सोमवार, 27 जनवरी 2025

भारत में मीठे पानी में मिलने वाली मछलियों पर मंडरा रहा है ख़तरा

 

( भारत दुनिया के शीर्ष तीन देशों में से एक है, जिसके पश्चिमी घाट में मीठे पानी की मछली की प्रजातियां एशिया में सबसे ज़्यादा ख़तरे में हैं.)

(एट्रोप्लस कैनेरेन्सिस, जो पश्चिमी घाट पर मौजूद मछली की एक लुप्तप्राय प्रजाति है. यह केवल कर्नाटक में पाई जाती है)

 यह बात एक मशहूर अंतरराष्ट्रीय विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित हुई वैश्विक मूल्यांकन रिपोर्ट में सामने आई है.

इसके मुताबिक़, इंडोनेशिया, भारत और तंज़ानिया (इसी क्रम में) वो तीन देश हैं, जहां मीठे पानी में मौजूद 25 फ़ीसदी जैव विविधता "विलुप्त होने के भारी जोख़िम" का सामना कर रही है.

दक्षिण भारत में मीठे पानी की संकटग्रस्त प्रजातियां बड़ी संख्या में पाई जाती हैं. दक्षिण भारत वो हिस्सा है, जिसके दायरे में महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक के पश्चिमी घाट वाले इलाके़ आते हैं

दरअसल, पश्चिमी घाट को अमेज़न बेसिन, लेक विक्टोरिया (केन्या, तंज़ानिया और युगांडा), लेक टिटिकाका (बोलीविया और पेरू) और श्रीलंका के वेट ज़ोन के समान पाया गया है, 'जहां मीठे पानी में मिलने वाली मछली की वो प्रजातियां अच्छी मात्रा में हैं, जिन पर ख़तरा है.'

इनके अलावा, लेक टिटिकाका, चिली का बायोबियो इलाक़ा और द अज़ोरस (पुर्तगाल) इन सभी जगहों पर भी वो प्रजातियाँ ज़्यादा हैं, जिन पर "बहुत ज़्यादा ख़तरा" है.

यह अधयन  'मल्टी टैक्सन ग्लोबल फ्रेशवाटर जीव' असेसमेंट इंटरनेशनल यूनियन फ़ॉर कंज़र्वेशन ऑफ़ नेचर की ओर से किया गया है. तथा  रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय साइंस जर्नल 'द नेचर' में प्रकाशित हुई है.

(इस मछली का नाम वाइखोमिया सह्याद्रिएन्सिस (महाराजा बार्ब) है, जो महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ हिस्सों की नदियों में पाई जाती है)

यह आकलन दुनिया भर में एक हज़ार से ज़्यादा लोगों के 20 वर्षों से ज़्यादा समय तक किए गए काम का परिणाम है.

राजीव राघवन, केरल यूनिवर्सिटी ऑफ़ फ़िशरिज़ एंड ओसन स्टडीज़ के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर और आईयूसीएन फ्रेशवाटर फ़िश स्पेशलिस्ट ग्रुप के दक्षिण एशिया के प्रमुख हैं.

उन्होंने बीबीसी हिंदी से कहा, "भारत में मूल मुद्दा यह है कि वाइल्ड लाइफ और बायोडायवर्सिटीज़ से जुड़ी हमारी अधिकांश योजनाएं पूरी तरह से करिश्माई स्तनधारियों जैसे बाघ, हाथी, गैंडे और पक्षियों पर केंद्रित है. इन सभी के लिए बहुत ज़्यादा ध्यान, पैसा और संसाधन दिया जाता है."

"लेकिन भारत में किसी मछली के लिए कोई व्यवस्थित योजना नहीं है, जिसमें यह तय किया जाए कि उसे कैसे बचाया जाए."

विलुप्त होने की कगार पर भारतीय प्रजातियां

विभिन्न राज्यों में विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकीं मीठे पानी की मछली की कुछ प्रमुख प्रजातियों के नाम हैं.

 (ब्लैक कॉलर कैटफ़िश, केरल की एक लुप्तप्राय प्रजाति (होराबाग्रस नाइग्रीकोलारिस) है.)

महाराष्ट्रः डेक्कन बार्ब और ज़ेब्रा लोच.

