजरती है, तो शहर,  माचांगारा में सभी तरह के अपशिष्ट और प्रदूषक डालता है,  जिससे कि जल के “ प्राकर्तिक उपचार की लगभग पूरी तरह कमी” जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है । ग्लोबल अलायंस फॉर द राइट्स ऑफ नेचर के अनुसार, "नदी, नालों और पहाड़ियों से आने वाले टन कचरे को बहा ले जाती है।" नदी में औसतन 2% ऑक्सीजन रहती  है, जिससे जलीय जीवन का पनपना मुश्किल हो जाता है। लैटिन अमेरिका और उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में, निवासियों को स्वच्छ पर्यावरण के लिए संवैधानिक अधिकार हैं, लेकिन इक्वाडोर उन कुछ देशों में से एक है जो प्राकृतिक प्पर्यावरण  के अधिकारों को भी  मान्यता देते हैं कि उन्हें खराब या प्रदूषित न किया जाए।

 न्यायाधीश ने फैसला सुनाया कि क्विटो ने नगरपालिका से नदी में आने वाले 98% अपशिष्ट जल का उपचार करने में विफल होने के कारण, नदी के अधिकारों का उल्लंघन किया है । स्वीकृत संरक्षण आदेश के तहत, नगरपालिका को नदी की स्वच्छता के लिए योजना बनानी और लागू करनी है । अदालत ने यह भी कहा कि क्विटो नगरपालिका  स्वच्छता  प्रयासों को पूरा करने के लिए नागरिक समाज के साथ काम करने के लिए बाध्य है।

नगरपालिका ने 7 जुलाई 2024  को एक स्वच्छता  परिशोधन रणनीति को मंजूरी दी जो तीन नए बड़े अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों के निर्माण पर केंद्रित है।

साथ ही नगरपालिका ने प्रांतीय न्यायालय में भी अपील दायर की है। जिसका मतलब है कि वे फैसले से असहमत हैं और इसे पलटना चाहेंगे। लेकिन अपील पर निर्णय लिए जाने तक, नगरपालिका को मौजूदा न्यायालय के आदेश का पालन करना होगा।

 स्वच्छ माचांगारा नदी के लिए प्रदर्शन 

किटो कारा नामक समूह की ओर से शिकायत करने वाले कार्यकर्ताओं ने इस फैसले को "ऐतिहासिक" बताया।

बोलीविया, मैक्सिको और कोलंबिया सभी के पास प्रकृति के लिए समान अधिकार हैं । न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और बांग्लादेश में नदियों को भी अधिकार दिए गए हैं।

( सन्दर्भ –कॉमन ड्रीम्स ,यूरो न्यूज़ , जूरिस्ट लीगल न्यूज़ ,द गार्डियन ,बी बी सी )

  पानी से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलनपानी पत्रक           

पानी पत्रक (161-26 जुलाई 2024 ) जलधारा अभियान, 221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com

 



रविवार, 21 जुलाई 2024

मध्य प्रदेश: ‘जल जीवन मिशन’ में हर घर पानी तो नहीं पहुंचा

 लेकिन ब्लैकलिस्ट कंपनी को फायदा ज़रूर पहुंचा

'जल जीवन मिशन' के तहत हर घर नल से जल पहुंचाने के दावों की पोल खोलती पहली किश्त के बाद यह दूसरी किश्त बताती है कि किस तरह ज़मीनी स्तर पर इस योजना को लागू करने में धांधली चल रही है.

 जल जीवन मिशन के तहत हर घर नल से जल पहुंचाने के दावों के बीच पहली किश्त में  सामने आया कि जिन गांवों के हर घर तक नल का जल पहुंचाने के दावे सरकारी कागजातों में किए गए हैं, वहां ज़मीनी हकीकत विपरीत है.

 इस दूसरी किश्त में समझिए मध्य प्रदेश में इस योजना का फर्जीवाड़ा. विभिन्न जिलों की 15 ग्रामीण योजनाओं के दस्‍तावेजों की पड़ताल से स्‍पष्‍ट हुआ कि बजट का बड़ा हिस्‍सा खर्च हो जाने के बावजूद इनमें से अधिकतर योजनाएं सालों से लंबित है, योजनाओं को लागू करने वाली कंपनी भी ब्लैकलिस्ट हो गई, और इस तरह योजना का लाभ नागरिकों को नहीं मिल पा रहा है.

टेंडर की शर्तें बेमानी: वर्षों से लंबित योजनाएं

धार जिले की कुक्षी तहसील के 4 गांवों चिखल्‍दा, गेहलगांव, कड़माल और पिपल्या की योजनाओं को टेंडर की शर्तों के अनुसार 6 माह में पूर्ण हो जाना था, लेकिन वे पिछले 4 सालों से प्रगतिरतदिखाई जा रही हैं. सरकारी पत्र व्‍यवहार की भाषा में प्रगतिरत का अर्थ किसी योजना का अधूरा होना होता है.

