रविवार, 3 सितंबर 2023

पश्चिमी राजस्‍थान में सोलर पॉवर प्‍लांट के प्रभाव

           पश्चिमी राजस्‍थान में सोलर पॉवर प्‍लांट के प्रभाव पर 26 अगस्‍त 2023 को

आयोजित ऑनलाईन वार्ता का संक्षिप्‍त कार्यवृत्त

ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत्रों के रूप में इन दिनों सोलर प्लांट और एयर टर्बाइन के प्लांट चलन में हैं। राजस्थान सरकार ने भी इसी उद्देश्‍य से प्रदेश के उत्तर-पश्चिमी भाग में हज़ारों हेक्टर जमीन निजी कंपनियों को आवंटित की है जिससे न सिर्फ व्‍यक्तिगत विस्‍थापन बल्कि पूरे समूदाय की आजीविका और भोजन आत्‍मनिर्भरता प्रभावित हो रही है; पलायन भी  हो रहा है।

इन योजनाओं से प्रभावित ग्रामीण समुदाय अपने-अपने स्‍तर पर आवाज उठा भी रहे हैं। लेकिन, उनके इस महत्‍वपूर्ण संघर्ष की खबरें सुर्खिया नहीं बन पा रही है। मीडिया में इन योजनाओं के संबंध में सिर्फ प्रायोजित खबरें और विज्ञापन ही दिखाई देते हैं। कभी कभार कोई यदि खबर देखने को मिल भी जाए तो उसे तोड़-मरोड़ कर कानून-व्‍यवस्‍था का मामला बना कर प्रस्‍तुत किया जाता है।

देश के अन्‍य हिस्‍सों में बसने वाले नागरिक भी पश्चिमी राजस्‍थान की साझा समस्‍या से रुबरु हो सके, इसी उद्देश्‍य से इस वार्ता का आयोजन किया गया था जिसमें राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, आसाम, छत्तीसगढ़ और दिल्ली के 21 प्रतिभागियों ने हिस्‍सा लिया और जैसलमेर के तीन साथियों – सर्व श्री पार्थ जगानी, सुमेरसिंह सांवता और चतरसिंह जाम ने अपनी बातें रखीं. तो जानते हैं उनकी रखीं बातों को .

श्री पार्थ जगानी (जैसलमेर)

आम तौर पर राजस्‍थान और खासतौर से पश्चिमी राजस्‍थान को रेतीली बंजर भूमि माना जाता है। जबकि यहाँ की अपनी पास्थितिकी है जहाँ विविधतापूर्ण घास के मैदान है, छोटी झाड़ियाँ और बड़े पेड़ हैं, चिंकारा-लोमड़ी है, ग्रेट इंडियन बस्‍टर्ड है। यहाँ प्रवासी पक्षियों के झुण्‍ड आते हैं औं इस पारिस्थितिक तंत्र में जीने के पर्याप्‍त संसाधन मौजूद है तभी तो लोग सदियों से यहाँ रहते हैं। 

सोलर पार्क और विंड मिल की स्‍थापना के लिए इस पारिस्थितिक तंत्र को बर्बाद कर दिया गया है। असंख्‍य पेड़ काट दिए गए हैं। आज भी पेड़ों की अंधाधुंध कटाई जारी है। कहीं कहीं तो 10-15 किमी तक लगातार पेड़ काट दिए गए हैं। इस कारण हमें कैर, खेजड़ी और पीलू के फल नहीं मिल पा रहे और हमारे भोजन की विविधता घटती जा रही है। यहाँ 4 रंगों में कैर मिलते हैं जो खाए जाते हैं। लेकिन सोलर पार्क के कारण बड़े पैमाने पर इन पेड़ों की कटाई के कारण अब यह फूल बहुत कम मिल रहे हैं। 

लाला और कराड़ा गाँवों के बीच सोलर पार्क बना दिया गया है। चारागाह खत्‍म होने से पशुपालन मुश्किल हो गया है और उन ग्रामीणों की आजीविका संकट में आ गई है। उनके घर और जमीनें सोलर पार्क से घिर गए हैं। सोलर पार्क की बाऊँड्री वाल के कारण एक गाँव से दूसरे गाँव जाने के लिए  कई कई किमी का चक्‍कर लगाना पड़ता है। पशुओं के लिए घास चारा लाने के लिए भी इसी तरह लंबा रास्‍ता तय करना पड़ता है। 