केरलः मालाबार महासीर, रेडलाइन टॉरपीडो बार्ब, ब्लैक कॉलरेड कैटफिश और पेनिनसुलर हिल बार्ब.

तमिलनाडुः डेवेरियो नीलघेरिएन्सिस, भवानी बार्ब और गर्रा कालाकाडेन्सिस.

कर्नाटक-तमिलनाडुः हम्पबैक महासीर, नीलगिरी मिस्टस, हिप्सेलोबार्बस डबियस और केनेरा पर्लस्पॉट.

पश्चिमी घाट दुनिया की सबसे आइकॉनिक मीठे पानी की मछली की प्रजातियों का घर भी है.

उदाहरण के लिए हम्पबैक्ड महासीर. यह एक बड़ी मछली है, जो 60 किलो तक की हो सकती है. आईयूसीएन रेड लिस्ट में इसे "गंभीर तौर पर लुप्तप्राय" के तौर पर शामिल किया गया है.

राघवन ने बताया, "यह मछली जहां रहती है, उस इलाक़े को नदी परियोजनाओं, रेत, खनन, इस मछली के अवैध शिकार और आक्रामक विदेशी प्रजातियों से ख़तरा है. इसलिए जहां हम्पबैक्ड महासीर रहती है, उस नदी और सहायक नदियों की सुरक्षा इस मछली के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए ज़रूरी है."

" इसके अलावा मछली पकड़ने के नियमों के अलावा विदेशी आक्रामक प्रजातियों की शुरुआत पर प्रतिबंध लगाने की भी ज़रूरत है."

राघवन के मुताबिक, महासीर के समान पश्चिमी घाट में 30 से 40 प्रजातियां हैं, जिनके विलुप्त होने का ख़तरा है.

राघवन के ही अनुसार पश्चिमी घाट में मीठे पानी की मछली की 300 से ज़्यादा प्रजातियां मौजूद हैं. यहां मीठे पानी के जीवों की असाधारण विविधता है.

.पश्चिमी घाट की कई स्थानीय और मीठे पानी की लुप्तप्राय प्रजातियां बहुत ही छोटे इलाक़े में पाई जाती हैं. कभी-कभी यह एक ही स्थान पर या फिर एक ही नदी में मिलती हैं.

इसी तरह आईयूसीएन रेड लिस्ट में लुप्तप्राय प्रजातियों में 23,496 जीव शामिल हैं. इनमें डेकापोड क्रस्टेशियंस जैसे- झींगा, केकड़े, क्रेफ़िश और झींगे, मछलियां और ओडोनेट्स (जैसे- ड्रेगोन्फ्लाइज़ और डेमसेल्फ़िज़) शामिल हैं.

रिपोर्ट बताती है कि इन प्रजातियों के सामने प्रदूषण, बांध और जल निकासी, कृषि और आक्रामक प्रजातियों के साथ-साथ अत्यधिक कटाई से भी विलुप्त होने का ख़तरा है.

क्यों मंडरा रहा है ये ख़तरा

राघवन बताते हैं, "सबसे बड़ा ख़तरा इनके रहने की जगहों में गिरावट या कमी होना है. इन जगहों को कई वजहों से नुक़सान होता है. उदाहरण के लिए प्रदूषण फैलाने वाले चीज़ें ऊपर से नीचे की ओर बहकर आती हैं. ऊपरी इलाकों में चाय, इलायची आदि के बागान होते हैं और वहां कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है."

( सह्याड्रिया डेनिसोनी (रेडलाइन टॉरपीडो बार्ब), केरल और दक्षिणी कर्नाटक की नदियों और नालों में पाई जाने वाली मछली की एक लुप्तप्राय प्रजाति है.)

वो कहते हैं, "जलधारा की शुरुआत से लेकर उसके समुद्र में पहुंचने तक प्रदूषण फैलाने वाले कई तत्व उसमें मिल चुके होते हैं. ये उद्योग, कृषि और मानव गतिविधियों से जुड़े तत्व होते हैं, जो प्रदूषण फैलाने का काम करते हैं."

वैश्विक मूल्यांकन रिपोर्ट बताती है, "वैश्विक स्तर पर जैव विविधता में गिरावट आ रही है और खासतौर पर मीठे पानी का ईको-सिस्टम इससे प्रभावित हो रहा है."

