शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023

बिना नोटिस सीवर कर्मचारियों को हटाना गैरकानूनी!

 

श्रमिकों को नकद वेतन देना अवैध है!

दिल्ली जल बोर्ड के सैकड़ों सीवर कर्मचारी एकजुट,

दिल्ली सफाई कर्मचारी आयोग के अध्यक्ष ने तत्काल कार्रवाई करने का वादा किया


दिल्ली जल बोर्ड के तहत काम करने वाले दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों के सैकड़ों संविदा सीवर कर्मचारियों को पिछले महीनेबिना किसी पूर्व सूचना के नौकरी से हटा दिया गया है। पिछले 10-15 साल से काम कर रहे इनमें से ज्यादातर कर्मचारियों को पिछले 2 महीने से वेतन नहीं दिया गया. इन कर्मचारियों पर शहर के विभिन्न इलाको में  सीवर लाइनों की सफाई की जिम्मेदारी है। अधिकारियों द्वारा कोई नोटिस जारी नहीं किया गया और उन्हें इस महीने अचानक नौकरी से हटा दिया गया। सीवर श्रमिकों की चिंताजनक स्थिति को देखते हुए, कई यूनियनों और सामाजिक संगठनों ने 28 दिसंबर 2023 को कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया, नई दिल्ली में एक सार्वजनिक सुनवाई की

पूरी दिल्ली से लगभग 300 कार्यकर्ता सार्वजनिक सुनवाई के लिए एकत्र हुए और जूरी पैनल और दर्शकों के सामने अपनी शिकायतें साझा कीं। श्रमिकों द्वारा दी गई गवाहियों से उनकी कामकाजी परिस्थितियों की चौंकाने वाली वास्तविकताएं सामने आईं। पश्चिमी दिल्ली के पीतमपुरा के श्रमिकों ने कहा कि उन्हें कभी नहीं बताया गया कि उनका सही वेतन क्या है और पर्यवेक्षक द्वारा बिना किसी रसीद के उन्हें नकद भुगतान किया जाता है । एक कर्मचारी, जिसने अपना नाम नहीं बताना चाहा , ने कहा, "हम 15 वर्षों से काम कर रहे हैं, कई ठेकेदार आते हैं और चले जाते हैं  लेकिन हमें अपनी 450 रुपये की दैनिक मजदूरी के लिए लड़ना पड़ता है! " नवजीवन विहार में काम करने वाले एक कर्मचारी ने बताया कि उन्हें दिवाली और दशहरे के महीने में भी वेतन नहीं मिला और उनका परिवार तब से कर्ज लेकर गुजारा कर रहा है.

 दक्षिणी दिल्ली के कालकाजी के एक कर्मचारी ने कहा कि उसे बिना किसी पूर्व सूचना के 7 दिसंबर को अचानक नौकरी से हटा दिया गया और कारण भी नहीं बताया गया । एक अन्य मामले में, ईदगाह स्टोर के एक कर्मचारी ने वेतन न मिलने पर सरकारी अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन शिकायत दर्ज होने के बाद उसे नौकरी से हटा दिया गया और तब से किसी भी ठेकेदार ने उसे काम पर नहीं रखा है। ठेकेदारों द्वारा ऐसी डराने-धमकाने की रणनीति का इस्तेमाल किया जाता है जो श्रमिकों को अपनी चिंताओं को व्यक्त करने से रोकता है।

  जूरी में शामिल दिल्ली सफाई कर्मचारी आयोग के अध्यक्ष संजय गहलोत ने श्रमिकों की दुर्दशा के मुद्दों का संज्ञान लिया और आश्वासन दिया कि वह बकाया भुगतान जारी करने के लिए तत्काल कार्रवाई करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि सीवर श्रमिकों की नौकरियां सुरक्षित रहें।

 सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील, कॉलिन गोंसाल्वेस, जो जूरी पैनल का हिस्सा थे, ने श्रमिकों से कहा, “बिना नोटिस के आपको हटाना अवैध है! आपका वेतन नकद में देना गैरकानूनी है ! आपको आपका पूरा वेतन न देना गैरकानूनी है!

