उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में संगम के किनारे रेतीली ज़मीन पर बसने वाले अस्थायी महाकुंभ की तैयारियों को देखकर कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि इस पूरी व्यवस्था के लिए सरकार ने अरबों रुपये खर्च किए होंगे। 13 जनवरी 2025 से होने जा रहे महाकुंभ की तैयारियों के शोर-शराबे के बीच यह सवाल उठता है कि इतने बड़े आयोजन और खर्च से सरकार को आखिर क्या हासिल होता है? श्रद्धालु, जो संगम तट पर स्नान करके स्वयं को पवित्र मानते हैं, क्या यह जानते हैं कि प्रयागराज में संगम का पानी कितना स्वच्छ है? गंगा-यमुना का वह पानी क्या स्नान और आचमन के योग्य है?
हाल ही में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने इन सवालों पर योगी सरकार से जवाब मांगा, तो कई बातें उजागर हुईं। यह स्पष्ट हुआ कि महाकुंभ 2025 के दौरान प्रयागराज में गंगा और यमुना का पानी आचमन तो दूर, स्नान
के योग्य भी नहीं रहेगा। एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने 6 नवंबर 2024 को दिए आदेश में कहा कि प्रयागराज में गंगा का जल अब आचमन योग्य नहीं रह गया है। यह भी कहा जा सकता है कि गंगा की सफाई के लिए चलाई जा रही ‘नमामि गंगे’ परियोजना विफल साबित हो रही है और नदी की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।
गंगा-यमुना की
स्थिति और आंकड़े
एनजीटी की विशेष पीठ ने गंगा के प्रदूषण और उसकी सफाई पर समीक्षा करते हुए पाया कि प्रयागराज में करीब 128.28 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रतिदिन) मलजल बिना उपचार के सीधे गंगा में बहाया जा रहा है। शहर से प्रतिदिन 468.28 एमएलडी सीवेज निकलता है, जबकि उपचार की क्षमता सिर्फ 340 एमएलडी है। 25 खुले नाले गंगा और 15 खुले नाले यमुना में सीवेज का गंदा पानी गिरा रहे हैं।
एनजीटी ने पाया कि प्रयागराज में सीवेज शोधन की 128 एमएलडी की कमी है। इस स्थिति में, महाकुंभ के दौरान गंगा में स्नान करने वाले श्रद्धालु अनजाने में प्रदूषित जल में स्नान करेंगे। पीठ में न्यायिक सदस्य जस्टिस सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल ने इस पर असंतोष प्रकट किया। सरकारी वकीलों से कहा गया कि गंगा-यमुना का जल न स्नान के योग्य है, न आचमन के योग्य। लेकिन इस जानकारी को जनता तक पहुंचाने के लिए न तो कोई नोटिस चस्पा किया गया और न ही अखबारों में प्रकाशित किया गया।
पिछली सुनवाई में एनजीटी ने गंगा और यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए एक्शन प्लान मांगा था। लेकिन न तो कोई संतोषजनक जवाब दिया गया और न ही ठोस योजना प्रस्तुत की गई। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय अधिकारी ने बताया कि नगर निगम प्रयागराज पर 9 अगस्त को 129 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था। हालांकि, जब एनजीटी ने पूछा कि यह जुर्माना वसूला गया या नहीं, तो इस पर कोई जवाब नहीं मिला।
चौंकाने वाले तथ्य
एनजीटी की रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। रिपोर्ट के अनुसार, प्रयागराज के 25 अनटैप्ड नालों से 128.28 एमएलडी मलजल गंगा में और 15 अनटैप्ड नालों से यमुना में बहाया जा रहा है। शहर के 10 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में से केवल 9 चालू हैं, लेकिन
उनमें से अधिकांश जल उपचार मानकों का पालन नहीं कर रहे।
गंगा किनारे 11 जिलों के 16 कस्बों में कुल 41 एसटीपी डिज़ाइन किए गए हैं, जिनमें से 6 अब तक चालू नहीं हो सके हैं। 35 एसटीपी में से भी अधिकांश मानकों का उल्लंघन कर रहे हैं।
एनजीटी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सरकार जल्द से जल्द ठोस कदम उठाए। रिपोर्ट में उल्लेख है कि 34 एसटीपी में डिसइन्फेक्शन सिस्टम है, लेकिन
13 एसटीपी क्षमता से अधिक काम कर रहे हैं, जिससे
उनका प्रदर्शन प्रभावित हो रहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक, कानपुर
में बनियापुर का 15 एमएलडी क्षमता वाला एसटीपी तीन साल से तैयार होने के बावजूद चालू नहीं किया गया है। यह कानपुर के सीवेज उपचार में बड़ी बाधा है। फर्रुखाबाद के दो एसटीपी पूरी तरह से बंद हैं, जिससे
वहां का मलजल भी सीधे गंगा में प्रवाहित हो रहा है।
गंगा किनारे डिज़ाइन की गई कुल क्षमता 1337.96 एमएलडी है, लेकिन
उपलब्ध उपयोगिता क्षमता सिर्फ 1116.24 एमएलडी (85.8 फीसदी) है। इसका मतलब है कि सीवेज उपचार में 221.72 एमएलडी का बड़ा अंतर बना हुआ है।
एनजीटी की रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि 41 एसटीपी में से 23 एसटीपी फीकल कॉलिफॉर्म (एफसी) मानकों का उल्लंघन कर रहे हैं। इन एसटीपी से उपचारित पानी में बैक्टीरिया की संख्या अनुमत सीमा से अधिक है, जो जल की गुणवत्ता के लिए घातक है। केवल 12 एसटीपी ही ऐसे हैं जो फीकल कॉलिफॉर्म मानकों का पालन कर रहे हैं।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि 34 एसटीपी में डिसइन्फेक्शन सिस्टम (क्लोरीनेशन) मौजूद है, जो जल को बैक्टीरिया मुक्त करता है। लेकिन 13 एसटीपी अपनी क्षमता से अधिक काम कर रहे हैं, जिससे उनका प्रदर्शन प्रभावित हो रहा है।
गंगा सफाई पर
संशय बरकरार?
