मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025

अरावली जंगल सफारी परियोजना को रद्द करने की मांग करते हुए,37 सेवानिवृत्त वन अधिकारियों ने प्रधान मंत्री को पत्र लिखा

 

( पत्र में कहा गया है कि हरियाणा में प्रस्तावित अरावली सफारी पार्क वन संरक्षण अधिनियम और विभिन्न अदालती फैसलों के अनुसार 'अवैध' होगा )


हरियाणा और केंद्र सरकार की हरियाणा राज्य के गुरुग्राम और नूंह अरावली क्षेत्र में प्रस्तावित, अरावली जंगल सफारी परियोजना, निर्माण को लेकर एक बार विरोध के स्वर उठने लगे हैं. पर्यावरण प्रेमियों और स्थानीय पशुपालकों ने इस परियोजना को अरावली सरक्षंण के लिए पहले ही घातक बताया था, लेकिन 6 फरवरी 2025 को हरियाणा, दिल्ली व राजस्थान समेत करीब 14 राज्यों के कुल 37 सेवानिवृत्त वन अधिकारियों ने 10,000 एकड़ की जंगल सफारी निर्माण को अरावली के लिए खतरा बताते हुए प्रधानमंत्री समेत वन मंत्रालय को आपत्तियों के विवरण व सुझावों के साथ पत्र लिख, विरोध किया है .

उनका कहना है कि अरावली को जंगल सफारी निर्माण के बजाय सरंक्षण की जरूरत है. सफारी निर्माण से अरावली का नुकसान होगा. इस परियोजना से अरावली की प्राकृतिक अवस्था बिगड़ेगी. इसलिये पत्र में उत्तर  भारत में,670 km की लम्बाई में, दिल्ली ,हरयाणा राजस्थान और गुजरात में फैली और दुनिया की सबसे  पुरानी पर्वत श्रेणियों में से एक, को  संरक्षित करने के लिए व्यापक संरक्षण और सुरक्षा रणनीतियों की तत्काल आवश्यकता की मांग की।

 अप्रैल 2022 में, हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी सरकार ने राज्य के गुरुग्राम और नूंह जिलों में अरावली जंगल सफारी पार्क की घोषणा की थी. अक्टूबर 2022 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा था  कि इस परियोजना में दस क्षेत्र शामिल होंगे, जिनमें सरीसृप, पक्षी, विदेशी जानवर और बाघ, शेर, तें दुआ और चीता जैसी बड़ी बिल्लियों के छेत्र भी शामिल होगें. यह 2024 के हरियाणा चुनावों के लिए भाजपा के चुनावी वादों का भी हिस्सा था। हरियाणा वन विभाग द्वारा कुछ वर्ष पहले किए गए सर्वेक्षण के अनुसार,अरावली के हरियाणा छेत्र में 180 पक्षी प्रजातियां, 15 स्तनपायी प्रजातियां, 29 जलीय प्रजातियां, 57 तितली प्रजातियां और कई सरीसृप प्रजातियां पाई जाती हैं।

महाराष्ट्र के सेवानिवृत्त पीसीसीएफ डॉ अरविंद झा ने कहा अरावली जंगल सफारी परियोजना का उद्देश्य हरियाणा राज्य में पर्यटकों की संख्या बढ़ाना और पर्यटन क्षेत्र में सरकारी और निजी निवेश को बढ़ाना है। अरावली का संरक्षण इसका लक्ष्य नहीं है।

( सूरजकुंड-बड़खल रोड फरीदाबाद में अरावली पर्वतमाला से होकर गुजरती है। 1960 के दशक तक, अरावली की भूमि को आम गांव की भूमि माना जाता था और इसका उपयोग चराई और अन्य ऐसे उद्देश्यों के लिए किया जाता था। ( साभार-एक्सप्रेस फोटो/अभिनव साहा)