 जूरी पैनल में सुप्रीम कोर्ट के वकील कॉलिन गोंसाल्वेस, पूर्व संसद सदस्य और एआईकेएस के उपाध्यक्ष हन्नान मोल्ला, राज्य स्तरीय आश्रय निगरानी समिति के सदस्य इंदु प्रकाश सिंह शामिल रहे ; सीटू के राष्ट्रीय सचिव अमिताव गुहा; दिथी भट्टाचार्य, सेंटर फॉर वर्कर्स मैनेजमेंट के निदेशक अनिल वर्गीस, सामाजिक कार्यकर्ता व  अध्यक्ष, निगरानी समिति, दिल्ली उच्च न्यायालय, अधिवक्ता हरनाम सिंह, और मीना कोटवाल, संस्थापक संपादक, द मूकनायक ने 15 श्रमिकों की गवाही सुनी और निम्नलिखित सिफारिशें दीं:

 1. सभी संविदा सीवर कर्मचारियों की बहाली और वेतन, भविष्य निधि और अन्य सामाजिक प्रतिभूतियों सहित सभी लंबित बकाया का यथा शीघ्र भुगतान।

2. अकुशल श्रमिकों के लिए दिल्ली सरकार की न्यूनतम मजदूरी अधिसूचना ( 1 अक्टूबर 2022 ) के अनुसार, श्रमिकों को कम से कम 17,494/- प्रति माह न्यूनतम मजदूरी का भुगतान किया जाना चाहिए।

3. दिल्ली जल बोर्ड के 700 संविदा कर्मियों को नियमित करने के आम आदमी पार्टी सरकार के प्रयास की सराहना करते हुए, सिफारिश की गयी कि 240 दिनों से अधिक काम करने वाले सभी संविदा कर्मचारियों को नियमित करना चाहिए और समय समय पर रोजगार में अंतराल को दिखावा और फर्जी माना जाना चाहिए।

4. रिट याचिका (सिविल) 5232/2007 के अदालती आदेशों का अक्षरशः कार्यान्वयन । साथ ही मृत्यु के मामले में 30 लाख की अनुग्रह राशि के भुगतान की सिफारिश करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के दिनांक 20/10/2023 के आदेशों का कार्यान्वयन । जूरी ने यह भी सिफारिश की है कि मुआवजा बिना किसी देरी के तुरंत दिया जाए।

5. सभी क्षेत्रों के सभी श्रमिकों के लिए ई एस आई और पहचान पत्र दिए जाएँ

6. शिक्षण संस्थानों में सीवर श्रमिकों के बच्चों के लिए छात्रवृत्ति का प्रावधान हो

 यूनियन नेताओं ने इन सिफारिशों के साथ  29 दिसम्बर 2023 को दिल्ली जल बोर्ड के सीईओ से संपर्क करने का फैसला किया है और कर्मचारियों ने तब तक दिल्ली जल बोर्ड वरुणालय में इकट्ठा होने का फैसला किया है जब तक उन्हें उनका उचित वेतन नहीं दिया जाता और उनकी नौकरियां वापस नहीं दी जातीं।

 जनसुनवाई का आयोजन दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच (DASAM) द्वारा नगरपालिका श्रमिक लाल झंडा यूनियन (सीटू), दिल्ली जल बोर्ड सीवर विभाग मजदूर संगठन, ऑल डीजेबी कर्मचारी कल्याण एसोसिएशन, जल मल कामगार संघर्ष मोर्चा, दिल्ली जल जैसी यूनियनों के सहयोग से किया गया था। इनके अलावा  बोर्ड कर्मचारी संघ, नेशनल कैंपेन फॉर डिग्निटी एंड राइट्स ऑफ सीवरेज एंड अलाइड वर्कर्स (एनसीडीआरएसएडब्ल्यू) और पीपल्स मीडिया एडवोकेसी एंड रिसोर्स सेंटर (पीएमएआरसी), सीवरेज एंड अलाइड वर्कर्स फोरम (एसएसकेएम, विमर्श मीडिया और मगध फाउंडेशन) जैसे संगठन भी शामिल रहे

( वेव पोर्टल groundxero में आये समाचार का हिंदी में अनुवाद,सहमती से प्रकाशित )

 पानी से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलनपानी पत्रक   पानी पत्रक (133-30 दिसम्बर 2023) जलधारा अभियान, 221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com



शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

अदालत के तांबा खदान बंद करने फैसले के बाद

 पनामा के लोगों ने सड़कों पर उत्सव मनाया

मध्य अमेरिकी देश पनामा की खुले गड्ढे वाली तांबे की खदान के खिलाफ जनता के  विरोध प्रदर्शन ने पनामा को एक महीने से अधिक समय से घेराबंदी की स्थिति में रखा । सड़क पर खड़े किये गये अवरोधों के कारण गैस और प्रोपेन ईधन की कमी हो गई है। कई सुपरमार्केट की अलमारियां खाली हो गई हैं । रेस्टोरेंट और होटल भी  खाली रहे .