इसी प्रकार, बड़वानी जिले के ठीकरी विकासखंड के जिन 11 गांवों के दस्‍तावेज हमने जुटाए हैं, उनमें से 8 गांवों- नंदगांव, बड़सलाय, मेनीमाता, मोहीपुरा, रणगांव, सेमल्दा, हतोला और कोयडिया- की योजनाएं वर्ष 2021 से लेकर अभी तक अपूर्ण हैं. दस्‍तावेजों में 3 गांवों बांदरकच्‍छ, उमरदा और टिटगारिया में जल प्रदाय शुरू जरूर कर दिया गया है लेकिन इन गांवों में भी योजना का काम बाकी है और योजना के संबंध में ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों की शिकायतें बनी हुई हैं.

ग्राम टिटगारिया और बांदरकच्‍छ में ग्रामीणों ने घटिया निर्माण कार्य की शिकायतें कीं. इन गांवों में जगह-जगह पानी की पाइपलाइन फूटी हुई हैं. ग्राम रणगांव की ओवरहेड टंकी लीकेज है.

बड़वानी ज़िले के ग्राम रणगांव की ओवरहेड टंकी, जिसमें रिसाव हो रहा है. (फोटो: राजेंग्र जोशी/द वायर)

 इसके बावजूद मध्‍यप्रदेश के विधानसभा चुनाव (नवंबर 2023) के दौरान ग्राम पंचायतों को विधिवत सौंपे बिना ही इन अधूरी योजनाओं से जल प्रदाय प्रारंभ कर दिया गया. अब जल प्रदाय करने वाले कर्मचारी के वेतन की जिम्‍मेदारी न तो ठेकेदार ले रहे हैं और न ही ग्राम पंचायतें.

योजना निर्माण का उल्‍टा क्रम

पेयजल प्रदाय की इन योजनाओं का सबसे आवश्‍यक घटक है- पानी. लेकिन, देखा गया है कि योजनाकारों के लिए प्राथमिकता पानी नहीं बल्कि योजना निर्माण है, इसीलिए सबसे पहले पाइपलाइन बिछाकर घरों तक नीले पाइप पहुंचा दिए जाते हैं. कई स्‍थानों पर ओवरहेड टंकियों का निर्माण भी कर दिया जाता है और उसके बाद पानी ढूंढ़ने की कवायद की जाती है.

योजना निर्माण के इस उल्‍टे क्रम के कारण कुछ ऐसे स्‍थानों पर पर्याप्‍त जल उपलब्‍धता सुनिश्चित नहीं हो पाई है जहां भूजल आधारित योजना है. योजना का निर्माण लगभग पूरा होने के बाद ग्राम टिटगारिया (बड़वानी) में 3 ट्यूबवेल खोदे गए. संयोग से एक ट्यूबवेल में पानी निकल आया, अन्‍यथा योजना केवल दिखावे की रह जाती.

ठेकेदार फर्म काली सूची में लेकिन काम वही कर रही है

बड़वानी और धार जिलों में जल जीवन मिशन संबंधी योजनाओं के निर्माण से जुड़ी गुजरात की ठेकेदार फर्म मेसर्स जय खोडियार इंटरप्राइजेजको लोक स्‍वास्‍थ्‍य यांत्रिकी विभाग द्वारा 4 अप्रैल 2023 को काली सूची में डाल दिया गया. फर्म को काली सूची में डालने का कारण टेंडर की शर्तों के विरुद्ध निर्माण कार्यों में फर्म की वर्षों की लेट-लतीफी को बताया गया है.

गुजरात की फर्म मेसर्स जय खोडियार को काली सूची में डाले जाने संबंधी आदेश की प्रतिलिपि.

लेकिन, शासकीय पत्राचार से स्‍पष्‍ट होता है कि अधिकारियों ने बड़े बेमन से इस फर्म को काली सूची में डाला. कार्य के अनुपात में पर्याप्‍त धनराशि प्राप्‍त कर लेने के बावजूद योजनाओ को वर्षों तक लटकाकर रखने वाली फर्म को अधिकारी डेढ़ वर्षों तक पत्राचार के माध्‍यम से योजना का काम पूरा करने की समझाइश और चेतावनी देते रहे. मजे की बात यह है कि विभाग द्वारा लिखे गए दर्जनों पत्रों का ठेकेदार फर्म ने किसी भी रूप में जवाब देना जरुरी नहीं समझा. फर्म कार्यालय और निर्माण में लगे कर्मचारियों द्वारा अधिकारियों के फोन तक रिसीव नहीं किए गए. विभागीय पत्रों की अवहेलना के कारण जिला कलेक्‍टर (बड़वानी) द्वारा फर्म के जिम्‍मेदार कर्मचारियों को तलब किया गया लेकिन फर्म ने इससे भी परहेज किया.

