( आज से चार साल पहले, शिलांग स्थित, फिल्म निर्माता तरुण
भारतीय ने मेघालय के दक्षिण
पश्चिम खासी हिल्स में डोमियासिएट की दिवंगत महिला के बारे में अपने ट्विटर हैंडल
पर एक थ्रेड पोस्ट किया, जिन्होंने,1993 में यूरेनियम खनन
के लिए अपनी ज़मीन बेचने से इनकार कर दिया था. 30 ओक्टुबर 2020
को डाउन टू अर्थ ने अपने
अंग्रेजी संस्करण में उसको छापा,जिसका अनुवाद यंहां दिया जा रहा है )
( कोंग स्पेलिटी लिंगदोह
लैंग्रिन - भारत के बाकी हिस्सों में लैंगरिन के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं, जबकि मेघालय में उन्हें एक आइकन माना जाता है । फोटो: तरूण भारतीय )
मेघालय
के पश्चिमी खासी हिल्स में डोमियासिएट की
कोंग स्पेलीटी लिंगदोह लैंगरिन अब नहीं रहीं।28 अक्टूबर 2020 की
रात 11.30 बजे
वे हमें छोड़कर चली गईं।डोमियासिएट की 95 वर्षीय महिला कोंग स्पेलीटी ने
अपनी ज़मीन पर यूरेनियम खनन की अनुमति देने से इनकार कर दिया था।
उनकी ज़मीन के 30 साल
के पट्टे के लिए 45
करोड़ रुपये की पेशकश की गई, उन्होंने कहा, "पैसे
से मेरी आज़ादी नहीं खरीदी जा सकती।"
आज जब मैं उनकी अनुपस्थिति को
समझने की कोशिश कर रहा हूं, मैं वह कहानी सुनाना चाहता हूं जो
मैंने कुछ समय पहले दुनिया को सुनाने की कोशिश की थी:
“ मेरे पास एक कहानी है । कई साल
पहले, मैं
पश्चिमी खासी हिल्स के डोमियासिएट गांव में था। डोमियासिएट भारत के सबसे बड़े
यूरेनियम भंडार के शीर्ष पर स्थित है। उन दिनों, आप सुबह शिलांग से फलांगडिलोइन
जाने वाली एकमात्र बस लेते थे । आठ घंटे और 50 किलोमीटर की यात्रा के बाद, शाम
को वाहकाजी में उतरते थे और फिर एक घंटे तक पैदल चलकर सात घरों वाले गांव में
पहुंचते थे। मैं कोंग स्पेलिटी लिंगदोह लैंगरिन से मिलना चाहता था। उन्होंने तीस
साल के लिए सालाना 1.5
करोड़ रुपये की पेशकश के बाद भी यूरेनियम कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (
यूसीआईएल-भारत सरकार की कम्पनी ) को अपनी जमीन पट्टे पर देने से इनकार कर दिया था।
यूरेनियम की खदानों की खोज और परीक्षण करने के लिए परमाणु खनिज प्रभाग के साथ आए वैज्ञानिकों -अफसरों को अपने गांव से खदेड़ने
में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी ,पर वह बाजार के लिए मिर्च और तेजपत्ता इकट्ठा करने
के लिए जंगल में गई थी ।
गांव में कोई भी हमें नहीं बता सका
कि वह कब वापस आएँगी। हम भाग्यशाली थे कि वह अगले दिन वापस आ गयीं।
चूंकि मैं पश्चिमी खासी पहाड़ियों
में था, इसलिए
मैं मावकीरवात के एक मित्र के साथ गया था, यह सोचकर कि वह खासी के मरम रूप के
अपने ज्ञान के साथ मेरे लिए अनुवाद करने में सक्षम होगा।
मैंने कोंग स्पेलिटी से उसकी जमीन, कि उसके
पास कितनी जमीन है, सभी
प्रकार की पारिवारिक और समाजशास्त्रीय
दस्तावेजी जानकारी के बारे में पूछा। उसे मेरे दोस्त का अनुवाद समझ में नहीं आया।
हमें एहसास हुआ कि हालाँकि वह पश्चिम से थी, लेकिन वह मरम से इतनी परिचित नहीं
थी।
इसलिए हमें दोहरा अनुवाद
करना पड़ा : अंग्रेजी से मरम और फिर मुखिया द्वारा खासी के स्थानीय संस्करण
में अनुवाद और फिर से वापस। उसने खुद को अमीर नहीं बताया, हालाँकि
उसके पास दो पहाड़ियाँ थीं।
मैंने उससे पूछा कि उसने अपनी
ज़मीन यूसीआईएल को पट्टे पर क्यों नहीं दी। उसने कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन
पेड़ों के झुंड की ओर तेज़ी से चलना शुरू कर दिया। हम उसके पीछे चले गए। झुरमुट
में वास्तव में एक छोटा झरना और तालाब छिपा हुआ था।
वह रुकी और मेरी ओर मुड़ी (जंगल की
धुंधली रोशनी से जगमगाती हुई) और स्वतंत्रता के बारे में कुछ कहा, कुछ
इस बारे में कि कैसे जमीन बेचना उसकी स्वतंत्रता बेचने जैसा होगा और क्या पैसे से
यह नदी, यह
जमीन, यह
झरना खरीदा जा सकता है ?