लेकिन 28 नवम्बर 2023, मंगलवार को पनामा में प्रदर्शनकारियों को ख़बर मिली पनामा के सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया है कि व्यापक पर्यावरण विरोध का केंद्र बिंदु रही कनाडाई तांबे की खदान, कोबरे पनामा , के लिए 20 साल की रियायत असंवैधानिक है और यह भी पता चला कि पनामा के राष्ट्रपति ने कहा है कि खदान को बंद करने की प्रक्रिया शीघ्र शुरू होगी।

 खबर सुनते ही लोग सड़कों पर निकल आये. प्रदर्शनकारियों ने सुप्रीम कोर्ट के सामने सडक पर  डांस किया. उन्होंने लाल, सफेद और नीला पनामा का झंडा लहराया और राष्ट्रगान गाया।

लोग जश्न मनाते हुए। तख्ती पर लिखा है: 'हमने जीत हासिल की। अब और खनन नहीं. पनामा हरा है।' फोटोग्राफ: बिएनवेनिडो ( साभार –द गौर्जियन ) 

 एक प्रदर्शनकारी रायसा बानफ़ील्ड ने कहा, " यही वह चीज़ है जिसका हम इंतज़ार कर रहे थे,"

कनाडा के फर्स्ट क्वांटम मिनरल्स की स्थानीय सहायक कंपनी मिनेरा पनामा, जो पनामा में खदान का संचालन करती है, ने एक बयान में कहा कि " कोबरे पनामा अदालत के फैसले को स्वीकार करता है।"

कोबरे पनामा के नाम से जानी जाने वाली यह खदान 2019 से उत्पादन में थी और प्रति वर्ष 300,000 टन तांबा निकाल रही थी । यह देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग पांच प्रतिशत और पनामा निर्यात का 75 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करता है । खनन क्षेत्र पनामा के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग सात प्रतिशत का योगदान है , जिसमें कोबरे पनामा देश की सबसे महत्वपूर्ण खदान रही ।

लेकिन प्रदर्शनकारियों ने कहा कि कोबरे पनामा देश के पर्यावरण के लिए एक आपदा है और इससे जंगली तटीय क्षेत्र को नुकसान होगा और विशेष रूप से जल आपूर्ति को  खतरा होगा । साथ ही  एक विदेशी निगम को दिया गया तोहफा है , जिसे की जनता ने देश की संप्रुभता पर हमला करार दिया .

संप्रभुता का यह प्रश्न पनामावासियों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण रहा , क्योंकि उन्होंने पनामा नहर क्षेत्र को  संयुक्त राज्य अमेरिका के नियंत्रण से  छुटकारा दिलाने के लिए पूरे 20 वीं सदी में एक लम्बी लड़ाई लड़ी।

              (तांबे की खदान के खिलाफ प्रदर्शन -फोटो माइकल फॉक्स/अल जज़ीरा)

इसी ओपन-पिट खदान को पिछले साल अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया था जब सरकार और फर्स्ट क्वांटम के बीच सरकार द्वारा वांछित भुगतान पर बातचीत टूट गई थी।

लेकिन मार्च 2023 में, पनामा की विधायिका फर्स्ट क्वांटम के साथ एक समझौते पर पहुंची, जिससे मिनेरा पनामा को कम से कम 20  और वर्षों तक विशाल तांबे की खदान का संचालन जारी रखने की अनुमति मिल गई।