इसके मुताबिक़ "जितने प्राकृतिक आंतरिक स्थलों वेटलैंड (इनमें पीटलैंड, दलदल, झीलें, नदियां, तालाब आदि शामिल हैं) की निगरानी की गई, उसमें यह बात निकलकर आई कि 1970 से लेकर 2015 तक 35 फ़ीसदी वेटलैंड ख़त्म हो चुके हैं.''

रिपोर्ट के मुताबिक़- "ये गिरावट जंगलों में गिरावट के मुक़ाबले तीन गुनी तेज़ी से हुई है. अब जितने भी वेटलैंड वाले इलाके वाले आवास बचे हैं, उनमें 65 फ़ीसदी ऐसे हैं, जिन पर मध्यम से लेकर उच्च स्तर तक का ख़तरा है. इसके अलावा 37 फ़ीसदी नदियां ऐसी हैं, जो पूरी तरह से मुक्त तौर पर नहीं बह रही हैं."

इसकी दूसरी वजह को राघवन "सीधा इंफ्रास्ट्रक्चर" के तौर पर परिभाषित करते हैं, जो कि नदियों पर पुलों के निर्माण, बांध और नहरों के चैनलाइज़ेशन से जुड़ा है.

उन्होंने कहा, "अगर आप बांध के नीचे का हिस्सा देखें तो आप पाएंगे कि अधिकांश हिस्सा सूखा है, क्योंकि पानी को बांधों द्वारा रोक लिया जाता है."

"इसलिए,बांध के निचले हिस्से में रहने वाले लोग और जैव विविधता हमेशा प्रभावित होती है. यह कुछ कारण हैं, जिनके कारण (मछलियों और जलीय जीवों के) आवास में कमी आती है या वो नष्ट हो जाते हैं."

संक्षेप में, इसका मतलब यह है कि मनुष्यों के अस्तित्व के लिए जितने भी संसाधन आवश्यक हैं, वो सभी मीठे पानी की जैव विविधता के संरक्षण के रास्ते में आ रहे हैं.

यह मानव और जानवरों के संघर्ष जैसा है, जो न सिर्फ़ कृषि समुदाय को प्रभावित करता है, बल्कि शहरी मानव आवासों को भी प्रभावित कर रहा है.

बड़ी चुनौती

राघवन ने कहा, "आप यह कह सकते हैं कि बाघ या हाथी किसी भी मानवीय ज़रूरतों में योगदान नहीं देते हैं, मगर आप यह नहीं कह सकते हैं कि आप मछली या निचले जलीय जीव नहीं पकड़ सकते, क्योंकि यह सामुदायिक उद्देश्य की पूर्ति करते हैं."

"ये काम गरीब लोगों को भोजन और रोज़गार मुहैया करवाता है. इसमें संतुलन बनाना सबसे मुश्किल काम है. यह भी एक कारण है कि मीठे पानी के जीवों के संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया जाता है, क्योंकि अधिकांश लोग इस मामले में सामुदायिक दृष्टिकोण से सोचते हैं."

वह यह भी बताते हैं कि मछली खाद्य सुरक्षा और आजीविका के लिए एक अहम घटक है. मगर, इसके अलावा वो पोषक तत्वों का पुर्नचक्रण भी करती है.

पानी को फिल्टर करती है. उनकी भूमिका ईकोलॉजिकल होने के साथ-साथ व्यावसायिक भी है, जो मानवीय मांगों से जुड़ी है.

राघवन इस बात से सहमत हैं कि, "मुख्य चिंता इस बात की है कि स्तनधारियों और पक्षियों के बजाए मछली और अन्य मीठे पानी के जीव आजीविका का स्रोत हैं."

"इसलिए इनके संरक्षण और आजीविका की बहस के बीच संतुलन बनाना बहुत कठिन है"

रिपोर्ट कहती है, "मीठे पानी की मछलियों का संरक्षण ख़ासतौर पर उन इलाक़ों में महत्वपूर्ण है, जहां समुदाय प्रोटीन संबंधी ज़रूरतों के लिए इन मछलियों पर निर्भर हैं. अन्यथा खाद्य सुरक्षा और आजीविका और अर्थव्यवस्था से समझौता करना पड़ेगा."

