शुक्रवार, 15 दिसंबर 2023

76 प्रतिशत लोग मानते हैं कि नदियों का जल प्रदूषण कम करने में

 इंसानी व्यवहार ही है सबसे बड़ी बाधा

76 फीसदी लोगों का कहना है कि जल प्रदूषण को कम करने में इंसानी व्यवहार सबसे बड़ी बाधा है। वहीं महज 10 फीसदी लोग इस बात से सहमत हैं कि उनके नेता नदियों के स्वास्थ्य की चिंता करते हैं |

क्षेत्रीय और सांस्कृतिक मतभेदों के बावजूद, दुनिया के 86 फीसदी लोग इस बात से सहमत हैं कि नदियों में होता प्रदूषण इंसानी स्वास्थ्य पर असर डाल रहा है। लेकिन आधे से अधिक करीब 57 फीसदी को इस बारे में बेहद कम या कोई जानकारी नहीं है कि इन्हें कैसे साफ किया जाए।

(दामोदर नदीं की सहायक –कोनार नदीं का प्रदुषण –साभार- द टेलीग्राफ )

इतना ही नहीं दुनिया के 91 फीसदी लोगों का मानना ​​है कि 2024 में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर कार्रवाई करने की आवश्यकता है। वहीं दस में से नौ लोगों ने माना है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में नदियां अहम भूमिका निभा सकती हैं। इसी तरह सर्वे में शामिल 80 फीसदी लोग इस बात से सहमत हैं कि नदियों का उनके जीवन को प्रभावित करती हैं।

गौरतलब है कि नदियां महज जल स्रोत ही नहीं हैं। कई देशों में यह सांस्कृतिक पहचान और धार्मिक आस्था का भी प्रतीक हैं। यह लोगों के लिए पीने का पानी उपलब्ध कराने के साथ-साथ सिंचाई, उद्योगों जैसी इंसानी जरूरतों को पूरा करने के लिए जल की व्यवस्था भी करती हैं।

इसी तरह यह अपने आप में जीवों की इतनी विविधता को समेटे रहती हैं, कि वो अपने आप में एक पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करता है, जिसपर अनगिनत जीव निर्भर करते हैं। लेकिन बढ़ती इंसानी महत्वाकांक्षा का जहर प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के रूप में इन जीवनधाराओं को जहरीला बना रहा है

यह सर्वेक्षण ‘रिवर्स आर लाइफ’ और लुइसियाना स्टेट यूनिवर्सिटीद्वारा अक्टूबर 2023 में किया गया था। इस वैश्विक सर्वेक्षण में 14 देशों के 6,645 लोगों से नदियों और जलवायु परिवर्तन से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर उनकी राय मांगी गई थी। इसका मकसद दुनिया भर में नदियों की सेहत और लोगों का उनके बारे में क्या विचार है, इसे समझना था।

नदियों के मामले में लोगों को नेताओं पर नहीं भरोसा

सर्वेक्षण के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक 81 फीसदी लोग नदियों को खाद्य प्रणाली का एक अहम हिस्सा मानते हैं और 94 फीसदी इस बात से सहमत हैं कि नदियां कृषि के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसके बावजूद अधिकांश लोगों का कहना है कि वो अपनी स्थानीय नदी से मिलने वाली मछलियों का सेवन नहीं करेंगे।

इस बारे में बीअलाइव की प्रमुख केटी हॉर्निंग का कहना है कि, “आंकड़ों में सबसे हैरान कर देने वाली बात यह रही की दुनिया के 90 फीसदी से अधिक लोग इस बात से सहमत हैं कि जलवायु परिवर्तन से निपटने की आवश्यकता है और नदियां इस मुद्दे को हल करने में मददगार हो सकती हैं।हालांकि बहुत से लोग इन बातों पर सहमत है लेकिन नदियों को लेकर लोगों के पास अभी भी पर्याप्त जानकारी नहीं है कि बदलाव लाने के लिए वो कैसे मदद कर सकते हैं।

निष्कर्षों के मुताबिक ज्यादातर लोग इस बात को लेकर सहमत है कि पर्यावरण, नदी प्रणालियों और कैसे आम लोग भी इनको बचाने में मदद कर सकते हैं इस बारे में और अधिक शिक्षा और जागरूकता की आवश्यकता है। इसको लेकर 98 फीसदी लोगों का कहना है कि वो पर्यावरण संबंधी मुद्दों के बारे में ज्यादा जानना चाहते हैं।