एनजीटी के समक्ष पेश की गई सरकार की रिपोर्ट बताती है कि निर्माणाधीन और परीक्षणाधीन 11 एसटीपी के चालू होने से सीवेज उपचार की क्षमता में बढ़ोतरी हो सकती है। लेकिन यह कब तक होगा, इस पर संशय है। गंगा की स्वच्छता के लिए एसटीपी की गुणवत्ता सुधारना, अनटैप्ड
नालों को रोकना और सभी सीवेज का उपचार सुनिश्चित करना अनिवार्य है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में कुल 326 नालों में से 247 नाले अब भी अविकसित (अनटैप्ड) हैं। ये नाले प्रतिदिन 3513.16 एमएलडी गंदा पानी गंगा और उसकी सहायक नदियों में प्रवाहित कर रहे हैं। यह स्थिति न केवल गंगा के प्रदूषण को बढ़ा रही है, बल्कि
पूरे नदी तंत्र की जैव विविधता और जल गुणवत्ता को भी नुकसान पहुंचा रही है।
एनजीटी ने 6 नवंबर 2024 की सुनवाई में यह भी पाया था कि अयोध्या में भी सीवेज प्रबंधन की स्थिति बेहद खराब है। गंगा के प्रदूषण से जूझ रहे अन्य जिलों की स्थिति भी बेहतर नहीं है। बिना उपचारित सीवेज और अविकसित नालों की समस्या इन क्षेत्रों में गंगा और सहायक नदियों को बुरी तरह प्रदूषित कर रही है।
एनजीटी ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वे प्रत्येक जिले के नालों की स्थिति, उनसे उत्पन्न सीवेज की मात्रा और इन्हें सीवेज उपचार संयंत्रों से जोड़ने की योजनाओं का विवरण एक शपथ पत्र के रूप में प्रस्तुत करें। इस शपथ पत्र में निम्नलिखित विवरण मांगे गए हैं:
1- प्रत्येक जिले में मौजूद नालों की वर्तमान स्थिति।
2- नालों से उत्पन्न सीवेज की दैनिक मात्रा।
3- सीवेज उपचार संयंत्रों से जोड़े जाने वाले नालों की योजनाएं।
4- इन योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए भूमि आवंटन, वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता, और समयसीमा।
इस गंभीर स्थिति को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने सख्त रुख अपनाया है। एनजीटी ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वे चार सप्ताह के भीतर इस समस्या से निपटने के फौरी उपायों के साथ हलफनामा दाखिल करें। मामले की अगली सुनवाई 20 जनवरी, 2025 को तय की गई है।
एनजीटी ने यूपी सरकार को स्पष्ट रूप से निर्देश दिया कि शपथ पत्र में सीवेज उपचार संयंत्रों के निर्माण और संचालन की सभी महत्वपूर्ण जानकारियां दी जाएं। साथ ही, यह भी बताया जाए कि गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं।
एनजीटी ने कहा कि गंगा और यमुना में सीवेज का प्रवाह पूरी तरह से बंद होना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि नदी का जल न केवल स्नान योग्य बल्कि पीने योग्य भी हो। इसके अलावा, स्नान
घाटों पर नदी की जल गुणवत्ता को डिस्प्ले बोर्ड के जरिए श्रद्धालुओं को दिखाया और सूचित करना भी अनिवार्य किया जाना चाहिए। महाकुंभ जैसे आयोजन से पहले यह कदम श्रद्धालुओं के स्वास्थ्य और धार्मिक विश्वास की सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
गंगा की स्वच्छता और पुनर्जीवन से जुड़ा मुद्दा भारत की सबसे बड़ी पर्यावरणीय और सांस्कृतिक चुनौतियों में से एक है। आंकड़ों के आधार पर अगर स्थिति का आकलन किया जाए, तो गंगा की वर्तमान स्थिति कई मोर्चों पर गंभीर सवाल खड़े करती है। गंगा के तट पर बसे 97 शहरों में लगभग 45 करोड़ लोग निवास करते हैं। इन शहरों से हर दिन 3,000 मिलियन लीटर प्रदूषित जल गंगा में गिराया जाता है। जबकि गंगा को साफ करने के लिए स्थापित जल शोधन संयंत्रों की क्षमता केवल 1,200 मिलियन लीटर प्रतिदिन है। इसका मतलब है कि गंगा में गिरने वाले गंदे पानी का 60 प्रतिशत हिस्सा बिना शोधन के सीधे नदी में प्रवाहित हो रहा है।