जाहिर है, मुझे
यह सब समझने में समय लगा, लेकिन मैं, वहाँ किसी तरह के ईडन
के सन्नाटे में खड़े होकर, स्पष्टता के आँसुओं से स्तब्ध
रह गया।
कुछ महीने बाद, मैं
जादूगोड़ा से सम्बंधित एक एक्सपोज़र ट्रिप में शामिल होने में कामयाब रहा, जिसे
यूसीआईएल तथा कुछ स्थानीय खासी हस्तियों (राजनेता, ठेकेदार, युवा
नेता, आप
समझ गए होंगे) के साथ आयोजित किया जा रहा था।
जिसका उद्देश्य ,कथित कहानी का मुकाबला करना
था, कि फिल्म बुद्धा वीप्स के प्रदर्शन के प्रदेर्शन के बाद से , यूरेनियम विरोधी
आंदोलन फैल रहा है।
यूसीआईएल के एक वरिष्ठ बंगाली
टेक्नोक्रेट से मेरी घानिष्ठता हो गयी.इसलिए एक दिन, मैंने उनसे यूरेनियम खनन से लोगों
के विस्थापन के बारे में पूछा।
उन्होंने मुझे आश्चर्य से देखा।
किस तरह का विस्थापन ? हम उनका पुनर्वास करेंगे। यह बहुत
आसान है। कितने लोगों का पुनर्वास करना है ? अधिकतम एक हजार । हम उन्हें वेतन
देंगे, उनके
लिए घर भी बनाएंगे, उनमें
से कुछ को वेतन पर रोजगार भी देंगे। वे ‘पहुंच योग्य’ हो
जाएंगे। वैसे भी, वे
बहुत ही अनुत्पादक लोग हैं, उनके पास जमीन हो सकती है लेकिन वे
उस जमीन का मूल्य नहीं जानते। लोग कड़ी मेहनत करते हैं लेकिन उन्हें इसके लिए
पारिश्रमिक नहीं मिलता।
यंहा, एक यह स्वतंत्रता थी जो
स्वामित्व के मौद्रिकीकरण से आती है जिसके बनाम एक स्वतंत्रता है जो अपनेपन से आती है। ‘विदेशी-द्वेषी’ पूर्वोत्तर
के बारे में अधिकांश बहसों में, हम, जो कि सामंती
और शोषण की भूमि से आये , इस बारे में कोई विचार नहीं रखते
हैं कि उन लोगों से कैसे निपटें जो भूमि को केवल उत्पादन के कारक के रूप में नहीं
बल्कि एक कल्पना, रहने
के लिए एक स्वर्ग के रूप में देखते हैं । मारवाड़ी, बंगाली या बिहारी के साथ मुंडा, खासी
या नागा की स्वतंत्रता की व्याख्या का
इतिहास बेमेल है । जो लोग ज़मीन के निजीकरण, अधिग्रहण, श्रम
को वस्तु में बदलने और पदानुक्रम को पवित्र मानने के साथ जी रहे हैं, उन्हें
कोंग स्पेलिटी को समझना मुश्किल लगता है।
यह उन लोगों के बीच संघर्ष है जो
सोचते हैं कि एक बीघा ज़मीन (बेचने पर मोद्रिक रूप से)आपको अंततः आज़ाद बनाती है और वे जो सोचते हैं कि कई
पहाड़ियाँ आपको अमीर नहीं बनातीं ।
यह उत्पादकता की दुनिया बनाम आम
लोगों के सपने को जीना है ।
यह जनसंख्या-विरल समुदायों बनाम
जनसंख्या-सघन समाज का दुंअद है।
दक्षिण पश्चिम खासी हिल्स जिले में खासी छात्र संघ (केएसयू) ने, स्पिलिटी लिंगदोह लैंगरीन की पुण्यतिथि, 28 अक्टूबर को, हर साल ‘यूरेनियम विरोधी दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की है।
( सन्दर्भ / साभार –डाउन टू अर्थ
,इन्स्ताग्राम-तरुण भारतीय, हब न्यूज़, इंडियन एक्सप्रेस )
पानी से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलन –पानी पत्रक
पानी पत्रक(184– 29 अक्टूबर 2024) जलधारा अभियान, 221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com