जय नियमराजा! जय
धरनी पेनु!
नियमराजा पर्व 2025
21, 22 और 23 फरवरी
स्थान: धांगड़ाभाटा
(नियमगिरि शिखर)
आयोजक: नियमगिरि
सुरक्षा समिति
संघर्षशील साथियों को आमंत्रण
हम नियमगिरि के
डोंगरिया कोंध(कंन्ध )लोग बीते 20
वर्षों से अपने पहाड़ को बचाने की लड़ाई
लड़ रहे हैं। इस संघर्ष में देश और दुनिया के कई बुद्धिजीवी, शिक्षाविद, मानवतावादी और जनवादी शक्तियाँ हमारा
समर्थन और एकजुटता दिखाकर हमें मजबूत बना रही हैं।
यह पहाड़ हमारी
जीविका, जीवन-दर्शन और अस्तित्व का आधार है।
यहाँ असंख्य झरने बहते हैं, विभिन्न प्रकार के वृक्ष, लताएँ, औषधीय पौधे, जीव-जंतु और सरीसृप पलते हैं। यह पहाड़ हमें सामूहिकता और एकता का
पाठ पढ़ाता है। हम 112 गाँवों के लोग परस्पर निर्भर रहकर
जीवन यापन करते हैं। हम इस भूमि को साफ करके मंडिया(रागी ), कंदुल, मक्का और अन्य फसलें उगाते हैं। इसलिए
नियमगिरि हमारे लिए सिर्फ एक पहाड़ नहीं, बल्कि हमारे इष्टदेव 'नियमराजा' और हमारी माँ 'धरनी पेनु' का प्रतीक है।
हमारे पर्व भी इसी प्रकृति के साथ जुड़े हुए हैं—खेती से लेकर फसल कटाई तक हमारे त्योहार चलते हैं, जिनमें नृत्य और गीतों की धुनें गूंजती हैं। यह पहाड़ हमें सिखाता है कि समाज सामूहिकता से चलता है, प्रकृति भेदभाव नहीं करती और मिट्टी हमें बाजार की लूट और पूंजीवाद के खिलाफ संघर्ष करना सिखाती है।
हमारे संघर्ष का
कारण
इंग्लैंड की कंपनी
वेदांत हमारे पहाड़ से बॉक्साइट चुराने की कोशिश कर रही है। पहले उन्होंने
लांजीगढ़ इलाके में बसे हमारे झरनिया कोंध समुदाय के आंदोलन को कुचलकर वहाँ
बॉक्साइट रिफाइनरी प्लांट लगा दिया। हमारी सहमति के बिना, झूठे वादों और छल-कपट से, तीन गाँवों के लोगों के घरों पर
बुलडोजर चला दिया गया और उन्हें जबरन 'वेदांत नगरी' नामक कॉलोनी में भेज दिया गया।
वेदांत के मालिक
अनिल अग्रवाल नियमगिरि के बॉक्साइट को लूटने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। लेकिन
हमने यह स्पष्ट कर दिया—'हम मर जाएंगे, लेकिन अपने पवित्र पहाड़ को नहीं देंगे!'