सोलर पैनल फि‍क्‍स करने के लिए जमीन में 5-5 फूट की दूरी पर सीमेंट-कांक्रीट के पिलर बना दिए गए हैं जिससे जैविक मोटा अनाज पैदा करने वाले ये खेत खराब हो चुके हैं। एग्रीमेंट अवधि खत्‍म होने के बाद जब कंपनी जमीन खाली करेगी तब भी उनमें खेती करना मुश्किल होगा। सोलर पॉवर प्‍लांट के लिए किसानों की जमीनें 25 सालों के लिए लीज पर ली गई है। एग्रीमेंट अंग्रेजी या क्लिष्‍ठ हिंदी में लिखे हैं जो स्‍थानीय समुदाय के लिए समझना कठिन है।

वर्ष 2000 में जैसलमेर में पवन चक्‍की लगाते समय बहुत बड़े दावे किए गए थे जो गलत साबित हुए। छोटे ठेकेदारों को प्‍लांट लीज पर देते समय उत्‍पादित बिजली का दाम 8-8.50 रुपए/यूनिट बताया गया था लेकिन अभी वास्‍तव में 2 रुपए/यूनिट ही मिल पा रहे हैं। 

सोलर पॉवर प्‍लांट तथा पवन चक्‍की परियोजनाओं के विस्‍तार के बाद कई लोगों ने अपनी संपत्तियाँ बेचकर गाड़ियाँ खरीद ली थी जो माँग कम होने के कारण अब ठीक से चल नहीं रही है। कुछ किसानों ने सोलर पार्क में गार्ड की नौकरी कर ली थी जिनमें से अब ज्‍यादातर की छँटनी कर दी गई है। इसके विपरीत पशुधन आधारित व्‍यवस्‍था में पूरा परिवार अलग-अलग जिम्‍मेदारियों के साथ काम में लगा रहता है। वहाँ एक झटके में बेरोजगारी का खतरा नहीं है। 

निडान गाँव में कुछ पशुपालक परिवार 1947 से बसाए गए हैं। इन्‍हें आश्‍वासन दिया गया था कि उन्‍हें उस जमीन का मालिकाना हक दे दिया जाएगा जहाँ वे बसाए गए हैं। लेकिन, ज्‍यादातर लोगों को अभी तक यह हक नहीं मिला है और अब इन परिवारों के कब्‍जे वाली जमीन पर भी कम्पनी का सोलर पार्क बन गया है। इनका बुरा हाल है। जमीन भी हाथ से निकल गई और पशुपालन भी मुश्किल हो गया है। इनके पास पशुओं के लिए पानी तक की व्‍यवस्‍था नहीं बची है। पास के गाँव जाने के लिए इन्‍हें 35 किमी का चक्‍कर लगाना पड़ रहा है। 

बड़े-बडे सोलर पार्क से राजस्‍थान के राज्‍य पशु ब्‍लेक बक और अन्‍य जंगली जानवरों का जीवन कठिन हो गया है। अपना भोजन खोजते हुए वे रास्‍ता भटक जाते हैं। सोलर पार्क की तार वाली बाउँड्री में उलझ कर मर भी जाते हैं। 

बड़े पैमाने पर लगाए गए सोलर पैनल से बारिश पर प्रभाव के बारे में कोई अध्‍ययन नहीं हुआ है लेकिन स्‍थानीय निवासी इसे महसूस कर रहे हैं। सोलर पैनल के रिफलेक्‍शन से पैदा हुई गर्मी से हवा में खालीपन बढ़ा है जिससे हवाओं की गति बढ़ी है। इस समय बारिश के दिनों में भी आंधियाँ चल रही है। बादल नहीं बन रहे हैं। इसका असर बरसात के पैटर्न पर भी दिखाई दे रहा है। इस बार दोनों सावन सूखे निकल गए। जुलाई-अगस्‍त के बजाय, मई जून में बारिश हुई है जिससे फसलें प्रभावित हो रही हैं।

