रविवार, 23 फ़रवरी 2025

आर्टीफिसिअल इनटेलीजेंस,पर्यावरण को भी बर्बाद कर सकती है

 

10 एवं 11 फरवरी 2025 को पेरिस में तीसरा (पहलाब्रिटेन में नवम्बर 23, दूसरादक्षिण कोरिया में मई 24) ‘आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस शिखर सम्मेलन’ सम्पन्न हुआ। यह सम्मेलन इसलिए महत्वपूर्ण बताया गया क्योंकि इसके पहले चीन की कंपनी ‘डीपसीक’ ने ‘एआई’ के मॉडल ‘आर-1’ को मैदान में लाकर दुनिया में तहलका मचा दिया था।

पेरिस के ‘एआई शिखर सम्मेलन’ AI Summit में ‘एआई’ को लेकर वैश्विक व्यवस्था बनाने, निष्पक्षता,पारदर्शिता, नैतिकतानिजता का उल्लंघनरोजगारस्वास्थ्य तथा शिक्षा में मदद आदि विषयों पर तो चर्चाएं हुईंपरन्तु इसके कारण बढती ऊर्जा खपत एवं कार्बन-उत्सर्जन जैसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया गया।

इधरभारत के ताजा केन्द्रीय बजट (2024-25) में विज्ञान एवं तकनीक को ध्यान में रखकर एवं बढावा देने हेतु ‘डीप-टेक-सेक्टर’ की व्यवस्था की गयी है। इसके तहत 20,000 करोड़ रूपये से एक कोष (फंड) बनाया जायेगा। इसके अतिरिक्त 500 करोड़ रूपये ‘एआई’ के लिये आवंटित किये जायेंगे। शिक्षा के लिए ‘एआई केन्द्र’ स्थापित किये जाने पर भी विचार किया जाएगा। ‘डीप-टेक-सेक्टर’ में ‘एआई’ बायो-टेक्नॉलॉजी, रोबोटिक्सनैनो-टैक्नॉलॉजीसेमी-कंडक्टर्स तथा विज्ञान के अन्य क्षेत्र शामिल रहेंगे।

एआई’ वास्तव में कम्प्यूटर विज्ञान की ही एक शाखा है। यह एक ऐसी तकनीक हैजिसके माध्यम से मशीनों को मानव मस्तिष्क की तरह सोचने एवं कार्य करने में सक्षम बनाया जाता है। ‘एआई’ धीरे-धीरे हमारे जीवन का हिस्सा बनती जा रही हैजिससे जीवन आसान तो बन रहा हैपरंतु पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है। बिजली तथा पानी की ज्यादा खपत के साथ-साथ बड़े पैमाने पर कार्बन-उत्सर्जन भी बढ़ रहा है।

वर्ष 2019 में ‘मेसाचुएट्स एमहर्स्ट विश्वविद्यालय’ के शोधकर्ताओं ने बताया था कि एक एकल एआईमॉडल को प्रशिक्षित करने में पांच कारों के निर्माण जितना कार्बन-उत्सर्जन होता है। ‘कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय’ के अध्ययन के अनुसार ‘जीपीटी-03’ के प्रशिक्षण व निर्माण की पूरी प्रक्रिया से लगभग 500 टन कार्बन-उत्सर्जित होता है। इसमें कच्चे माल के खननशुद्धिकरणपरिवहन तथा कचरे के उपचार आदि क्रियाओं से निकले उर्त्सजन शामिल हैं। जापानी वैज्ञानिक प्रो. पेंगफी तथा सहयोगियों ने अनुमान लगाया है कि ‘जीपीटी-03’ को प्रशिक्षित करने में 2 से 7 लाख लीटर पानी की जरूरत होगी।

एआई’ के लिए ‘डाटा सेंटर्स’ की संख्या के साथ बिजली की खपत भी बढेगी। वर्तमान में 10 हजार से ज्यादा विशाल ‘डाटा सेंटर्स’ कार्यरत बताये गये हैं। इनके लिए सैकड़ों-हजारों की संख्या में ‘सर्वर’ का उपयोग होता है जो बड़ी मात्रा में ऊर्जा की खपत करते हैं जिससे वातावरण में गर्मी पैदा होती है। गर्मी कम करने हेतु पानी या एयर-कंडीशनर का इस्तेमाल करने पर फिर दोनों (बिजली व पानी) की खपत बढ़ती है।

