सोमवार, 15 अप्रैल 2024

कोशी पीड़ितों के न्याय के सवाल पर

कोशी नव निर्माण मंच ने निकाली सत्याग्रह पदयात्रा

(जनवरी –फरवरी में, कड़ाके की ठंड में, 250 किमी पैदल चलकर 14 दिन में कोशी की फरियाद सुनाने पटना पहुंचेंगे सत्याग्रही। )

 महात्मा गांधी जी के बलिदान दिवस पर 30 जनवरी  2024  को बिहार के सुपौल जिले बैरिया मंच से " गांधी के रास्ते, कोशी पीड़ितों के न्याय के वास्ते"  सत्याग्रह पदयात्रा शुरू हुई इस पदयात्रा को रवाना, देश के अमर बलिदानी शहीद भगत सिंह के भांजे प्रो जगमोहन सिंह जी ने किया। यात्रा चलते हुए सुपौल के गांधी मैदान पहुंची जहां उन्होंने सभा को संबोधित किया। 

यात्रा में सैकड़ो लोग ठंड में चलते हुए, बकौर, सहरसा के नौहट्टा, हाटी, एकार, बलुआहा, मीटिंग करते हुए तरही में समाजवादी नेता परमेश्वर कुअर की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे। वहां से घोंघेपुर में बैठक करते हुए वैज्ञानिक मानस बिहारी वर्मा की स्मृति में कमला नदी पर बने तटबंधों के बीच इटहर कुशेश्वर स्थान में सभा, कमला करेह के बीच के सवालों पर झझरा हाई स्कूल पर सभा हुई। रोसड़ा दलसिंह सराय, महनार, बिद्दूपुर होते हुए  लोगों को जगाते हुए अनेक जगह सभा करते हुए 14 वें दिन 250 किलोमीटर चलकर पटना के गर्दनी बाग पहुंचे जहां सत्याग्रह आयोजित हुआ।  मेधा पाटकर,प्रफुल्ल सामन्त्रा डाक्टर सुनीलम जी यात्रा पटना पहुंचने पर शामिल हो गए थे। संघर्ष और संवाद जारी रखने के संकल्प के साथ 15 फरवरी को सत्याग्रह का समापन हुआ। यात्रा में दीपक ढोलकिया, अरविंद मूर्ति, लोकेंद्र भारती, अवकाश प्राप्त मुख्य अभियंता फुलेंद्र सिंह, राम पुकार महतो, जेएनयू के अवकाश प्राप्त प्रो एसएन मालाकार, उमेश राय इत्यादि वरिष्ठ लोग शामिल रहे। तो इंद्र नारायण सिंह, आलोक राय, सिघेश्वर राय अर्चना सिंह, प्रियंका, बबिता, राहुल यादुका, आरिफ निजाम, संतोष मुखिया, जय प्रकाश, रणवीर, सतीश, संदीप, विद्याकर झा, रजनीश, अरविंद, मणिलाल जैसे अनेक लोग व्यवस्था में लगे थे।यात्रा एवं कोसी नव निर्माण मंच के संयोजकों में प्रमुख  महेंद्र यादव पूरी यात्रा में भी रहे और व्यवस्था में भी .  

     *यात्रा की पृष्ठभूमि *


देश की आजादी के बाद कोसी की बाढ़ से लोगों को राहत दिलाने के नाम पर कोसी को दो पाटों में कैद किया गया, लेकिन लगातार बनते तटबंधों ने अब कोसी को कई पाटों (तटबंधों) में बंद कर दिया है. कोसी नदी पर 1955 में तटबंध बनाने का काम शुरू हुआ जो कि1961-62 में पूरा हुआ . तटबंध बनाकर नदी की धारा को नियंत्रित दिशा दी गई.  हिंदी की ऑनलाइन पत्रिका वायर में मनोज सिघ के मुताबिक , कोसी और उसकी सहायक नदियों पर बने तटबंधों व लिंक रोड की लंबाई अब 706.85 किलोमीटर हो चुकी है.

 प्रसिद्ध नदी विशेषग्य  डॉ दिनेश कुनार मिश्र  के अनुसार ,1963 में कोसी पर तटबंधों के पूरा होने के साथ, कोसी के दोनों तटबंधों के बीच 304 गांवों में लगभग 192,000 की आबादी फंस गई थी। यह संख्या बढ़कर 9,88,000 (2001 की जनगणना) हो गई और तटबंधों के विस्तार के कारण गांवों की संख्या 380 हो गई। यह आबादी 4 जिलों और 13 ब्लॉकों में फैली हुई है।


उस समय यानि 50 के दशक में ,तटबंध के ख़िलाफ़ स्थानीय लोगों ने विरोध प्रदर्शन तक किए थे. कोसी क्षेत्र में अब गांवों की स्थिति तटबंध के अंदर और तटबंध के बाहर से परिभाषित होती है.