 पूर्व वनपालों ने आगे लिखा, “पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में मानव यातायात, वाहनों की आवाजाही और निर्माण को बढ़ाने के अलावा, प्रस्तावित सफारी पार्क अरावली पहाड़ियों के नीचे के जलभृतों को भी प्रभावित करेगा जो गुरुग्राम और नूंह के जल-संकटग्रस्त जिलों के लिए महत्वपूर्ण भंडार हैं।जलभृत आपस में जुड़े हुए हैं, इसलिए कोई भी बदलाव भूजल को प्रभावित कर सकता है। सफारी परियोजना पार्क में अंडरवाटर जोन की परिकल्पना है, परन्तु  पत्र के अनुसार, जंगल सफारी परियोजना की योजनाबद्ध अंडरवाटर ज़ोनपानी की कमी वाले क्षेत्र में जल स्तर को बदल सकता है। पर्यावरण के प्रति संवेदनशील अरावली क्षेत्र में किसी भी हस्तक्षेप का प्राथमिक उद्देश्य संरक्षण और बहालीहोना चाहिए, न कि विनाश जो  जंगल सफारी जैसी परियोजनाओं से आएगाहरियाणा राज्य के लिए भारत में सबसे कम वन क्षेत्र लगभग 3.6% है, अरावली पर्वतमाला ही एकमात्र बचाव है, जो इसके वन क्षेत्र का बड़ा हिस्सा प्रदान करती है। अगर इसे अछूता छोड़ दिया जाए, तो अरावली पर्वतमाला इस शुष्क क्षेत्र में नमी और पर्याप्त वर्षा वापस लाने के लिए पर्याप्त होगी,”

 “ जंगल सफारी को अक्सर वन्यजीव संरक्षण के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है क्योंकि वे लुप्तप्राय प्रजातियों के प्रजनन में भूमिका तो निभा सकते हैं, लेकिन सीमित स्थानों में जानवरों को कैद में रखने की प्रथा उनके प्राकृतिक व्यवहार पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। सबसे प्रभावी संरक्षण प्रयास चिड़ियाघरों में बंदी प्रजनन कार्यक्रमों पर निर्भर रहने के बजाय प्राकृतिक आवासों की रक्षा करने और जंगल में खतरों को समझने पर ध्यान केंद्रित करने में है।“ महाराष्ट्र के सेवानिवृत्त पीसीसीएफ डॉ. अरविंद झा ने यह भी कहा.

अरावली भारत की पारिस्थितिकी और सांस्कृतिक विरासत हैं। अरावली को पृथ्वी पर सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक होने का गौरव प्राप्त है, जिसकी उत्पत्ति लगभग 1800 मिलियन वर्ष पुरानी है। कुछ विशेषज्ञ अरावली को 2500 मिलियन वर्ष पुराना मानते हैं। इस नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र के विनाश से महत्वपूर्ण जैव विविधता हानि, भूमि क्षरण और वनस्पति आवरण में गिरावट हो रही है, जो अरावली की गोद में रहने वाले समुदायों, मवेशियों और वन्यजीवों पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है.डॉ. आर.पी. बलवान, सेवानिवृत्त वन संरक्षक, दक्षिण सर्कल हरियाणा ने कहा, उन्होंने अरावली पर 'द अरावली इकोसिस्टम - मिस्ट्री ऑफ द सिविलाइजेशन' नामक पुस्तक भी लिखी है।