अमरीकी ऊर्जा सूचना प्रबंधन’ के अनुसार 2022 में वैश्विक स्तर पर ‘डाटा सेन्टर्स’ पर जितनी ऊर्जा खर्च हुई वह कई देशों की बिजली की औसत मांग के बराबर या ज्यादा थी। एक अनुमान के अनुसार सूचना-प्रौद्यौगिकी क्षेत्र वर्ष 2030 तक बिजली उत्पादन का 20 प्रतिशत उपयोग करने लगेगा एवं कार्बन-उत्सर्जन में इसका योगदान 5.5 प्रतिशत से ज्यादा होगा। ‘गूगल’ की ‘वार्षिक पर्यावरण रिपोर्ट’ के अनुसार वर्ष 2022 की तुलना में 2023 में ‘डाटा सेंटर्स’ पर कार्बन- उत्सर्जन में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

एआई’ की वजह से बढ़ती ऊर्जा मांगों के कारण कार्बन-उर्त्सजन कम करना एक बड़ी चुनौती है। अध्ययनों से पता चला है कि ‘एआई,’ चेटबाटचेट जीपीटी पर पूछी गई साधारण जानकारी ‘गूगल’ की तुलना में 10 से 33 प्रतिशत ज्यादा ऊर्जा (बिजली) का उपयोग करती है। ‘एआई’ मॉडल भी अधिक डाटा-प्रोसेस व फिल्टर के कारण ‘गूगल’ की तुलना में ज्यादा ऊर्जा की खपत करता है। ‘गूगल’ ने वर्ष 2022 में अपने ‘डाटा-सेंटर्स’ को ठंडा रखने हेतु लगभग 20 अरब लीटर पानी का उपयोग किया। एक पर्यावरण एजेन्सी ने 2024 में बताया कि ‘एआई’ के बढ़ते उपयोग से 2025 तक इंग्लैण्ड को रोजाना 6 अरब लीटर अतिरिक्त पानी की जरूरत होगी।

नीति आयोग’ की एक रिपोर्ट के अनुसार बैंगलुरू के अलावा दिल्लीमुम्बई व चैन्नई महानगरों में ‘डाटा सेंटर्स’ पर पानी की खपत बढ़ रही है। बढ़ती पानी की खपत को ध्यान में रखकर ‘गूगल’ एवं माइक्रोसाफ्ट’  उपचारित पानी उपयोग करने का प्रयास कर रहे हैं। पर्यावरणविदों ने सूचना प्रौद्यागिकी के जानकारों को सलाह दी है कि नवीकरण ऊर्जा (रिन्युएबल एनर्जी) का उपयोग बढ़ाएं, ‘डाटा-सेंटर्स’ में सघन हरियाली फैलाऐं एवं इनको ठंडा रखने हेतु उपचारित पानी का बार-बार उपयोग करें।

कुछ संदर्भों में ‘एआई’ को पर्यावरण के लिए उपयोगी भी बताया गया हैजैसे किसी पारिस्थितिकी-तंत्र (इकोसिस्टम) का मानचित्रणउत्पादन आंकलनऊर्जाबहाव एवं पुनरूद्धार की योजना आदि में सहायता देना। ऊर्जा दक्षता बढ़ाने तथा जलवायु परिवर्तन से पैदा समस्याओं के समाधान में भी इसकी उपयोगिता संभव है।  ‘एआई’ भूस्खलनभूकम्पनबाढ़तूफान एवं मानसून की स्थिति आदि घटनाओं के पूर्वानुमान में भी मददगार हो सकती है। विज्ञान हमेशा तकनीक देता हैपरंतु इसका उपयोग मानव विवेक पर निर्भर रहता है। ‘एआई’ तकनीक का भी विवेकपूर्ण उपयोग जरूरी है। वर्ष 2024 के ‘नोबल पुरस्कार’ विजेता ‘एआई’ के ‘गॉडफादर’ जैफरी हिंटन ने कहा है कि यह तकनीक कभी भी हमारे कंट्रोल से बाहर हो सकती है। 

 ( सन्दर्भ /साभार - सर्वोदय प्रेस सर्विस में डॉ. ओ. पी. जोशी का लेख )

 पानी पर्यावरण से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलनपानी पत्रक

पानीपत्रक(215-23फरवरी2025)जलधाराअभियान,221,पत्रकारकॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com

  

 

बुधवार, 19 फ़रवरी 2025

नियमराजा पर्व 2025 - संघर्षशील साथियों को आमंत्रण

जय नियमराजा! जय धरनी पेनु!