 इनके बीच फसे लाखों लोगों का समुचित पुनर्वास आज तक नही किया गया| हर साल ये लोग बाढ़, कटाव की भीषण तबाही भोगने पर मजबूर है । तटबंधों के भीतर हर साल अनेक गांवों के भूगोल ही बदल जाते है | कटाव से उजड़े लोग कभी बांध पर तो कभी इधर-उधर दूसरे की जमीन पर बसने को मजबूर होते है| शिक्षा की बदहाल स्थिति है| अधिकतर इलाकों में एक भी उप-स्वास्थ्य केंद्र इस क्षेत्र में कार्यरत नही है| यहाँ तक कि बच्चों और महिलाओं के बुनियादी टीकाकरण की सुविधा भी उपलब्ध नहीं है।उनकी रैयती जमीन भूमि सर्वेक्षण में सरकारी खाते में दर्ज करने या उलझाने सहित तरह-तरह से परेशान करने के लिए नियम आदेश निकालते रहते है । सर्वे में भ्रष्टाचार शिष्टाचार बन गया है| उनकी जमीन पर पहले से  4 हेक्टेयर तक पर माफ लगान को भी सरकारी कर्मचारी वसूलते हैं| इन लोगों के कल्याण के लिए बिहार के कैबिनेट और चंद्रकिशोर पाठक कमिटी के प्रस्ताव पर 1987 में गठित कोशी पीड़ित विकास प्राधिकार गायब है। कोशी पीड़ित विकास प्राधिकार के तय कार्यक्रमों में तटबंध के भीतर के लोगों की खेती का विकास, सभी बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराने, स्वास्थ्य की बुनियादी व्यवस्था दिलाने, तटबंध के बीच के छात्रों-युवाओं को सरकारी और प्राइवेट की समूह ग, घ की सभी नौकरियों में लाभान्वित 8 जिलों में 15% आरक्षण देने सहित 17 बिन्दुओं पर कार्य करना था| यह भी सोचने की जरूरत है कि दुनिया की चौथी सबसे ज्यादा गाद लाने वाली नदी के सिल्ट और गाद से नदी के तटबंध के भीतर का तल क्रमशः ऊँचा हो रहा है | कोशी बैराज की उम्र भी 25  वर्ष ही निर्धारित थी | इधर विश्व मौसम विज्ञान केंद्र की रिपोर्ट है कि 100 साल में जो धरती का समग्र तापमान बढने वाला था, वह 5 वर्षो के भीतर बढने की सम्भावना है| इसका असर हिमालय पर पड़ेगा। तेज मुसलाधार वर्षा, बादल फटने, भूस्खलन, भू-क्षरण की घटनाएँ बढ़ने की सम्भावना हैइसका सीधा असर कोशी तटबंध के भीतर के लोगों पर पड़ेगा और उनकी तबाही और बढ़ेगी| बाहर के सुरक्षित लोगों के समक्ष भी कुसहा त्रासदी की भांति कभी भी खतरा आ सकता है, उसकी सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता है| सरकार इन नदी और पर्यावरण के गम्भीर सवालों को समझकर इसके अनुकूल नीति अपनाने के बजाय कोशी नदी के पश्चिमी तटबंध की चौड़ाई कम करते हुए सुरक्षा बांध और उसके लिए स्पर निर्माण विश्व बैंक और अन्य एजेंसियों से कर्ज लेकर कर रही है और हाई डैम का रटा-रटाया जुमला उछाल कर अपनी जिम्मेवारियों से इतिश्री कर लेती है|

 कोशी नव निर्माण मंच लगातार शांतिपूर्ण तरीके से महापंचायत और अनेक कार्यक्रम करते हुए कोशी के गम्भीर सवालों और कोशी नीतिगत अन्याय के शिकार लोगों के न्याय की मांग को उठा रहा है पर उस पर अपेक्षित सुनवाई नहीं हो रही हैदेश के प्रमुख विशेषज्ञों ने कोशी नदी घाटी जनायोग का गठन कर इन लोगों के वर्तमान के सवालों पर एक रिपोर्ट दी है। उस रिपोर्ट को सरकार के सभी सम्बन्धित विभागों को दिया गया है परन्तु इस पर कोई ठोस कार्रवाई नही हो रही है|  

