रविवार, 8 दिसंबर 2024

गंगा सहित देश की छोटी बड़ी नदियां पर गहरा संकट , रक्षा के लिए आन्दोलन का ऐलान

चार दशक बाद, गंगा की नई चुनौतियों से लड़ने के लिए गंगा मुक्ति आंदोलन फिर से मैदान में आ चुका है। बिहार के मुजफ्फरपुर के चंद्रशेखर भवन में गंगा मुक्ति आंदोलन के   28, 29 और 30 नवंबर 2024 को हुए राष्ट्रीय सम्मेलन में गंगा बेसिन की समस्या और इसके समाधान पर देश भर के चिंतकों, विशेषज्ञों और जमीनी कार्यकर्ताओं ने गंभीर मंथन कर इस नतीजे पर पहुंचे कि गंगा सहित देश भर की सभी छोटी बड़ी नदियां व्यवसायीकरण की शिकार हो गई है और बरबाद हो गई है । ये नदियां खासकर किनारे बसे लोगों के लिए जैसे सदियों से आजीविका का श्रोत थी, वह अब नहीं रह गई है। उसका पानी जहरीला हो गया है और मानव सहित पशु पक्षी और वनस्पतियों के लिए किसी भी तरह उपयोगी नहीं रह गया है। इस पर भी विचार हुआ कि मछुआ, केवट, गंगोटा सहित अन्य समुदायों के लिए नदियां संसाधन नहीं हैं, वे गंगा जमुना संस्कृति की संस्थापिका है। नदियों के किनारे हमारे नायकों और संतों के स्मारक भी हैं जो अब पर्यटन और मनोरंजन के नाम पर विकसित किए जा रहे  स्थलों के कारण छिन्न भिन्न हो रहे हैं ।ऐसे में गंगा सहित सभी नदियों की रक्षा  के लिए राष्ट्रीय स्तर पर समग्र आंदोलन शुरू करने की जरूरत बताई गई।

गंगा बेसिन का लगभग 79 फीसदी क्षेत्र भारत में है। बेसिन में 11 राज्य शामिल हैं,- उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और दिल्ली।

                   ( गंगा रिवर बेसिन )
सम्मेलन में ,बिहार, झारखण्ड ,दिल्ली ,उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश ,राजस्थान, बंगाल और महाराष्ट्र के साथ साथ नेपाल से भी, विशेषज्ञ और जमीनी कार्यकर्ता शामिल हुए.

राष्ट्रीय विमर्श के केन्द्र में नदियों का गाद से पेट भरना , प्रदूषण ( औद्योगिक और नगरीय कचरा ) पानी की कमी , बालू उठाव और खनन , नदी की जैव विविधता, ग्लेशियर का पिघलना , जलवायु संकट , कार्बन उत्सर्जन , पारिस्थितिकी असंतुलन , औद्योगिक क्रांति से पनपे विकास की विनाशकारी अवधारणा और जल जंगल जमीन पर जीने वाले समुदाय का अधिकार रहे।

गंगा मुक्ति आंदोलन के प्रणेता अनिल प्रकाश ने गंगा समेत अन्य नदियों को दोहन से बचाने के लिए बड़े आंदोलन का आह्वान किया साथ ही कहा कि जब दूसरे देश में बांध तोड़े जा रहे हैं, तब वहीं आज भारत में विश्व बैंक से कर्ज लेकर बांध पर बांध बनने को हरी झंडी दी जा रही है। इसके मूल में राजनेता, नौकरशाही और ठेकेदारों का गठजोड़ है। सारा खेल कमीशन का है। इसके कारण पूरी व्यवस्था भ्रष्टाचार में लिप्त है। क्या कारण है कि बांधों के सवाल पर सरकारी कमेटी में शामिल विशेषज्ञों की राय को नजर अंदाज किया जा रहा है। इसीलिए फरक्का बराज सहित तमाम बांध, बराज ,तटबंध के विरूद्ध आंदोलन जारी रहेगा।