हमारे संघर्ष में
कई साथियों ने बलिदान दिया, जेल गए, पुलिस की बर्बरता सही, लेकिन हमने न सरकार को, न कंपनी को अपने नियमगिरि पर कदम रखने
दिया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से ग्राम सभाओं ने 100% सहमति से वेदांत को
खनन से बाहर का रास्ता दिखाया। यह ऐतिहासिक जन-आंदोलन की जीत थी।
लेकिन खतरा अभी भी
बरकरार है
न केवल नियमगिरि, बल्कि दक्षिण-पूर्व ओडिशा की पूर्वी घाटी पर्वतमालाओं में फैले सभी
पहाड़ों में बॉक्साइट मौजूद है। इन पहाड़ों को हड़पने के लिए कई कंपनियाँ सरकार से
मिलीभगत कर रही हैं।
कंपनि ने सरकार, पुलिस, शहरी मध्यम वर्ग और मीडिया—सभी को खरीद लिया है।
हम और हमारी प्रकृति
एक तरफ हैं, और दूसरी तरफ हमारे संसाधनों को लूटने
वाले कॉर्पोरेट और उनके समर्थक।
हमारी विचारधारा और
अगला कदम
हम नियमराजा के
वंशज हैं, हम बिरसा मुंडा के 'हमारा देश, हमारा राज' के सिद्धांत से प्रेरित हैं। सरकार, कंपनियाँ या एनजीओ—हम किसी की अधीनता स्वीकार नहीं करते।
हमारे आंदोलन का
विस्तार अब सीजीमाली, कुट्रुमाली, माझिंगमाली, खंडुआलमाली, माली पर्वत जैसे अन्य जन आंदोलनों के साथ हो चुका है। ये सभी
कॉर्पोरेट शासन के खिलाफ जल,
जंगल और ज़मीन की रक्षा के लिए संघर्ष
कर रहे हैं।
लेकिन अब सरकार ने
हमारे खिलाफ दमन तेज कर दिया है। बॉक्साइट की वैश्विक मांग बढ़ रही है, इसलिए सरकार अब पुलिस बल का उपयोग करके खनन की प्रक्रिया को तेज
करना चाहती है। प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) अब 'प्रगति' योजना के तहत राज्य सरकारों और
प्रशासन को यह सुनिश्चित करने के लिए मजबूर कर रहा है कि खनन परियोजनाओं में कोई
बाधा न आए।
हमारा अस्तित्व
बनाम पूंजीवादी विकास
जो हमारे लिए जीवन, जीविका और पर्यावरण है, वे उसे सिर्फ बाजार में बिकने वाला
माल समझते हैं। इसलिए हमारे आंदोलनकारियों पर झूठे केस लादे जा रहे हैं, उन्हें जेलों में डाला जा रहा है, और आंदोलन को 'माओवादी गतिविधि'
करार देकर दमन किया जा रहा है।
हमने सरकार, कॉर्पोरेट, मीडिया और पुलिस की सच्चाई समझ ली है।
अब हमारा संघर्ष और भी संगठित,
और भी मजबूत होगा।
आज, सरकारें हमारे आदिवासी अस्तित्व को मिटाने की कोशिश कर रही हैं। हमारे
जन्म प्रमाण पत्रों से लेकर स्कूलों तक, हमें हिंदू या ईसाई धर्म के दायरे में
समेटा जा रहा है, लेकिन हमारे वास्तविक प्रकृति-आधारित
धर्म को स्वीकार नहीं किया जा रहा। सरकारी और निजी स्कूलों में हमें हमारी
संस्कृति और हमारे जल-जंगल-जमीन आंदोलनों के खिलाफ गुमराह किया जा रहा है, ताकि हम सरकार और कंपनियों के गुलाम बन जाएँ।
आंदोलन के माध्यम
से यह स्पष्ट किया जा चुका है कि यह केवल हमारे जीवन-जीविका की लड़ाई नहीं है, बल्कि हमारे जीवन-दर्शन, हमारे ज्ञान परंपरा और हमारी
विश्वदृष्टि की लड़ाई भी है,
जिसे कॉर्पोरेट खनन करने की कोशिश कर
रहे हैं।
यह हमारी अपनी भाषा (कुँई भाषा ) को
बचाए रखने की लड़ाई भी है, क्योंकि अगर हमारा अस्तित्व न बचा तो
हमारी भाषा भी न बच सकेगी। एक ओर सरकार हमें हमारी प्रकृति से विस्थापित करना
चाहती है, तो दूसरी ओर आदिवासी मेला में हमारी
संस्कृति को बाज़ार में बेचकर हमें प्रदर्शन के वस्तु के रूप में सजाकर रख दिया जा
रहा है, जिसके खिलाफ हम विरोध कर रहे हैं। इन
दो-तीन वर्षों में सरकार ने हम पर विभिन्न प्रकार के आक्रमण किए हैं।