  (सन्दर्भ /साभार –बीबीसी, लेखक -,इमरान क़ुरैशी )

पानी पर्यावरण से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलन –पानी पत्रक

पानी पत्रक (208– 28 जनवरी 2025) जलधारा अभियान221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020, संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com

 

 

शुक्रवार, 24 जनवरी 2025

देश की सफ़ाई करने वालों के लिए न्याय

28 दिसंबर, 2024, शनिवार को, सीवर और सेप्टिक टैंक में लगे सैकड़ों से ज़्यादा मैनुअल स्कैवेंजर और मैनुअल स्कैवेंजर की प्रथा के चलते अपनी ड्यूटी के दौरान मारे गए पीड़ितों के बहुत से परिवार नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में, दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच द्वारा विभिन्न संगठनों और यूनियनों के साथ आयोजित जन सुनवाई के लिए एकत्र हुए। जन सुनवाई में नागरिक अधिकार निकायों के कई प्रमुख कार्यकर्ता, शिक्षाविद और अधिवक्ता भी शामिल हुए।

हालाँकि, मैनुअल स्कैवेंजर की प्रथा गैरकानूनी है, फिर भी यह भारत भर में सीवर कर्मचारियों की जान ले रही है। जन सुनवाई का उद्देश्य सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय अपनी जान गंवाने वाले पीड़ितों के परिवारों और जो लोग अभी भी इस घृणित व्यवसाय में लगे हुए हैं, उनकी दुर्दशा को सुनने/जानने के लिए एक मंच प्रदान करना था और यह भी कि सिस्टम उनके मुद्दों पर कैसे प्रतिक्रिया करता है। पीड़ितों के परिवार, विशेषज्ञ और अधिवक्ता एक साथ आए और उन्होंने प्रणालीगत सुधारों और कानून के बेहतर प्रवर्तन की मांग की।

 शुरुआत में, एक कार्यकर्ता ने सीवर और सेप्टिक टैंक श्रमिकों द्वारा सामना की जाने वाली गंभीर वास्तविकता को उजागर किया, इस क्षेत्र में मौतों की उच्च संख्या और लापरवाही के मामलों में कम सजा दरों को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का हवाला देते हुए जिसमें मृत्यु के लिए 30 लाख और स्थायी विकलांगता के लिए 20 लाख रुपये का मुआवजा अनिवार्य किया गया था, कार्यकर्ताओं ने मांग की कि फैसले को लागू किया जाना चाहिए।

 एक अन्य कार्यकर्ता ने कानून और नीति के कार्यान्वयन में स्पष्ट खामियों की ओर इशारा किया। इसी तरह, एक कार्यकर्ता ने मैनुअल स्कैवेंजर की आवाज़ को बढ़ाने के लिए एक उपकरण के रूप में सार्वजनिक सुनवाई के महत्व को समझाया और इस पेशे से जुड़े कलंक को खत्म करने के लिए सामूहिक कार्रवाई का आग्रह किया। डीजेबी सीवर कर्मचारियों ने ठेकेदारी प्रथा के खिलाफ अपने संघर्ष और यूनियन बनाने के अपने प्रयासों को साझा किया, जिसके कारण दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई और कुछ कर्मचारियों को बहाल किया गया। उन्होंने बताया कि कैसे उन्हें नौकरी से निकाल दिए जाने से उनकी थाली से रोटी छिन गई और अनिश्चितता का स्तर एक और कोविड लहर की तरह लग रहा था। उनका पूरा एक साल न्याय की मांग करने के संघर्ष से भरा था। सीवर कर्मचारियों के कई परिवारों ने न्याय पाने की प्रक्रिया में अपने दुख और व्यवस्थागत विफलता को साझा किया, जैसे कि अंतरिम मुआवज़ा प्राप्त करने के लिए कई दस्तावेज़ मांगे गए। 2018 में, सोनी ने अपने पति को खो दिया, साथ ही चार साथी कर्मचारी, जो परिवार के एकमात्र कमाने वाले थे। हाथ से मैला ढोने वाले नहीं, बल्कि दिहाड़ी मजदूर होने के बावजूद, उन्हें सीवर में उतरने के लिए मजबूर किया गया। इससे तीन कर्मचारियों की मौत हो गई, लेकिन उनके पति बच गए। पिछले कुछ वर्षों में, सोनी के पति का स्वास्थ्य खराब हो गया क्योंकि उन्हें जहरीली गैसों में सांस लेने से संबंधित विभिन्न बीमारियाँ हो गईं; अंततः, 2024 में उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें कोई मुआवज़ा नहीं मिला।