इसे  20 अक्टूबर 2023  को कांग्रेस के माध्यम से तेजी से आगे बढ़ाया गया. पनामा के राष्ट्रपति  कॉर्टिज़ो ने कुछ घंटो में ही इस  पर हस्ताक्षर कर अनुबंध को अंतिम मंजूरी दे दी , जिससे सहायक कंपनी को अगले 20 वर्षों के लिए राजधानी के पश्चिम में अटलांटिक तट पर एक जैव विविधता वाले जंगल में खदान का संचालन जारी रखने की अनुमति मिल गई . राष्ट्रपति और उनके मंत्रिमंडल ने नए अनुबंध की सराहना करते हुए कहा था कि इससे राज्य और पनामा की जनता को अप्रत्याशित लाभ होगा।

 लेकिन देश की जनता और पर्यावरण कार्यकर्ताओं को,राष्ट्रपति, उनका मंत्रिमंडल , और कंपनी के जन संपर्क अधिकारी अनुबंध से सहमत और संतुष्ट नहीं कर पाए . खदान पर विवाद के कारण हाल के वर्षों में पनामा में सबसे व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए, जिसमें खदान के बिजली संयंत्र की नाकाबंदी भी शामिल थी। प्रदर्शनकारियों ने पैन अमेरिकन राजमार्ग के कुछ हिस्सों को भी अवरुद्ध कर दिया .

मिनेरा पनामा ने इस महीने की शुरुआत में एक बयान में कहा था कि  प्रदर्शनकारियों की छोटी नौकाओं ने कोलन प्रांत में उसके बंदरगाह को अवरुद्ध कर दिया था, जिससे खदान तक  किसी भी प्रकार की  आपूर्ति नहीं पहुंच पा रही थी । नौसेना पुलिस ने बताया कि कोयला ले जा रहे एक जहाज ने " प्रदर्शनकारियों के एक समूह के तीव्र विरोध के कारण वापस लौटने का फैसला किया “.

विरोध प्रदर्शन शुरू होने के बाद, सरकार ने एक प्रस्ताव  पारित कर दिया था जो अनुबंध को रद्द कर देता , लेकिन 2 नवंबर 2023 को नेशनल असेंबली में एक बहस में वह पीछे हट गई।

अल ज़जीरा अखबार में  माइकल फॉक्स के अनुसार , यह फैसला, निवेशकों और देश की दीर्घकालिक क्रेडिट रेटिंग के लिए एक बड़ा झटका है, लेकिन  फिलहाल, पनामा के लिए राहत का एक स्रोत है, जो दशकों में देश को परेशान करने वाले सबसे बड़े विरोध आंदोलन से हिल गया । विश्लेषकों का कहना है कि विरोध प्रदर्शन और फैसले का पनामा में कारोबार करने की इच्छुक विदेशी कंपनियों पर असर पड़ेगा.

अदालत का यह फैसला और रष्ट्रपति की  घोषणा खदान के कर्मचारियों के लिए भी झटका है. खदान में लगभग 6,600 लोग कार्यरत हैं - जिनमें से 86 प्रतिशत पनामा के हैं.

इन सब के बाबजूद माइकल फॉक्स के अनुसार,पनामा के अधिकांश लोगों के लिए, सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक स्वागत योग्य संकेत है और देश सामान्य स्थिति की राह पर है।

पनामा के इंटरनेशनल सेंटर ऑफ सोशल एंड पॉलिटिकल स्टडीज के निदेशक हैरी ब्राउन अराउज़ ने अल जज़ीरा को बताया, "हम एक नए चरण में हैं।" जैसा कि हमने अब तक देखा है, विरोध प्रदर्शन रुक गये हैं, कई बाधाएं दूर हो गई हैं, कई हफ्तों से खाली पड़े राजमार्ग अब खुल गए हैं और गैस स्टेशनों का कारोबार फिर से शुरू हो गया है। वहीं सरकार ने कहा है कि वह व्यवस्थित तरीके से खदान को बंद करने की प्रक्रिया शुरू करेगी. इससे आबादी में आत्मविश्वास पैदा हो सकता है, जो खो गया था।

(सन्दर्भ –द सेन डिअगो यूनियन ट्रिब्यून , एक्स्क्लुदेड हेड लाइन्स ,अलजजीरा)

 (लेख सर्वोदय प्रेस सर्विस ,इंदौर से जारी हुआ )  