हमने आंदोलन के
माध्यम से यह संदेश दिया है कि हम हिन्दू-क्रिश्चियन नहीं, बल्कि प्रकृतिधर्म को ही अपना धर्म मानते हैं। हमें यह भी ज्ञात है
कि ओडिशा में मोहन-माझी सरकार के आने का अर्थ कभी भी हमारे आदिवासी के लिए
मंगलकारी नहीं होगा। मुख्यमंत्रि के पद संभालने के बाद ही वेदांत के मालिक अनिल
अग्रवाल आकर हमसे मिलने का संकेत दे रहे हैं कि हमारे पहाड़ से बॉक्साइट लेने के
लिए नई मसौदा तैयार हो चुकी है।
इस संदर्भ में, वेदांत कंपनी के दलालों का एक रैली लांजीगढ़ में आयोजित हो चुका है, जहाँ कंपनी को नियमगिरि में खनन करने की अनुमति देने के लिए फिर से
ग्रामसभा बुलाई जाने की अनेकों लोकतांत्रिक और असंवैधानिक मांग उठी है। हमने प्रेस
के सामने अपना विरोध स्पष्ट कर दिया है। हमने चेतावनी दी है कि यदि नियमगिरा के
प्रति हमारे भाव-आवेग का अपमान करते हुए हमारी जमीन, जल, जंगल को कंपनी के हवाले कर दिया गया
तो स्थिति भयावह हो जाएगी।
इस प्रकार, आगामी 21, 22 और 23 तारीख को हम नियमगिरि पहाड़ के धांगड़ाभट्टा स्थान पर वार्षिक रूप से अपने नियमराजा पर्व का आयोजन करेंगे। यदि पहाड़ बचे रहेंगे तो झरने बचेंगे, खेत बचेंगे, जीव-जंतु बचेंगे, मनुष्य बचेंगे और सर्वोपरि पृथ्वी एवं प्रकृति बचेंगी; अन्यथा पर्यावरण अत्यधिक गर्म हो जाएगा और हम में से कोई भी जीवित नहीं रह सकेगा। आपका और हमारे बीच जो हमारेंब कंदा(सकरकंद ), अदा(अदरक ), हल्दी, सपुरी, पणस(कटहल )के बाजार हैं, वे समाप्त हो जाएंगे। बॉक्साइट को तो हम कभी बेच नहीं पाएंगे। मगर खनन से निकलने वाली लाल मिट्टी से किलोमीटर-किलोमीटर खेत नष्ट हो जाएंगे। हमारी वंशावली और नागाबलियों की नदियाँ सूख जाएँगी।
इसलिए यह लड़ाई हम
सबकी है। पर्व से पहले गाँव-गाँव को जोड़ने के लिए हम एक पदयात्रा करने का भी
प्रस्ताव रखते हैं। नियमगिरि देश के लोगों, हम आपका आमंत्रण करते हैं... आइए, सभी मिलकर इस प्रकृति-पर्यावरण को बचाने का संकल्प लें।
यह वही पर्व है जिसमें पूरे विश्व के
आदिवासी, मूलनिवासी की लड़ाई से प्रेरणा
प्राप्त होकर हम इसे सफल बनाएंगे।
*नियमगिरि सुरक्षा समिति की ओर से आपके:**
लद सिक्का, कुञ्जी कुट्रुका,
दधि पुषिका, दसरू काड्राका,
ड्रेंजू कृशका, दधि सिक्का, साइब पुषिका एवं अन्य नियमगिरिबासिन्
संपर्क:
- दैतारी गौड़ (फ़ोन - 9439069172)
- लस्के सिक्का (फ़ोन - 7978261268)
- पूर्णचंद्र टाकरी (फ़ोन - 9384723692)
..प्रशांत सोनवणे 8308138411 महाराष्ट्र
**पर्व में शामिल होने वाले बाहरी साथियों के लिए सूचना:**
मुनिगुड से लांजीगढ़ होकर त्रिलोचनपुर रास्ते में चले जाएँ; त्रिलोचनपुर से पूर्व में नियमगिरि के तले इजिरूपा गाँव (कुल मिलाकर लगभग 22 किलोमीटर) स्थित है। इजिरूपा से पहाड़ चढ़ते ही पर्व स्थल, नियमगिरि शिखर – धांगड़ाभट्टा पहुँचेंगे। शिखर की ठंडक से सुरक्षा के लिए साथ में ठंडे वस्त्र लाना अनिवार्य है।
( सन्दर्भ / साभार - नियमगिरि सुरक्षा समिति ,अध्यक्ष, लद सिक्का एवं लकपदरंक द्वारा प्रकाशित )
पानी पर्यावरण से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का
संकलन –पानी पत्रक
पानी पत्रक (214-19 फरवरी 2025 )जलधारा अभियान, 221 ,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020, संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com
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