मंगलवार, 26 अगस्त 2025

केंते कोल परियोजना के विस्तार की अनुमति पर रोक को मांग-केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को वृंदा करात ने लिखा पत्र

 छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा हसदेव अरण्य क्षेत्र में केंटे विस्तारित कोयला परियोजना को मंजूरी का कड़ा विरोध करते हुए इस पर तत्काल रोक की मांग करते हुए माकपा की पूर्व सांसद वृंदा करात ने केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेंद्र यादव को निम्न पत्र लिखा-

" मैं _आपको छत्तीसगढ़ वन विभाग द्वारा केंटे एक्सटेंशन कोल परियोजना के संचालन को हरी झंडी देने के विनाशकारी निर्णय का कड़ा विरोध करने और उसे पलटने के लिए आपके हस्तक्षेप का अनुरोध करने के लिए लिख रही हूँ, जिसके लिए 1742 हेक्टेयर घने वन भूमि को नष्ट करना आवश्यक है। यह मंजूरी इस वर्ष जून में सरगुजा जिला वन अधिकारी द्वारा स्थल के तथाकथित निरीक्षण के बाद दी गई है।

जैसा कि आप निःसंदेह जानते हैं, यह परियोजना, जो हसदेव-अरण्य क्षेत्र की विशाल कोयला परियोजना का एक भाग है, राजस्थान सरकार के स्वामित्व वाली एक बिजली कंपनी को दी गई थी। पूर्ववर्ती राजस्थान सरकार ने अडानी एंटरप्राइजेज के साथ मिलकर पारसा केंटे कोलियरीज लिमिटेड नामक एक संयुक्त उद्यम स्थापित किया था, जिसमें अडानी की 74% हिस्सेदारी है। इस कंपनी को हसदेव-परसा कोयला परियोजना का खनन विकासकर्ता एवं संचालक नियुक्त किया गया था। अभिलेखों से पता चलता है कि इस परियोजना के अंतर्गत खनन किए गए कोयले की एक बड़ी मात्रा को 'अस्वीकृत कोयले' के उपयोग के नाम पर निजी कंपनी की बिजली परियोजनाओं में भेज दिया गया है। ये तथ्य प्रासंगिक हैं क्योंकि केंटे एक्सटेंशन कोयला परियोजना को मंज़ूरी देने के पीछे दिया गया तर्क 'जनहित' का है। इसमें कोई जनहित नहीं है, केवल निजी लाभ के लिए खनिज संसाधनों का दोहन शामिल है।

यदि यह परियोजना लागू हो जाती है, तो पहले से ही बुरी तरह प्रभावित उन क्षेत्रों में और भी ज़्यादा तबाही मच जाएगी जहाँ खनन कार्य चल रहा है। आधिकारिक निरीक्षण रिपोर्ट के अनुसार, कम से कम 4.5 लाख पेड़ काटे जाएँगे। ये पेड़ घने जंगल में हैं, जहाँ कार्बन अवशोषण के लिए महत्वपूर्ण देशी पेड़ बहुतायत में हैं। इस क्षेत्र में खुले में खनन से पहले ही हज़ारों पेड़ नष्ट हो चुके हैं, पानी और ज़मीन प्रदूषित हो चुकी है।

इसके अलावा, इन परियोजनाओं को संबंधित ग्राम सभाओं की राय और संविधान व कानूनी ढाँचे के उन प्रावधानों की अनदेखी करके शुरू किया जा रहा है जो ग्राम सभाओं की सहमति को अनिवार्य बनाते हैं। ओपन कास्ट माइनिंग वास्तविक परियोजना से परे एक बहुत बड़े भौगोलिक क्षेत्र को प्रभावित करती है। इसलिए, भले ही इस विशिष्ट क्षेत्र में मानव बस्ती नगण्य हो, लेकिन क्षेत्र के बाहर के कई गाँव इससे बुरी तरह प्रभावित होंगे। इससे पहले, स्थानीय समुदायों की ओर से सरकार को 1500 से ज़्यादा लिखित आपत्तियाँ दी गई थीं। लेकिन इन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया गया।