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शुक्रवार, 15 दिसंबर 2023

76 प्रतिशत लोग मानते हैं कि नदियों का जल प्रदूषण कम करने में

 इंसानी व्यवहार ही है सबसे बड़ी बाधा

76 फीसदी लोगों का कहना है कि जल प्रदूषण को कम करने में इंसानी व्यवहार सबसे बड़ी बाधा है। वहीं महज 10 फीसदी लोग इस बात से सहमत हैं कि उनके नेता नदियों के स्वास्थ्य की चिंता करते हैं |

क्षेत्रीय और सांस्कृतिक मतभेदों के बावजूद, दुनिया के 86 फीसदी लोग इस बात से सहमत हैं कि नदियों में होता प्रदूषण इंसानी स्वास्थ्य पर असर डाल रहा है। लेकिन आधे से अधिक करीब 57 फीसदी को इस बारे में बेहद कम या कोई जानकारी नहीं है कि इन्हें कैसे साफ किया जाए।

(दामोदर नदीं की सहायक –कोनार नदीं का प्रदुषण –साभार- द टेलीग्राफ )

इतना ही नहीं दुनिया के 91 फीसदी लोगों का मानना ​​है कि 2024 में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर कार्रवाई करने की आवश्यकता है। वहीं दस में से नौ लोगों ने माना है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में नदियां अहम भूमिका निभा सकती हैं। इसी तरह सर्वे में शामिल 80 फीसदी लोग इस बात से सहमत हैं कि नदियों का उनके जीवन को प्रभावित करती हैं।

गौरतलब है कि नदियां महज जल स्रोत ही नहीं हैं। कई देशों में यह सांस्कृतिक पहचान और धार्मिक आस्था का भी प्रतीक हैं। यह लोगों के लिए पीने का पानी उपलब्ध कराने के साथ-साथ सिंचाई, उद्योगों जैसी इंसानी जरूरतों को पूरा करने के लिए जल की व्यवस्था भी करती हैं।

इसी तरह यह अपने आप में जीवों की इतनी विविधता को समेटे रहती हैं, कि वो अपने आप में एक पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करता है, जिसपर अनगिनत जीव निर्भर करते हैं। लेकिन बढ़ती इंसानी महत्वाकांक्षा का जहर प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के रूप में इन जीवनधाराओं को जहरीला बना रहा है

यह सर्वेक्षण ‘रिवर्स आर लाइफ’ और लुइसियाना स्टेट यूनिवर्सिटीद्वारा अक्टूबर 2023 में किया गया था। इस वैश्विक सर्वेक्षण में 14 देशों के 6,645 लोगों से नदियों और जलवायु परिवर्तन से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर उनकी राय मांगी गई थी। इसका मकसद दुनिया भर में नदियों की सेहत और लोगों का उनके बारे में क्या विचार है, इसे समझना था।

नदियों के मामले में लोगों को नेताओं पर नहीं भरोसा

सर्वेक्षण के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक 81 फीसदी लोग नदियों को खाद्य प्रणाली का एक अहम हिस्सा मानते हैं और 94 फीसदी इस बात से सहमत हैं कि नदियां कृषि के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसके बावजूद अधिकांश लोगों का कहना है कि वो अपनी स्थानीय नदी से मिलने वाली मछलियों का सेवन नहीं करेंगे।

इस बारे में बीअलाइव की प्रमुख केटी हॉर्निंग का कहना है कि, “आंकड़ों में सबसे हैरान कर देने वाली बात यह रही की दुनिया के 90 फीसदी से अधिक लोग इस बात से सहमत हैं कि जलवायु परिवर्तन से निपटने की आवश्यकता है और नदियां इस मुद्दे को हल करने में मददगार हो सकती हैं।हालांकि बहुत से लोग इन बातों पर सहमत है लेकिन नदियों को लेकर लोगों के पास अभी भी पर्याप्त जानकारी नहीं है कि बदलाव लाने के लिए वो कैसे मदद कर सकते हैं।

निष्कर्षों के मुताबिक ज्यादातर लोग इस बात को लेकर सहमत है कि पर्यावरण, नदी प्रणालियों और कैसे आम लोग भी इनको बचाने में मदद कर सकते हैं इस बारे में और अधिक शिक्षा और जागरूकता की आवश्यकता है। इसको लेकर 98 फीसदी लोगों का कहना है कि वो पर्यावरण संबंधी मुद्दों के बारे में ज्यादा जानना चाहते हैं।