कार्यपालन यंत्री (बड़वानी) ने 3 फरवरी 2023 को लिखे अपने पत्र में समय से काम पूरा नहीं करने वाली जय खोडियार कंपनी पर क्षमता से अधिक टेंडर हासिल करने का आरोप लगाया है, जबकि यह सवाल विभाग से पूछा जाना चाहिए कि उसने फर्म की वित्तीय एवं तकनीकी क्षमता का सही आकलन क्‍यों नहीं किया?

गुजरात की फर्म मेसर्स जय खोडियार पर क्षमता से अधिक कार्य लेने का आरोप लगाता सरकारी आदेश.

आश्‍चर्यजनक है कि विभागीय पत्राचार में फर्म के किसी भी जिम्‍मेदार व्‍यक्ति का नाम लेने बचा गया है. यहां तक कि पत्रों में कंपनी के किसी कर्मचारी/पदाधिकारी का कोई जिक्र नहीं है. यहां तक कि कंपनी को काली सूची में डाले जाने हेतु आयोजित सुनवाई में मुख्‍य अभियंता के समक्ष उपस्थित हुए कंपनी के प्रतिनिधि का भी नाम जाहिर नहीं किया गया.

इंदौर के जिन मुख्‍य अभियंता ने मेसर्स जय खोडियार इंटरप्राइजेजको काली सूची में डाला उनके क्षेत्राधिकार में धार और बड़वानी दोनों जिले आते हैं, लेकिन आश्‍चर्यजनक है कि धार जिले में ब्‍लैकलिस्‍टेड कंपनी से बड़वानी जिले का अधूरा काम पूरा करवाने हेतु पत्राचार लगातार जारी रहा. यहां तक कि धार जिले की जिन योजनाओं के लिए फर्म को काली सूची में डाला गया, उन्‍हीं योजनाओं को पूरा करने हेतु भी पत्राचार इस वर्ष भी जारी रहा.

कंपनी का फर्ज़ीवाड़ा: अधिकारी सालों तक बेख़बर

ठेकेदार फर्म ने जब न तो समय सीमा में काम पूरे किए और न ही सरकारी पत्रों का सालों तक जवाब दिया तो लोक स्‍वास्‍थ्‍य यांत्रिकी विभाग ने अगस्‍त 2023 में फर्म द्वारा उपयोग किए गए प्‍लास्टिक (एचडीपीई) पाइपों की गुणवत्ता पता करने का निर्णय लिया. प्‍लास्टिक सामग्री की गुणवत्ता का निर्धारण एक सरकारी एजेंसी सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोकेमिकल्‍स इंजीनियरिंग एण्‍ड टेक्नोलॉजी (सीपेट/CIPET) द्वारा किया जाता है.

सीपेट के भोपाल कार्यालय ने सितंबर 2023 में स्‍पष्‍ट किया कि मेसर्स जय खोडियार इंटरप्राइजेज को कोई सीपेट रिपोर्ट जारी नही की गई यानी फर्म द्वारा सरकार को प्रस्‍तुत सीपेट रिपोर्ट फर्जी थी. योजना निर्माण के पूर्व ठेकेदार फर्म को उपयोग किए जाने वाले पाइप की गुणवत्ता संबंधित सीपेट रिपोर्ट संबंधित विभाग में प्रस्‍तुत करना जरुरी होता है, लेकिन अधिकारियों ने इस फर्जीवाड़े को नजरअंदाज किया.

बड़वानी के कार्यपालय यंत्री द्वारा फर्म से सीपेट रिपोर्ट की मूल प्रति, पाइप के बिल और उनके परिवहन के लिए ई-वे बिल की प्रतिलिपि मांगने पर पहले तो फर्म ने 18 सितंबर 2023 को टका सा जवाब दे दिया कि अनुबंध में ये दस्‍तावेज प्रस्‍तुत करने का प्रावधान नहीं है, लेकिन सप्‍ताह भर बाद फर्म ने शपथ पत्र पर स्‍वीकार किया कि उसने विभाग को फर्जी सीपेट रिपोर्ट प्रस्‍तुत की थी और टेंडर में शामिल सारे 14 गांवों में बिछाई गई पाइपलाइन को फर्म अपने खर्च पर बदल देगी. लेकिन, विश्‍वनाथखेड़ा के संजय कुमावत के अनुसार, फर्म ने किसी गांव में दोबारा पाइपलाइन नहीं बिछाई है.

सीपेट रिपोर्ट गलत होने के संबंध में मेसर्स जय खोडियार की स्वीकारोक्ति.