मैं आपको कुछ महीने पहले दिए गए आपके बयान की याद दिलाना चाहूँगी, जब आपने भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि "वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत दिए जा रहे अधिकारों के कारण वन क्षेत्र नष्ट हो रहा है। कड़े संरक्षण उपायों की आवश्यकता है..." (हिंदुस्तान टाइम्स, 5 जून)। हमने उस बयान का विरोध किया था और बताया था कि तथाकथित विकास परियोजनाओं के कारण वन क्षेत्र नष्ट हो रहा है। विकास के नाम पर निजी खनन परियोजनाओं द्वारा हमारे वनों को नष्ट होने से बचाने के लिए कड़े संरक्षण उपायों की वास्तव में आवश्यकता है। इस क्षेत्र के आदिवासियों ने एक बार फिर इस परियोजना का विरोध करके और पेड़ों तथा प्रकृति के विनाश को बचाने के अपने प्रयासों से साबित कर दिया है कि भारत में वनों के असली रक्षक वे ही हैं।

केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री के रूप में यह निश्चित रूप से आपकी जिम्मेदारी है कि आप निजी कंपनी के हितों के लिए वनों, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई तथा समृद्ध जैव-विविधता वाले क्षेत्र के विनाश को रोकें।"

                                                                                                       (सन्दर्भ /साभार –आलोक शुक्ला का फेस बुक पेज)

धरती पानी  से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलनपानी पत्रक 

 पानी पत्रक-249 ( 27 अगस्त  2025) जलधारा अभियान,221,पत्रकारकॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्र शंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com



शनिवार, 23 अगस्त 2025

कार्पोरेट लूट और भूमि कब्ज़ा के खिलाफ किसानों की राष्ट्रपति से गुहार

बीते दिनों 29 और 30 जुलाई को भूमि अधिकार आंदोलन के राष्ट्रीय बैठक में निर्णय लिया गया था कि 13 अगस्त 2025 को भूमि कब्जा और कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाएगा. किसानों का कहना है कि यह सिर्फ ज़मीन की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह हमारे रोज़गार, लोकतंत्र और गरिमा की रक्षा का संघर्ष है.

भूमि अधिकार आंदोलन के आह्वान पर देशभर के किसान संगठनों, जन आंदोलनों और मानवाधिकार समूहों ने 13 अगस्त 2025 को राष्ट्रपति को पत्र भेजकर प्राकृतिक संसाधनों की कॉरपोरेट लूट पर रोक लगाने की मांग की। यह कदम 29-30 जुलाई को हुई राष्ट्रीय बैठक में लिए गए उस निर्णय के तहत उठाया गया, जिसमें 13 अगस्त को भूमि कब्ज़ा और कॉरपोरेट लूट के खिलाफ राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाने का आह्वान किया गया था।

पत्र में कहा गया है कि यह सिर्फ ज़मीन की लड़ाई नहीं, बल्कि रोज़गार, लोकतंत्र और गरिमा की रक्षा का संघर्ष हैपिछले एक दशक में विकास के नाम पर चलाई गई नीतियों और परियोजनाओं ने किसानों, आदिवासियों, दलितों,पशुपालकों, मछुआरों और अन्य मेहनतकश तबकों को उनकी भूमि, जंगल और जल स्रोतों से बेदखल किया है।

किसानों ने राष्ट्रपति से मांग की कि पानी, जंगल, ज़मीन और खनिज जैसे प्राकृतिक संसाधनों को निजी कंपनियों को सौंपना तुरंत रोका जाए। पिछले 11 वर्षों में कॉरपोरेट कंपनियों और स्वार्थी व्यक्तियों को दी गई भूमि और जंगल की गहन जांच की जाए तथा उसके पर्यावरणीय और सामाजिक असर की जानकारी सार्वजनिक की जाए।