पेड़-पौधों से मिले कैर और सांगरी जैसे फलों का इस्‍तेमाल भोजन के लिए होता है। पहले लाला कराड़ा जैसे गाँवों की महिलाएँ गाँव के आसपास के पेड़ों से यह आसानी जुटा लेती थी। अब या तो ये पेड़ काट दिए गए हैं या बीच में सोलर पार्क आ जाने के कारण इन पेड़ों की दूरी इतनी बढ़ गई है कि महिलाओं का वहाँ पहुँचना मुश्किल हो गया है। इन दिनों सांगरी के फल बाजार में 1200 रुपए किलो बिक रहे हैं जो हमारे लिए खरीद पाना असंभव है।

जगानी जी ने अपनी बात को और पुख्ता बनाने के लिए पी पी टी का इस्तेमाल किया .  

श्री सुमेरसिंह सांवता

मरुस्‍थल के संवेदनशील पर्यावास को बचाना बहुत जरुरी है। लेकिन सरकार का ध्‍यान इस ओर नहीं है। जिन कंपनियों को सोलर पार्क के लिए जमीनें दी है वे कंपनियाँ पेड़ों की बेतहाशा कटाई कर रही है लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। नदी नालों का रास्‍ता रोकने पर सजा का प्रावधान है लेकिन विकास के नाम पर हमारे नदी, तालाब और उनके आगोर नष्‍ट कर दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद राजस्‍थान के राज्‍य वृक्ष खेजड़ी समेत अन्‍य वृक्षों की भी अंधाधुंध कटाई जारी है। पेड़ काटने में मात्र कुछ मिनिट लगते हैं जबकि उसे बड़ा करने में सालों की मेहनत लगती हैं। 

इस इलाके का इकोसिस्‍टम तेजी से असं‍तुलित होता जा रहा है। खेती खत्‍म की जा रही है। ये गतिविधियाँ हमारे अस्तित्‍व को संकट में डाल रही है। इन मामलों पर आवाज उठाई जानी चाहिए लेकिन इस अपरिवर्तनीय नुकसान के खिलाफ आवाज उठाने वालों को प्रताड़ित किया जाता है। हाई टेंशन लाईन का विरोध करने पर मेरे खेत में 5 टॉवर खड़े कर दिए गए हैं। 

पशुधन इस इलाके की अर्थव्‍यवस्‍था का महत्‍वपूर्ण घटक है। लेकिन, सोलर पार्क के कारण चारागाह सिकुड़ते जा रहे हैं। पशुधन के नुकसान से स्‍थानीय समुदाय की आर्थिक स्थिति खराब होती जा रही है। खेती की जमीन और वन्‍य जीव भी खत्‍म होते जा रहे हैं। मेरे देखते हुए एक के बाद एक कई तालाब खत्‍म हो गए। प्रवासी पक्षियों का पर्यावास लगातार सिमटता जा रहा है। 

हमारे लिए यह बहुत दुखद स्थिति है। हमारा भविष्‍य अंधकारमय नज़र आ रहा है। इस स्थिति से हमारे गाँवों को बचाया जाना चाहिए। विकास का यह तरीका पूरे देश के लिए नुकसानदायक साबित होगा। 

अतीत में देखा गया है कि अकाल का प्रभाव पश्चिमी राजस्‍थान में नहीं होता था। यहाँ 46 प्रकार की घास उपलब्‍ध है। अकाल के दिनों में कुछ घासों के बीज हमारी जान बचाते थे। इन बीजों को अनाज के साथ पीस कर खाने में उपयोग किया जाता था। पहले इंदिरा गाँधी नहर ने हमारी घासों की विविधता को कम किया। इस बार सोलर पॉवर से यही हमला हो रहा है। 