 नियमराजा पर्व 2025 

21, 22 और 23 फरवरी  

स्थान: धांगड़ाभाटा (नियमगिरि शिखर)  

आयोजक: नियमगिरि सुरक्षा समिति  

संघर्षशील साथियों को आमंत्रण  

हम नियमगिरि के डोंगरिया कोंध(कंन्ध )लोग बीते 20 वर्षों से अपने पहाड़ को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। इस संघर्ष में देश और दुनिया के कई बुद्धिजीवी, शिक्षाविद, मानवतावादी और जनवादी शक्तियाँ हमारा समर्थन और एकजुटता दिखाकर हमें मजबूत बना रही हैं।  

यह पहाड़ हमारी जीविका, जीवन-दर्शन और अस्तित्व का आधार है। यहाँ असंख्य झरने बहते हैं, विभिन्न प्रकार के वृक्ष, लताएँ, औषधीय पौधे, जीव-जंतु और सरीसृप पलते हैं। यह पहाड़ हमें सामूहिकता और एकता का पाठ पढ़ाता है। हम 112 गाँवों के लोग परस्पर निर्भर रहकर जीवन यापन करते हैं। हम इस भूमि को साफ करके मंडिया(रागी ), कंदुल, मक्का और अन्य फसलें उगाते हैं। इसलिए नियमगिरि हमारे लिए सिर्फ एक पहाड़ नहीं, बल्कि हमारे इष्टदेव 'नियमराजा' और हमारी माँ 'धरनी पेनु' का प्रतीक है।  

 हमारे पर्व भी इसी प्रकृति के साथ जुड़े हुए हैंखेती से लेकर फसल कटाई तक हमारे त्योहार चलते हैं, जिनमें नृत्य और गीतों की धुनें गूंजती हैं। यह पहाड़ हमें सिखाता है कि समाज सामूहिकता से चलता है, प्रकृति भेदभाव नहीं करती और मिट्टी हमें बाजार की लूट और पूंजीवाद के खिलाफ संघर्ष करना सिखाती है। 

हमारे संघर्ष का कारण 

इंग्लैंड की कंपनी वेदांत हमारे पहाड़ से बॉक्साइट चुराने की कोशिश कर रही है। पहले उन्होंने लांजीगढ़ इलाके में बसे हमारे झरनिया कोंध समुदाय के आंदोलन को कुचलकर वहाँ बॉक्साइट रिफाइनरी प्लांट लगा दिया। हमारी सहमति के बिना, झूठे वादों और छल-कपट से, तीन गाँवों के लोगों के घरों पर बुलडोजर चला दिया गया और उन्हें जबरन 'वेदांत नगरी' नामक कॉलोनी में भेज दिया गया।  

वेदांत के मालिक अनिल अग्रवाल नियमगिरि के बॉक्साइट को लूटने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। लेकिन हमने यह स्पष्ट कर दिया—'हम मर जाएंगे, लेकिन अपने पवित्र पहाड़ को नहीं देंगे!'  

हमारे संघर्ष में कई साथियों ने बलिदान दिया, जेल गए, पुलिस की बर्बरता सही, लेकिन हमने न सरकार को, न कंपनी को अपने नियमगिरि पर कदम रखने दिया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से ग्राम सभाओं ने 100% सहमति से वेदांत को खनन से बाहर का रास्ता दिखाया। यह ऐतिहासिक जन-आंदोलन की जीत थी।  

लेकिन खतरा अभी भी बरकरार है  

न केवल नियमगिरि, बल्कि दक्षिण-पूर्व ओडिशा की पूर्वी घाटी पर्वतमालाओं में फैले सभी पहाड़ों में बॉक्साइट मौजूद है। इन पहाड़ों को हड़पने के लिए कई कंपनियाँ सरकार से मिलीभगत कर रही हैं।  

कंपनि ने सरकार, पुलिस, शहरी मध्यम वर्ग और मीडियासभी को खरीद लिया है। 

हम और हमारी प्रकृति एक तरफ हैं, और दूसरी तरफ हमारे संसाधनों को लूटने वाले कॉर्पोरेट और उनके समर्थक।  