उत्तराखंड  से आये साथिओं का  कहना था कि मध्य हिमालय में स्थित गौमुख ग्लेशियर में हो रहे बदलाव को समझना बहुत जरूरी है। समय रहते यदि इसके चारों ओर के पर्यावरण संरक्षण और संयमित विकास पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाले दिनों में बहुत बड़ी समस्या पैदा हो सकती है। उत्तराखंड में गंगा के उद्गम आपदा और जलवायु परिवर्तन के चलते बुरी तरह प्रभावित हैं। इस भयानक स्थिति के बाद भी गंगा की एक महत्वपूर्ण धारा भागीरथी के उद्गम से ही गंगा की निर्मलता को लेकर एनजीटी ने बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। दूसरी बात है कि भागीरथी के उद्गम में लाखों देवदार के पेड़ों पर संकट की तलवार लटक रही है। यहां चौड़ी सड़क बनाने के लिए घने देवदार के जंगल को काटने की तैयारी चल रही है । इस विषय को तो राष्ट्रीय विमर्श का मुद्दा बनाया जाना ही चाहिए और एक बार फिर देशवासी उद्गम से लेकर देश में जहां-जहां से गंगा बह रही है उन तमाम राज्यों से हो रहे प्रदूषण, अतिक्रमण, शोषण के खिलाफ एक बार फिर से नदी बचाओ अभियानकी तर्ज पर एकत्रित होकर आवाज बुलंद करना चाहिए।

   (आंदोलन को धार देने के लिए गंगा मुक्ति आंदोलन अगला सम्मेलन कहलगांव में )

सम्मेलन के आखिरी दिन आगामी कार्यक्रम , रणनीति, आयाम व संगठन पर केंद्रित रहा। इस सत्र की अध्यक्षता गंगा मुक्ति आंदोलन के अगुआ अनिल प्रकाश व संचालन उदय ने किया। इस सत्र में पंद्रह सूत्री प्रस्ताव पारित किया गया। वक्ताओं ने एक स्वर में प्रथम प्रस्ताव पर कहा कि 1990 में बिहार सरकार ने बिहार की सभी नदियों को पारंपरिक मछुओं के लिए करमुक्त किया था लेकिन वर्तमान में बिहार सरकार डाल्फिन सेंचुरी और अन्य कायदे कानून के नाम पर नि:शुल्क शिकारमाही के अधिकार को शिथिल कर रही है इसलिए गंगा मुक्ति आंदोलन बिहार में फ्री फिशिंग एक्ट बनाने की मांग को लेकर जोरदार आंदोलन करेगा। साथ ही साथ देश की तमाम नदियां व अन्य जल स्त्रोतों में पारंपरिक मछुओं के लिए टैक्स फ्री हो इसके लिए भी देश भर में अभियान चलाया जाएगा।

दूसरे प्रस्ताव में कहा गया कि बिहार में स्पेशल जमीन सर्वे का काम हो रहा है। बिहार सरकार सभी नदियों का सर्वेक्षण कर उसका चौहद्दी व क्षेत्र फल निर्धारित कर सीमांकन करें। मुजफ्फरपुर जिले के कई स्कूलों में सरला श्रीवास सोशल कल्चरल रिसर्च फाउंडेशन द्वारा गंगा बेसिन: समस्या और समाधानको लेकर जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित की गये.
गंगा मुक्ति आंदोलन का 43 वां स्थापना दिवस, भागलपुर जिला के कहलगांव में 22 फरवरी 2025 को मनाया जाएगा, जिसमे चार दशक के गंगा मुक्ति आंदोलन का मूल्यांकन होगा और संगठन के आगामी कार्यक्रम व दिशा पर चर्चा होगी ।खा जा रहा है कि  कहलगांव सम्मेलन में देश भर के नदियों पर काम करने वाले कार्यकर्ता जुटेंगें ।

( सन्दर्भ – सर्वोदय प्रेस सर्विस , हिंदुस्तान ,प्रभातखबर.कॉम ,देवभूमि न्यूज़ सर्विस ,मूज न्यूज़ )

पानी पर्यावरण से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलन –पानी पत्रक

पानी पत्रक (195 – 9 दिसम्बर 2024 ) जलधारा अभियान221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020, संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com



 

  

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