एक पीड़ित के भाई जय नारायण ने बताया कि कैसे मई 2024 में सरिता विहार के ओल्ड जसोला गांव में एक निजी आवास में सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय उनके भाई अजय सहित दो श्रमिकों की जान चली गई। परिवार को अभी तक मुआवजा नहीं मिला है और न्याय पाने में नौकरशाही की बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। जबकि बृजपाल के 19 वर्षीय बेटे, जो हाउसकीपिंग कर्मचारी के रूप में कार्यरत था, को बिना किसी सुरक्षा उपाय के सेप्टिक टैंक की सफाई करने के लिए मजबूर किया गया, जिसके परिणामस्वरूप उसकी मौत हो गई। राजो जी ने सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय अपने दो बेटों को खो दिया। राजो जी ने कहा, मेरे पास कुछ भी नहीं बचा है, और मैं अपने बेटों की अचानक मौत से बिखर गई हूं।

जन सुनवाई के अंत में जूरी सदस्यों ने अपनी सिफारिशें एवं टिप्पणियां प्रस्तुत कीं। नीचे दी गई सिफारिशें हैं:

1. मुख्य नियोक्ता की जिम्मेदारी तय की जाए- जेई एवं एई आदि को अपराधी बनाया जाए। नोडल अधिकारी (डीएम, आयुक्त या कलेक्टर) को दंडित किया जाए। जिसके परिसर में घटना घटित होती है, उसकी जिम्मेदारी सुनिश्चित की जाए तथा संबंधित अधिकारी को मामलों को गंभीरता से लेना चाहिए।

2. घायलों के मामले में नौकरी दी जाए तथा पीड़ित को अंतरिम आधार पर 20 लाख रुपए का अनिवार्य मुआवजा दिया जाए।

 3. ऐसे सभी मामलों में एफआईआर को मृत्यु का सबूत माना जाए तथा प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।

 4. तत्काल अनुग्रह राशि के रूप में अंतरिम मुआवजा 15 दिनों के भीतर प्रदान किया जाए तथा अंतिम मुआवजा 6 महीने के भीतर दिया जाए।

5. सर्वोच्च न्यायालय के अधीन एक स्थायी निगरानी समिति का गठन किया जाए जिसमें एससी/एसटी तथा अल्पसंख्यक समूहों का 50% से अधिक प्रतिनिधित्व हो तथा इसके निरंतर संचालन के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराया जाए। एनएसकेएफडीसी को भी इसी तरह से प्रतिनिधि बनाया जाए।

 6. दिल्ली सरकार द्वारा सीवर सफाई का मशीनीकरण समयबद्ध तरीके से किया जाना चाहिए। ब्लैक लिस्टेड कंपनियों को पांच साल तक काम करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए तथा उनके खिलाफ कानून लागू किया जाना चाहिए। जिन परिवारों ने अपने सदस्यों को ड्यूटी के दौरान खोया है, उन्हें मशीनें दी जानी चाहिए।

7. श्रम अनुबंधों को उचित तरीके से लिखित रूप में दिया जाना चाहिए, तथा अनुबंध में श्रमिक, उपकरण और प्रशिक्षण को ट्रैक करना आसान बनाना चाहिए।

8. केवल प्रशिक्षित श्रमिकों को ही काम करने की अनुमति दी जानी चाहिए, न कि उन लोगों को जिनके पास कोई प्रशिक्षण नहीं है।

9. फास्ट-ट्रैक कोर्ट और मामलों को जल्दी से निपटाना, तथा तत्काल जवाबदेही होनी चाहिए, तथा समय-सीमा के भीतर मुआवजा प्रदान किया जाना चाहिए।

10. अनुग्रह राशि दी जानी चाहिए, तथा पीड़ित के बच्चे की शिक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए, तथा मैनुअल स्कैवेंजर के बच्चों की शिक्षा प्रदान करने के लिए स्कूलों द्वारा सहयोग किया जाना चाहिए। मुआवजे की अंतिम इकाई का कुछ हिस्सा 15 वर्ष तक के बच्चों के लिए तय किया जाना चाहिए।