कोशी के अलावा कमला, बलान, बागमती( करेह) बुढ़ी गंडक, बाया, गंगा सहित अन्य नदियों और समुदाय के कटाव, विस्थापन, जल निकासी सहित स्थानीय और नदी के जीवन के सवाल भी कम महत्व के नही है। ऊपर से जलवाऊ परिवर्तन के दौर में भविष्य के बढ़ते खतरे है।

 कोशी की प्रमुख मांगे :

1.कोशी तटबंध के बीच के लोगों का सरकार सर्वे कराकर पुनर्वास से वंचित लोगों को पुनर्वास दे साथ ही कोशी बाढ़ कटाव से विस्थापित होकर तटबंध/बांध या आसपास की जमीन में बसे लोगों का भी सर्वे कराकर पुनर्वासित कराया जाए| वैसे परिवार जिनके पुनर्वास स्थलों पर दूसरे के कब्जे है, उन्हें और जिनके परिवार बढ़ने से पुनर्वास छोटा पड़ रहा है, उनको भी पुनर्वास दिया जाए। इस सभी परिवारों को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ देते हुए उनके घर बनाने के लिए  पैसे भी दिए जाए।

2.कोशी पीड़ित विकास प्राधिकार को सरकार पुनः सक्रिय कर उसे प्रभावी बनाये और उसके पूर्व में वर्णित कार्यक्रमों को को लागू करे।

3(क). तटबंध के भीतर के सभी सभी रैयतो को खेत के बदले उतना ही जमीन तटबंध के बाहर दे या आज के दर से बाहर की उपजाऊ जमीन के समान पूरी ज़मीन का मुआवजा दे।

3(ख) यदि यह तत्काल नहीं कर सकती है तो अविलम्ब चल रहे भूमि सर्वेक्षण में सभी रैयतो की नदी में समाहित जमीन उनके नाम रहे और उसका रकबा उनके खाते में दर्ज हो, उसके लिए निर्मित टूटे लाइन के नक्शे में उनके नम्बर भी अनिवार्य रूप से दर्ज कराने का प्रावधान हो। सरकार 4 हेक्टेयर तक के माफ़ लगान की वसूली पर रोक लगाए और अब तक वसूल की गयी राशि व्याज सहित वापस करें| लगानमुक्ति कानून/आदेश लाकर सम्पूर्ण लगान व सेस माफ करे। साथ ही जमीन का मालिकाना हक किसानों के पास रहे| प्रत्येक साल बाढ़ से उनकी फसलों व जमीन की हुई क्षति का क्षतिपूर्ति दे।

4. कोशी समस्या का पर्यावरण अनुकूल व जन पक्षीय समाधान करे। 

  इन मांगों का समर्थन करते है 

# तटबंध/ बांधो के कारण बाहर के जलजमाव, सीपेज क्षेत्रों से जल निकासी की व्यवस्था की जाए | इसके लिए जलीय कृषि विकास बोर्ड गठित कर उसके अनुकूल कृषि का विकास करते हुए सम्बन्धित किसानों को आवश्यक अनुदान/सहायता दिया जाए|

# सभी कटाव पीड़ितों को सरकारी खर्च पर बसाने के लिए सरकार कानून बनाए।

# जलवायु परिवर्तन की आ रही चेतावनियों को ध्यान में रखते हुए नदी, जल संकट से बचने के लिए-

* सभी नदियों पर बने तटबंधों सहित बुनियादी संरचनाओं की निरपेक्ष विज्ञान सम्मत जनभागीदारी करते हुए समीक्षा की जाए।

* छोटी नदियों के पुनर्जीवन पर कार्य हो

* नदी क्षेत्रों में विकास के कार्य भविष्य की चुनौतियों को देखते हुए किए जाएं।

# नदियों को जीवित इकाई मानते हुए, उनके संरक्षण, संवर्धन के लिए देश भर के जन संगठनों द्वारा निर्मित कानून के मसौदे के आधार पर कानून बनाया जाए।

 

(कोशी नव निर्माण मंच,नदी घाटी मंच ( NAPM)

 पानी से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलनपानी पत्रक                

पानी पत्रक ( 149-16 अप्रैल 2024 ) जलधारा अभियान, 221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com

 


 

 

 

 

 

  

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