हमारी विचारधारा और अगला कदम

हम नियमराजा के वंशज हैं, हम बिरसा मुंडा के 'हमारा देश, हमारा राज' के सिद्धांत से प्रेरित हैं। सरकार, कंपनियाँ या एनजीओहम किसी की अधीनता स्वीकार नहीं करते।  

हमारे आंदोलन का विस्तार अब सीजीमाली, कुट्रुमाली, माझिंगमाली, खंडुआलमाली, माली पर्वत जैसे अन्य जन आंदोलनों के साथ हो चुका है। ये सभी कॉर्पोरेट शासन के खिलाफ जल, जंगल और ज़मीन की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं।  

लेकिन अब सरकार ने हमारे खिलाफ दमन तेज कर दिया है। बॉक्साइट की वैश्विक मांग बढ़ रही है, इसलिए सरकार अब पुलिस बल का उपयोग करके खनन की प्रक्रिया को तेज करना चाहती है। प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) अब 'प्रगति' योजना के तहत राज्य सरकारों और प्रशासन को यह सुनिश्चित करने के लिए मजबूर कर रहा है कि खनन परियोजनाओं में कोई बाधा न आए।  

हमारा अस्तित्व बनाम पूंजीवादी विकास  

जो हमारे लिए जीवन, जीविका और पर्यावरण है, वे उसे सिर्फ बाजार में बिकने वाला माल समझते हैं। इसलिए हमारे आंदोलनकारियों पर झूठे केस लादे जा रहे हैं, उन्हें जेलों में डाला जा रहा है, और आंदोलन को 'माओवादी गतिविधि' करार देकर दमन किया जा रहा है।  

हमने सरकार, कॉर्पोरेट, मीडिया और पुलिस की सच्चाई समझ ली है। अब हमारा संघर्ष और भी संगठित, और भी मजबूत होगा।  

आज, सरकारें हमारे आदिवासी अस्तित्व को मिटाने की कोशिश कर रही हैं। हमारे जन्म प्रमाण पत्रों से लेकर स्कूलों तक, हमें हिंदू या ईसाई धर्म के दायरे में समेटा जा रहा है, लेकिन हमारे वास्तविक प्रकृति-आधारित धर्म को स्वीकार नहीं किया जा रहा। सरकारी और निजी स्कूलों में हमें हमारी संस्कृति और हमारे जल-जंगल-जमीन आंदोलनों के खिलाफ गुमराह किया जा रहा है, ताकि हम सरकार और कंपनियों के गुलाम बन जाएँ।

आंदोलन के माध्यम से यह स्पष्ट किया जा चुका है कि यह केवल हमारे जीवन-जीविका की लड़ाई नहीं है, बल्कि हमारे जीवन-दर्शन, हमारे ज्ञान परंपरा और हमारी विश्वदृष्टि की लड़ाई भी है, जिसे कॉर्पोरेट खनन करने की कोशिश कर रहे हैं।

  यह हमारी अपनी भाषा (कुँई भाषा ) को बचाए रखने की लड़ाई भी है, क्योंकि अगर हमारा अस्तित्व न बचा तो हमारी भाषा भी न बच सकेगी। एक ओर सरकार हमें हमारी प्रकृति से विस्थापित करना चाहती है, तो दूसरी ओर आदिवासी मेला में हमारी संस्कृति को बाज़ार में बेचकर हमें प्रदर्शन के वस्तु के रूप में सजाकर रख दिया जा रहा है, जिसके खिलाफ हम विरोध कर रहे हैं। इन दो-तीन वर्षों में सरकार ने हम पर विभिन्न प्रकार के आक्रमण किए हैं।  

हमने आंदोलन के माध्यम से यह संदेश दिया है कि हम हिन्दू-क्रिश्चियन नहीं, बल्कि प्रकृतिधर्म को ही अपना धर्म मानते हैं। हमें यह भी ज्ञात है कि ओडिशा में मोहन-माझी सरकार के आने का अर्थ कभी भी हमारे आदिवासी के लिए मंगलकारी नहीं होगा। मुख्यमंत्रि के पद संभालने के बाद ही वेदांत के मालिक अनिल अग्रवाल आकर हमसे मिलने का संकेत दे रहे हैं कि हमारे पहाड़ से बॉक्साइट लेने के लिए नई मसौदा तैयार हो चुकी है।  