दावा: नहाने लायक
है गंगा का
पानी
गंगा निर्मलीकरण के मामले में एक तरफ जहां एनजीटी ने सरकार की नीति और नीयत पर ढेरों सवाल खड़े किए हैं, वहीं यूपी के प्रदूषण नियंत्रण विभाग ने दावा किया है कि गंगा का पानी नहाने लायक है। विभाग के अनुसार, गंगा का अधिकांश भाग स्नान योग्य जल के मानकों पर खरा उतरता है। इसमें पीएच, घुलित
ऑक्सीजन (डीओ), बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी), फीकल कॉलिफॉर्म (एफसी) और फीकल स्ट्रेप्टोकोकी (एफएस) जैसे बुनियादी मानक शामिल हैं। हालांकि, फर्रुखाबाद
से पुराना राजापुर और कन्नौज से कानपुर के बीच गंगा का जल इन मानकों को पूरा नहीं कर पा रहा है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने यह जानकारी अपनी 22 अक्टूबर, 2024 की रिपोर्ट में दी है, जो नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा 13 सितंबर, 2024 को दिए गए निर्देश के आधार पर तैयार की गई थी। यह रिपोर्ट गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की दिशा में उठाए गए कदमों की स्थिति स्पष्ट करती है।
सीपीसीबी ने 7 अगस्त, 2024 को एनजीटी के समक्ष प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में बताया था कि गंगा बेसिन के अधिकांश हिस्सों में जल गुणवत्ता नहाने योग्य पानी के मानकों को पूरा नहीं करती। रिपोर्ट में गंगा, ब्रह्मपुत्र
और उनकी सहायक नदियों की जल गुणवत्ता का मूल्यांकन किया गया, जिसमें यह पाया गया कि उत्तर प्रदेश में 114 में से 97 स्थान और बिहार में 96 में से सभी स्थान जल गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतरते।
बरेली में तीन नाले रामगंगा में गिरते हैं, जिनका
कुल प्रवाह 31.14 करोड़ लीटर प्रतिदिन और बीओडी लोड 18.8 टन प्रतिदिन (टीपीडी) दर्ज किया गया।
बुलंदशहर में बारह नाले काली नदी में गिरते हैं, जिनका कुल प्रवाह 12.9 करोड़ लीटर प्रतिदिन और बीओडी लोड 20.7 टीपीडी पाया गया।
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों की
स्थिति
उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे 16 शहरों में 41 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) हैं। अप्रैल से जुलाई 2024 के बीच सीपीसीबी की निगरानी में यह पाया गया कि इनमें से केवल 35 एसटीपी सक्रिय थे, जबकि 6 एसटीपी चालू नहीं थे।
एनजीटी ने यह भी कहा है कि गंगा के बिना भारत की सांस्कृतिक विरासत अधूरी है। गंगा नदी को भारतीय संस्कृति में पवित्र माना जाता है और यह अपनी बाढ़भूमि पर निवास करने वाले देश की एक तिहाई जनसंख्या का जीवन-आधार
भी है।
एनजीटी ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह कुंभ मेले के दौरान गंगा की स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए समयबद्ध प्रयास तेज करे। यह भी कहा गया कि गंगा और यमुना में स्नान करने वाले श्रद्धालुओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सीवेज की रोकथाम और जल गुणवत्ता सुधार के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। गंगा का जल केवल श्रद्धालुओं के स्नान के लिए नहीं, बल्कि पीने के लिए भी उपयोग में आता है। ऐसे में सीवेज प्रबंधन और जल शुद्धिकरण के लिए प्रभावी योजनाएं लागू करना नितांत आवश्यक है।
( सन्दर्भ /साभार –सबरंग इंडिया में विजय विनीत का लेख )
पानी पर्यावरण से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलन –पानी पत्रक
पानी पत्रक (193– 1 दिसम्बर 2024) जलधारा अभियान, 221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020, संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com