 इसी समय श्री पार्थ जगानी ने जोड़ा कि 1899 में जैसलमेर में अकाल (इसका असर देश के कई हिस्‍सों में पड़ा था) पड़ा था तब घास-चारे का गंभीर संकट था। पशुपालकों को अपने पशुओं के साथ पलायन करना पड़ा था। उस समय तत्‍कालीन रियासत द्वारा रिजर्व फारेस्‍ट में चराई को मंजूरी दी गई थी।

श्री चतरसिंह जाम ने जोड़ा कि सोलर पार्क वाली कंपनियाँ बड़े लोगों की है। एक अडाणी की और दूसरी रिन्‍यू पॉवर यशवंत सिंहा के लड़के की है। ये हमारे जलस्रोतों को खत्‍म कर रहे हैं।

एक सवाल के जवाब में यह तथ्‍य सामने आया कि सोलर प्‍लेट को धोने के लिए बार-बार पानी की जरुरत होती है। एक अनुमान में मुताबिक 10 मेगावाट क्षमता के सोलर पॉवर प्‍लांट की प्‍लेटों को एक बार धोने के लिए करीब 1 लाख 65 हजार लीटर पानी की जरुरत होती है। यह पानी बोरवेल के माध्‍यम से जमीन से निकाला जाता जिससे वहाँ के भू-जल स्‍तर पर प्रभाव पड़ रहा है। 

वार्ता का संचालन रहमत भाई ने और आयोजन -मंथन अध्‍ययन केन्‍द्र (बड़वानी), 

जलधारा अभियान (जयपुर), सेंटर फॉर फायनेंशियल एकाउंटिबिलिटी (नई दिल्‍ली) और भारत ज्ञान विज्ञान समिति (जयपुर) ने किया 
                   पानी से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलनपानी पत्रक
पानी पत्रक (121- सितम्बर 2023) जलधारा अभियान, 221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्र शंकर -7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com

1 टिप्पणी:

  1. पूरे रिसर्च को पढ़ने से समझ में आता है कि जो चीज पहले बहुत अधिक रोमांचित करती है और उसकी इस रूप में पेश किया जाता है कि इससे सारी समस्याएं कम हो जाएंगे। ऐसा लगता है कि किसी चीज को कम में लेने से पहले या उसे विस्तार का रूप देने से पहले उस पर गहन विचार और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विश्लेषण करने की जरूरत होती है और साथ में जो लोग वहां रह रहे होते हैं उनकी राय उनसे पूरी जानकारी देकर उनकी समझ को जोड़ने की भी जरूरत होती है और उससे पहले ही बड़े पूंजी पति इस प्रकार पेश करते हैं कि यह सबसे उत्तम हल है, विकास के नाम पर जितने भी बड़े प्रोजेक्ट हुए हैं उनको समझने देखते हैं मुझे ऐसे लगा है कि स्मॉल इस ब्यूटीफुल के सिद्धांत पर विकास को आगे बढ़ना चाहिए जिसमें जो लोग वहां रहते हैं उनकी भागीदारी को सुनिश्चित करना जरूरी है यदि वह इन चीजों के बारे में जानकारी नहीं रखते तो पहले उनको जानकारी देना उनके साथ तसल्ली से बात करना और जो सही रूप से वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते हुए पूरे वातावरण के प्रभावों को सामने नहीं रखते ऐसे में बड़े दुष्प्रभाव होने की संभावना बन जाती है ऊर्जा एक ऐसी जरूरत है जो आज हर इंसान को चाहिए और वह कैसे किस प्रकार सबको मिले इसका भी प्लान बनना जरूरी है, लेकिन प्रश्न आता है जब बड़े-बड़े उद्योग लगाने के लिए बहुत सारा ऊर्जा एक साथ पूंजीपतियों को चाहिए, और हर सरकार अपने 5 साल के काल में कुछ ऐसा करके जाना चाहती है जिसको जिसका बखान किया जा सके और उसके आधार पर वोट लिए जा सके उसमें से उन लोगों पर जो प्रभाव पड़ता है जिनकी आवाज को स्थान नहीं मिलता जो सुनी नहीं जाती तो उसका कोई ज्यादा असर नहीं पड़ता जो सुविधा खड़ी करते हैं उसी का ही बार-बार दिखाया जाता है।ह

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