आंकड़ों के मुताबिक जहां दक्षिण अमेरिका और एशिया में, 69 फीसदी लोग नदियों के समक्ष मौजूद पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं के बारे में जानने में रूचि रखते हैं वहीं उत्तरी अमेरिका और यूरोप में यह आंकड़ा केवल 30 फीसदी ही है। उत्तरी अमेरिका और यूरोप (68  फीसदी)  की तुलना में दक्षिण अमेरिका और एशिया (80 फीसदी) में अधिक लोग नदियों में होते प्रदूषण को रोकने को लेकर चिंतित हैं।

महत्वपूर्ण बात यह है सर्वे में शामिल 74 फीसदी लोगों का मानना है जागरूकता फैलाने से नदियों के स्वास्थ्य में सुधार होगा, और 63 फीसदी का कहना है कि इस मुद्दे पर पर्याप्त ध्यान न देना जल प्रदूषण को कम करने में एक बड़ी बाधा है।
प्रदूषण को कम करने में इंसानी व्यवहार है सबसे बड़ी बाधा

वहीं लोगों से जब इस बारे में पूछा गया कि नदियों को दूषित करने के लिए सबसे अधिक कौन जिम्मेदार है तो एशिया में करीब 42 फीसदी और दक्षिण अमेरिका में 36 फीसदी लोगों का सोचना है कि ज्यादातर आम लोग ही इसके लिए दोषी हैं। वहीं उत्तरी अमेरिका में 41 फीसदी जबकि यूरोप में 42 फीसदी लोगों का मानना है कि इसके लिए निगम दोषी है।

जब बात कार्रवाई की आती है तो एशिया के 75 फीसदी लोगों ने अपनी स्थानीय नदियों को साफ करने में मदद की है, वहीं दक्षिण अमेरिका में केवल 46 फीसदी, उत्तरी अमेरिका में 27 फीसदी, और यूरोप में महज 18 फीसदी लोग मदद के लिए आगे आए हैं। हालांकि सर्वे में शामिल अधिकांश लोग इस बात पर सहमत है कि इस मुद्दे पर कार्रवाई की जरूरत है। लेकिन जब बात समस्या के समाधान की आती है, इसमें भी काफी विषमताएं मौजूद हैं।

सर्वे में शामिल 76 फीसदी लोगों का कहना है कि जल प्रदूषण को कम करने में इंसानी व्यवहार सबसे बड़ी बाधा है। वहीं 50 फीसदी का मानना है कि कोई भी उनकी स्थानीय नदियों को बचाने के लिए कुछ नहीं कर रहा है। जबकि केवल 10 फीसदी लोग ही इस बात से पूरी तरह सहमत थे कि उनकी सरकारें नदियों के स्वास्थ्य की परवाह करती हैं।

दुनिया के 72 फीसदी लोगों ने नदियों में बढ़ते प्रदूषण की रोकथाम के लिए सख्त नीतियां और अधिक नियमों की पैरवी की है। वहीं 88 फीसदी का मानना है कि नदियों में छोड़े जा रहे सीवेज को रोकने के लिए मजबूत कानून होने चाहिए। हालांकि 57 फीसदी ने माना कि अपनी स्थानीय नदियों को कैसे साफ करें इस बारे में व्यक्तिगत तौर पर उन्हें बहुत कम या कोई जानकारी नहीं है।

भले ही लोग इन मुद्दों को लेकर चिंतित हैं, फिर भी उनमें आशाएं मौजूद हैं और वो इन जीवनदायनी नदियों को साफ करने में मदद के लिए तैयार हैं। दुनिया भर के 59 फीसदी लोग 2024 में अपनी स्थानीय नदियों को साफ करने में मदद की योजना बना रहे हैं, उन्हें बस शुरूआत करने के लिए सहारे की जरूरत है।

-ललित मौर्या-

 (‘न्यूज़ 18 हिंदी/ वैज्ञानिक चेतना से साभार )

 पानी से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलनपानी पत्रक (131-15 दिसम्बर 2023) जलधारा अभियान, 221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com ,





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