11. मुआवजे को मौजूदा सरकारी योजनाओं से जोड़ा जाना चाहिए।

12. मैनुअल स्कैवेंजिंग के मौजूदा कानून और सुप्रीम कोर्ट के आदेश में संशोधन किया जाना चाहिए, तथा कानूनों और प्रावधानों का पूर्ण-गति से क्रियान्वयन किया जाना चाहिए। 30 लाख मुआवजा कानून में संशोधन किया जाना चाहिए तथा उन्हें सरकारी कर्मचारी माना जाना चाहिए।

13. उत्तरजीवी को मुआवजा मिलना चाहिए, जो 30 लाख के बराबर होना चाहिए, तथा नौकरी भी मिलनी चाहिए।

14. फास्ट-ट्रैक कोर्ट में दोषियों को सजा मिलनी चाहिए।

15. मृत्यु के मामलों को आपराधिक अपराध माना जाना चाहिए, तथा उत्तरदायित्व और जवाबदेही अनिवार्य होनी चाहिए।

16. संविदा सीवर कर्मचारियों को स्थायी और वेतन पर रखा जाना चाहिए तथा उन्हें आवश्यक कार्य माना जाना चाहिए।

17. कानून के अनुसार न्यूनतम मजदूरी होनी चाहिए।

18. संविदा सीवर कर्मचारियों को अकुशल नहीं, बल्कि कुशल श्रमिक माना जाना चाहिए, क्योंकि वे जोखिम भरे और जोखिम भरे कार्य करते हैं।

19. DICCI कंपनियों के खिलाफ जिला मजिस्ट्रेट द्वारा सर्वेक्षण होना चाहिए, तथा सीवर और सेप्टिक टैंक के काम में लगे मौजूदा परिवारों को सहकारी समिति में बदलना चाहिए, उन्हें सशक्त बनाना चाहिए, तथा मशीनरी उपलब्ध करानी चाहिए।

जन सुनवाई के जूरी सदस्य थे

अधिवक्ता हरनाम सिंह, दिल्ली सफाई कर्मचारी आयोग के पूर्व अध्यक्ष तथा दिल्ली उच्च न्यायालय की निगरानी समिति के पूर्व अध्यक्ष

विनोद कुमार, विधि के प्रोफेसर तथा एनएलयू दिल्ली में मानवाधिकार एवं अधीनस्थ अध्ययन केंद्र के निदेशक

श्वेता त्रिपाठी, कार्यकारी निदेशक, श्रुति (ग्रामीण, शहरी एवं जनजातीय पहल के लिए सोसायटी)

अधिवक्ता नरेश बंसल, दिल्ली उच्च न्यायालय

हेमलता कंसोटिया, सीवरेज एवं संबद्ध श्रमिकों के सम्मान एवं अधिकारों के लिए राष्ट्रीय अभियान

 [ सन्दर्भ /साभार –आयोजक-(दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच ,दिल्ली जल बोर्ड सीवर विभाग मजदूर संगठन, नगर निकाय कर्मचारी संघ (उत्तर प्रदेश),ऑल डीजेबी एम्प्लाइज वेलफेयर एसोसिएशन, जल मल कामगार संघर्ष मोर्चा, म्यूनिसिपल वर्कर्स लाल झंडा यूनियन , दिल्ली जल बोर्ड कर्मचारी यूनियन, इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड सस्टेनेबिलिटी ,पीपुल्स रिसोर्स सेंटर ,सीवरेज एंड अलाइड वर्कर्स फोरम ,पीपुल्स मीडिया एडवोकेसी एंड रिसोर्स सेंटर ,मगध फाउंडेशन, इंडियन सैनिटेशन स्टडीज कलेक्टिव) दुआरा जारी प्रेस रिलीज़ एवं ground xero ]--(अधिक जानकारी के लिए-+91 8491052270 या +91 7065721374)

पानी पर्यावरण से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलन –पानी पत्रक

पानी पत्रक (207– 25जनवरी 2025) जलधारा अभियान221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020, संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com



 

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पाकिस्तान का कृषि क्षेत्र ढह रहा है - और इसका दोष पूरी तरह से शहबाज शरीफ सरकार की विनाशकारी नवउदारवादी नीतियों पर है। संघीय बजट से पहले 9 ज...