इस संदर्भ में, वेदांत कंपनी के दलालों का एक रैली लांजीगढ़ में आयोजित हो चुका है, जहाँ कंपनी को नियमगिरि में खनन करने की अनुमति देने के लिए फिर से ग्रामसभा बुलाई जाने की अनेकों लोकतांत्रिक और असंवैधानिक मांग उठी है। हमने प्रेस के सामने अपना विरोध स्पष्ट कर दिया है। हमने चेतावनी दी है कि यदि नियमगिरा के प्रति हमारे भाव-आवेग का अपमान करते हुए हमारी जमीन, जल, जंगल को कंपनी के हवाले कर दिया गया तो स्थिति भयावह हो जाएगी।  

 इस प्रकार, आगामी 21, 22 और 23 तारीख को हम नियमगिरि पहाड़ के धांगड़ाभट्टा स्थान पर वार्षिक रूप से अपने नियमराजा पर्व का आयोजन करेंगे। यदि पहाड़ बचे रहेंगे तो झरने बचेंगे, खेत बचेंगे, जीव-जंतु बचेंगे, मनुष्य बचेंगे और सर्वोपरि पृथ्वी एवं प्रकृति बचेंगी; अन्यथा पर्यावरण अत्यधिक गर्म हो जाएगा और हम में से कोई भी जीवित नहीं रह सकेगा। आपका और हमारे बीच जो हमारेंब कंदा(सकरकंद ), अदा(अदरक ), हल्दी, सपुरी, पणस(कटहल )के बाजार हैं, वे समाप्त हो जाएंगे। बॉक्साइट को तो हम कभी बेच नहीं पाएंगे। मगर खनन से निकलने वाली लाल मिट्टी से किलोमीटर-किलोमीटर खेत नष्ट हो जाएंगे। हमारी वंशावली और नागाबलियों की नदियाँ सूख जाएँगी।  

इसलिए यह लड़ाई हम सबकी है। पर्व से पहले गाँव-गाँव को जोड़ने के लिए हम एक पदयात्रा करने का भी प्रस्ताव रखते हैं। नियमगिरि देश के लोगों, हम आपका आमंत्रण करते हैं... आइए, सभी मिलकर इस प्रकृति-पर्यावरण को बचाने का संकल्प लें।  

   यह वही पर्व है जिसमें पूरे विश्व के आदिवासी, मूलनिवासी की लड़ाई से प्रेरणा प्राप्त होकर हम इसे सफल बनाएंगे।  

  *नियमगिरि सुरक्षा समिति की ओर से आपके:**  

लद सिक्का, कुञ्जी कुट्रुका, दधि पुषिका, दसरू काड्राका, ड्रेंजू कृशका, दधि सिक्का, साइब पुषिका एवं अन्य नियमगिरिबासिन्  

  संपर्क:  

- दैतारी गौड़ (फ़ोन - 9439069172)  

- लस्के सिक्का (फ़ोन - 7978261268)  

- पूर्णचंद्र टाकरी (फ़ोन - 9384723692)  

 ..प्रशांत सोनवणे 8308138411 महाराष्ट्र

  **पर्व में शामिल होने वाले बाहरी साथियों के लिए सूचना:**  

  मुनिगुड से लांजीगढ़ होकर त्रिलोचनपुर रास्ते में चले जाएँ; त्रिलोचनपुर से पूर्व में नियमगिरि के तले इजिरूपा गाँव (कुल मिलाकर लगभग 22 किलोमीटर) स्थित है। इजिरूपा से पहाड़ चढ़ते ही पर्व स्थल, नियमगिरि शिखर धांगड़ाभट्टा पहुँचेंगे। शिखर की ठंडक से सुरक्षा के लिए साथ में ठंडे वस्त्र लाना अनिवार्य है।  

  ( सन्दर्भ / साभार - नियमगिरि सुरक्षा समिति ,अध्यक्ष, लद सिक्का एवं लकपदरंक द्वारा प्रकाशित )

 पानी पर्यावरण से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलन –पानी पत्रक

पानी पत्रक (214-19 फरवरी 2025 )जलधारा अभियान, 221 ,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020, संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com

  

  

पाकिस्तान की कृषि बर्बाद हो रही है: आर्थिक सर्वेक्षण ने सरकारी नीतियों की विफलता को उजागर किया

पाकिस्तान का कृषि क्षेत्र ढह रहा है - और इसका दोष पूरी तरह से शहबाज शरीफ सरकार की विनाशकारी नवउदारवादी नीतियों पर है। संघीय बजट से पहले 9 ज...