आंकड़ों के मुताबिक जहां दक्षिण अमेरिका और एशिया में, 69 फीसदी लोग नदियों के समक्ष मौजूद पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं के बारे में जानने में रूचि रखते हैं वहीं उत्तरी अमेरिका और यूरोप में यह आंकड़ा केवल 30 फीसदी ही है। उत्तरी अमेरिका और यूरोप (68  फीसदी)  की तुलना में दक्षिण अमेरिका और एशिया (80 फीसदी) में अधिक लोग नदियों में होते प्रदूषण को रोकने को लेकर चिंतित हैं।

महत्वपूर्ण बात यह है सर्वे में शामिल 74 फीसदी लोगों का मानना है जागरूकता फैलाने से नदियों के स्वास्थ्य में सुधार होगा, और 63 फीसदी का कहना है कि इस मुद्दे पर पर्याप्त ध्यान न देना जल प्रदूषण को कम करने में एक बड़ी बाधा है।
प्रदूषण को कम करने में इंसानी व्यवहार है सबसे बड़ी बाधा

वहीं लोगों से जब इस बारे में पूछा गया कि नदियों को दूषित करने के लिए सबसे अधिक कौन जिम्मेदार है तो एशिया में करीब 42 फीसदी और दक्षिण अमेरिका में 36 फीसदी लोगों का सोचना है कि ज्यादातर आम लोग ही इसके लिए दोषी हैं। वहीं उत्तरी अमेरिका में 41 फीसदी जबकि यूरोप में 42 फीसदी लोगों का मानना है कि इसके लिए निगम दोषी है।

जब बात कार्रवाई की आती है तो एशिया के 75 फीसदी लोगों ने अपनी स्थानीय नदियों को साफ करने में मदद की है, वहीं दक्षिण अमेरिका में केवल 46 फीसदी, उत्तरी अमेरिका में 27 फीसदी, और यूरोप में महज 18 फीसदी लोग मदद के लिए आगे आए हैं। हालांकि सर्वे में शामिल अधिकांश लोग इस बात पर सहमत है कि इस मुद्दे पर कार्रवाई की जरूरत है। लेकिन जब बात समस्या के समाधान की आती है, इसमें भी काफी विषमताएं मौजूद हैं।

सर्वे में शामिल 76 फीसदी लोगों का कहना है कि जल प्रदूषण को कम करने में इंसानी व्यवहार सबसे बड़ी बाधा है। वहीं 50 फीसदी का मानना है कि कोई भी उनकी स्थानीय नदियों को बचाने के लिए कुछ नहीं कर रहा है। जबकि केवल 10 फीसदी लोग ही इस बात से पूरी तरह सहमत थे कि उनकी सरकारें नदियों के स्वास्थ्य की परवाह करती हैं।

दुनिया के 72 फीसदी लोगों ने नदियों में बढ़ते प्रदूषण की रोकथाम के लिए सख्त नीतियां और अधिक नियमों की पैरवी की है। वहीं 88 फीसदी का मानना है कि नदियों में छोड़े जा रहे सीवेज को रोकने के लिए मजबूत कानून होने चाहिए। हालांकि 57 फीसदी ने माना कि अपनी स्थानीय नदियों को कैसे साफ करें इस बारे में व्यक्तिगत तौर पर उन्हें बहुत कम या कोई जानकारी नहीं है।

भले ही लोग इन मुद्दों को लेकर चिंतित हैं, फिर भी उनमें आशाएं मौजूद हैं और वो इन जीवनदायनी नदियों को साफ करने में मदद के लिए तैयार हैं। दुनिया भर के 59 फीसदी लोग 2024 में अपनी स्थानीय नदियों को साफ करने में मदद की योजना बना रहे हैं, उन्हें बस शुरूआत करने के लिए सहारे की जरूरत है।

-ललित मौर्या-

 (‘न्यूज़ 18 हिंदी/ वैज्ञानिक चेतना से साभार )

 पानी से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलनपानी पत्रक (131-15 दिसम्बर 2023) जलधारा अभियान, 221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com ,





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पाकिस्तान का कृषि क्षेत्र ढह रहा है - और इसका दोष पूरी तरह से शहबाज शरीफ सरकार की विनाशकारी नवउदारवादी नीतियों पर है। संघीय बजट से पहले 9 ज...