गठजोड़ की आशंका

इन योजनाओं के निर्माण की गुणवत्ता पर निगरानी रखने के लिए अलग एजेंसी से अनुबंध किया जाता है. लेकिन, गुणवत्ताहीन सामग्री के उपयोग का न तो निगरानी एजेंसी को पता चला और न ही अधिकारियों को.

ठेकेदार फर्मों द्वारा सूचना क्रांति के इस युग में फर्जी रिपोर्ट के आधार पर ठेके प्राप्‍त करना, निर्धारित समयसीमा से 4-5 गुना समय में भी परियोजना पूरी नहीं करना, गुणवत्ताविहीन सामग्री का उपयोग किया जाना और पकड़े जाने के बावजूद अधिकारियों द्वारा निजी फर्मो को सालों तक केवल चेतावनी देते रहने की घटना कई सवाल खड़े करती है. इसे साधारण लापरवाही नहीं माना जा सकता है. ऐसी घटनाएं ठेकेदार फर्मों, निगरानी करने वाली एजेंसियों और अधिकारियों के बीच एक गठजोड़ की ओर इशारा करती हैं, जिसकी जांच जरुरी है.

मध्य प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री व राजपुर विधानसभा क्षेत्र (बड़वानी) से विधायक बाला बच्चन जल जीवन मिशन को सिरे से खारिज करते हुए कहते हैं, ‘दर्जन- दो दर्जन गांवों के सैंपल की बात छोड़िए, मेरे क्षेत्र के 87 गांवों में जल जीवन मिशन संबंधी योजनाएं हैं और सारी की सारी योजनाएं फेल हैं. जल जीवन मिशन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुका है. इससे ग्रामीणों को कोई खास फायदा नहीं होने वाला है. वास्‍तव में यह योजना ग्रामीणों के फायदे के लिए नहीं बल्कि केवल भ्रष्‍टाचार करने के लिए ही बनाई गई है.

योजना लागत पर सवाल

ग्राम विश्‍वनाथखेड़ा के उप सरपंच विजय नायक इन योजनाओं की अत्‍यधिक उच्च लागत पर सवाल उठाते हुए उदाहरण देते हैं कि हमारी पंचायत के गांवों में जल जीवन मिशन की योजनाएं उनकी वास्‍तविक लागत से कई गुना महंगी हैं. टिटगारिया गांव की जिस रेट्रोफि‍टिंग योजना की लागत 78 लाख रुपए है, वैसी ही योजना हमारी पंचायत 10 लाख में पूरी कर सकती है.

वे आगे बताते हैं कि हमारी पंचायत ने 2019 में विश्‍वनाथखेड़ा में 7 लाख रुपए में पीवीसी की पेयजल पाइपलाइन डाली थी. ब्‍लैकलिस्‍टेड कंपनी द्वारा बनाई गई नई योजना जगह-जगह टूटी है, लेकिन हमारी पंचायत की योजना 5 सालों बाद आज भी सफलतापूर्वक संचालित हो रही है.

योजना की अत्यधिक लागत पर छतरपुर, शहडोल, अनूपपुर (मध्य प्रदेश) और महोबा जिले (उत्तर प्रदेश) में भी हमसे मिले लगभग हर जन प्रतिनिधि ने हैरानी जताई.

अत्‍यधिक योजना लागत की जानकारी नागरिकों से छिपाने के उद्देश्‍य से ही शायद योजना की जानकारी देने वाले बोर्ड कहीं नहीं लगाए गए हैं, जबकि टेंडर की शर्तों के तहत ऐसे बोर्ड लगाना जरुरी है.

जल जीवन मिशन की योजनाओं की भारी असफलता, ठेकेदार फर्म के प्रति अधिकारियों की सुहानुभूति, निगरानी फर्म की अपने काम में लापरवाही, ठेकेदारों को उनके काम के मुकाबले अधिक भुगतान, जन प्रतिनिधियों द्वारा इन योजनाओं की बढ़ी हुई लागत पर सवाल आदि मामलों पर प्रतिक्रिया जानने के लिए हमने जल जीवन मिशन के जिले से लेकर प्रदेश स्तर तक के प्रमुख अधिकारियों से बातचीत की. लेकिन, उनके द्वारा नपे-तुले जवाब देना या अनभिज्ञता दर्शाना इन योजनाओं की सच्चाई बयान करने के लिए पर्याप्त हैं.

(राजेंद्र जोशी एवं रहमत मंसूरी की रपट की दूसरी किश्त ,वायर हिंदी से साभार )

(राजेंद्र जोशी स्वतंत्र पत्रकार है. रेहमत मंसूरी पानी और ऊर्जा पर शोध करने वाली संस्था मंथन अध्ययन केंद्र (बड़वानी) से जुड़े हैं.)

  पानी से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलनपानी पत्रक           

पानी पत्रक (160-21 जुलाई 2024 ) जलधारा अभियान, 221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com

 



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