पत्र में कहा गया है कि पिछले कुछ दशकों में, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली तक फैली अरावली पर्वत श्रृंखला खनन और निर्माण गतिविधियों के कारण सुधार से परे क्षतिग्रस्त हो गई है। खनन माफिया राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा, फ़रीदाबाद और गाजियाबाद में तेजी से बढ़ते रियल एस्टेट उद्योग की आपूर्ति के लिए निर्माण सामग्री प्राप्त करने के लिए पर्यावरण मानदंडों की पूरी तरह से अवहेलना करते हुए चट्टानों का अवैध उत्खनन करते हैं। हम समझते हैं कि खनन कंपनियों के खनन से  रॉयल्टी के रूप में सालाना 5000 करोड़ रुपये मिलते हैं लेकिन यह राजस्व प्राप्ति हमारी नदियों, पहाड़ों, जंगलों के विनाश की कीमत पर हो रहा है.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति ने 2018 में खुलासा किया कि उत्तरी राजस्थान में अलवर जिले की कुल 2269 पहाड़ियों में से 128 के नमूने लिए गए थे , यह देखा गया कि 1967-68 में भारतीय सर्वेक्षण स्थलाकृतिक शीट तैयार होने के समय की 31 पहाड़ियाँ अस्तित्व में नहीं हैं। समिति ने दर्ज किया कि राजस्थान के 15 जिलों में अवैध खनन प्रचलित था, जिनमें से कुछ सर्वाधिक दुष्प्रभावित क्षेत्र अलवर और सीकर थे।'' इसके अलावा, अधिकारियों ने बताया कि 1975 से 2019 के बीच उपग्रह चित्रों के आधार पर एक अध्ययन किया गया था, जो अरावली पर्वतमाला में स्थानिक भूमि कवर और भूमि उपयोग पैटर्न और वर्गों के बीच उनके संरक्षण के बीच संरक्षण पर प्रकाश डालता है। ''परिणामों से पता चलता है कि 1975 से 2019 तक 3676 किमी और 776. 8 किमी (4.86 प्रतिशत और 1.02 प्रतिशत) बंजर भूमि और बस्तियों में परिवर्तित हो गए, अरावली में 5772.7 किमी (7.63 प्रतिशत) वन भूमि कम हो गई है। वर्ष 2019 में कुल 16360.8 वर्ग किमी (21.64 प्रतिशत) वन भूमि को बंदोबस्त वर्ग में परिवर्तित किया गया है।"

 केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति ने 2008 -2010 के उपग्रह चित्रों का हवाला देते हुए अपनी रिपोर्ट में बताया कि अवैध खनन की सीमाएं कई मामलों में 100% से अधिक है खासतौर पर लघु खनिज के लिए आवंटित छोटी खदानों के संबंध में,समिति ने सिफारिश की कि हरियाणा और राजस्थान सरकार को कानूनी रूप से स्वीकृत खनन पट्टा क्षेत्रों के बाहर सभी खनन गतिविधियों को तुरंत रोकना चाहिए और ऐसी गतिविधियों में शामिल लोगों की पहचान करनी चाहिए और उन पर मुकदमा चलाना चाहिए। इसे कभी भी उस उत्साह के साथ लागू नहीं किया गया जिसकी आवश्यकता थी, '' उत्तर प्रदेश के सेवानिवृत्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्री उमा शंकर सिंह ने कहा.

पत्र में कहा गया है कि हरियाणा में प्रस्तावित अरावली जंगल सफारी पार्क वन संरक्षण अधिनियम और विभिन्न अदालती फैसलों के अनुसार भी 'अवैध' होगा। क्योंकि प्रस्तावित सफारी स्थल वन संरक्षण अधिनियम के तहत "वन" की कानूनी परिभाषा के अंतर्गत आता है और सुप्रीम कोर्ट तथा राष्ट्रीय हरित अधिकरण के उन फैसलों का हवाला दिया गया है, जो ऐसे क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई, निर्माण और रियल एस्टेट गतिविधियों पर रोक लगाते हैं। सेवानिवृत्त वन अधिकारियों ने कहा कि इससे सफारी पार्क के लिए प्रस्तावित व्यापक निर्माण "अवैध" हो जाएगा। 1980 का वन संरक्षण अधिनियम वन भूमि और उसके संसाधनों के संरक्षण के लिए विधायी समर्थन प्रदान करता है।

इस पत्र की प्रतियां केंद्रीय मंत्री और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सचिव, वन महानिदेशक और हरियाणा, गुजरात, ( राजस्थान और दिल्ली के मुख्य सचिवों को भी भेजी गई हैं।

(सन्दर्भ /साभार – The Indian Express , Scroll.in , DaillyPioneer,rediff.com The print )

 पानी पर्यावरण से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलन –पानी पत्रक

पानी पत्रक (212-12 फरवरी 2025 ) जलधारा अभियान, 221 ,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020, संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com

 

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