पत्र में आरोप है कि इंडस्ट्रियल कॉरिडोर, माइनिंग ज़ोन, भारतमाला, सागरमाला, स्मार्ट सिटी, एसईजेड और बिज़नेस कॉरिडोर जैसी परियोजनाओं के नाम पर ज़मीन का अधिग्रहण 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून का उल्लंघन है। किसानों ने स्पष्ट किया कि भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार कानून 2013, वन अधिकार कानून 2006 और पेसा कानून 1996 को कमजोर करने की कोशिशें बंद होनी चाहिए।

संगठनों ने कॉरपोरेट लैंड बैंक और लैंड पूलिंग को ज़मीन हथियाने के छिपे हुए तरीकेबताते हुए इन्हें रद्द करने की मांग की। उन्होंने कहा कि उपजाऊ कृषि भूमि को मॉल, एसईजेड और रियल एस्टेट जैसी गैर-कृषि गतिविधियों में बदलना खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण आजीविका के लिए खतरा है।

किसानों ने भूमि सुधार कानूनों का पूर्ण कार्यान्वयन एवं आजीविका अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित होने, सीलिंग सरप्लस, चारागाह भूमि, बेनामी भूमि, भूदान भूमि और बटाईदारी कानून सहित सभी भूमि सुधार प्रावधानों को लागू करने और भूमि को भूमिहीनों में पुनर्वितरित करने की मांग की है। साथ ही राज्य-समर्थित सहकारी एवं सामूहिक खेती मॉडल को बढ़ावा दें ताकि लोकतांत्रिक व सतत तरीक़े से कृषि का आधुनिकीकरण हो सके और कॉर्पोरेट कब्ज़ा रोका जा सके। इसके अलावा अमीरतम 1% पर 2% वार्षिक संपत्ति कर और 33% उत्तराधिकार कर लगाने की मांग रखी, ताकि भोजन, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और पेंशन जैसे सार्वभौमिक अधिकारों के लिए धन उपलब्ध हो सके।

पत्र में कहा गया कि पिछले 11 वर्षों से किसानों को लागत और 50 प्रतिशत पर न्यूनतम समर्थन मूल्य और कर्ज़माफी से वंचित रखा गया है। किसानों की आय दोगुनी करने के बजाय लागत और संकट दोगुना हो गया है। सरकारी आंकड़े दर्शाते हैं कि कृषि पर निर्भर 48% कार्यबल और ग्रामीण भारत के 60% परिवारों की आर्थिक स्थिति लगातार बिगड़ी है। ग्रामीण भारत में 2200 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन की खपत को गरीबी की पहचान मानते हुए, 1993-94 में 58% लोग इस स्तर से नीचे था। यह वह समय था जब 1991 में नवउदारवाद की शुरुआत हुई थी। 2011-12 में यह आंकड़ा बढ़कर 68% हो गया। 2017-18 तक हालत इतनी खराब हो गई कि सरकार ने उस वर्ष का उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण सार्वजनिक करने से ही मना कर दिया और आंकड़ों को बदल डाला। फिर भी जो थोड़ी जानकारी सामने आई, उससे यह स्पष्ट हुआ कि 80.5% ग्रामीण लोग इस न्यूनतम कैलोरी स्तर से नीचे थे।

किसान संगठनों ने मौजूदा निर्यात-आधारित विकास मॉडल की जगह कृषि-आधारित विकास की दिशा अपनाने, किसानों को लाभकारी मूल्य और मजदूरों को न्यूनतम जीवन निर्वाह मजदूरी देकर 140 करोड़ भारतीयों की क्रय शक्ति बढ़ाने की वकालत की।

 ( सन्दर्भ /साभार –सर्वोदय प्रेस सर्विस,राज कुमार सिन्हा की प्रेस विज्ञप्ति )

धरती पानी  से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलनपानी पत्रक 

 पानी पत्रक-248( 24 अगस्त  2025) जलधारा अभियान,221,पत्रकारकॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्र शंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com 




  

  

बुधवार, 20 अगस्त 2025

आदिवासियों और उनके सहयोगिओं के दमन और संहार के विरोध में ,मोगा में रैली और विरोध मार्च

 

प्रदर्शनकारियों ने आदिवासी इलाकों में जल, जंगल, ज़मीन और खनिजों की कॉर्पोरेट लूट को रोकने की पुरज़ोर माँग की और उन शोषणकारी आर्थिक मॉडलों की निंदा की जो मूल निवासियों के जीवन और आजीविका पर कॉर्पोरेट मुनाफ़े को तरजीह देते हैं

8 अगस्त, 2025 को, पंजाब के तीन दर्जन से ज़्यादा जनवादी संगठन आदिवासियों और उनके सहयोगी, प्रतिरोध बलों के जारी क्रूर नरसंहार की निंदा करने के लिए मोगा में एक शक्तिशाली रैली और विरोध मार्च में एकजुट हुए। विरोध रैली में लगभग 10,000 लोगों ने हिस्सा लिया।  इस विरोध प्रदर्शन में राज्य प्रायोजित हिंसा की तीखी निंदा की गई और आदिवासी क्षेत्रों में 'ऑपरेशन कगार' सहित सभी सैन्य अभियानों को तत्काल रोकने, फर्जी मुठभेड़ों, हिरासत में हत्याओं और सभी प्रकार के राज्य दमन को समाप्त करने, आदिवासी क्षेत्रों से पुलिस शिविरों को हटाने और आदिवासी क्षेत्रों से पुलिस और अर्धसैनिक बलों की पूरी तरह से वापसी की मांग की गई। यह रैली आदिवासी संघर्षों के साथ लोकतांत्रिक एकजुटता का एक ज़ोरदार दावा और जनता पर युद्ध को रोकने की स्पष्ट मांग थी।

प्रदर्शनकारियों ने आदिवासी इलाकों में जल, जंगल, ज़मीन और खनिजों की कॉर्पोरेट लूट को रोकने की पुरज़ोर माँग की और उन शोषणकारी आर्थिक मॉडलों की निंदा की जो मूल निवासियों के जीवन और आजीविका पर कॉर्पोरेट मुनाफ़े को तरजीह देते हैं। उन्होंने इन जनविरोधी नीतियों को रद्द करने और आदिवासी समुदायों को निशाना बनाकर किए जा रहे ड्रोन और हेलीकॉप्टर बम विस्फोटों पर पूरी तरह रोक लगाने की माँग की। विरोध प्रदर्शन में यूएपीए और एएफएसपीए जैसे कठोर कानूनों को निरस्त करने, राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) को भंग करने और जेल में बंद सभी लोकतांत्रिक अधिकार कार्यकर्ताओं की बिना शर्त रिहाई की भी स्पष्ट माँग की गई। प्रदर्शनकारियों ने जन संगठनों और आंदोलनों पर लगे प्रतिबंध हटाने और विरोध व प्रतिरोध के लोकतांत्रिक अधिकार की बहाली की भी माँग की। संदेश स्पष्ट था: राज्य को अपने ही लोगों पर युद्ध छेड़ना बंद करना होगा और सभी नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों और संवैधानिक गारंटियों का सम्मान करना होगा।

मोगा अनाज मंडी में विरोध सभा

मार्च से पहले, मोगा की अनाज मंडी में किसानों, मजदूरों, युवाओं, छात्रों, महिलाओं, तर्कवादियों, लोकतांत्रिक अधिकारों के रक्षकों, प्रगतिशील लेखकों, कलाकारों और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं की एक विशाल सभा को विभिन्न नेताओं ने संबोधित किया।

बीकेयू एकता (एकता-उगराहां) के प्रदेश अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उगराहां, इंडियन फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियंस (आईएफटीयू) के प्रदेश अध्यक्ष कुलविंदर सिंह वाराइच, पंजाब खेत मजदूर यूनियन के महासचिव लखमन सिंह सेवेवाला, एंटी-ऑपरेशन ग्रीन हंट डेमोक्रेटिक फ्रंट के संयोजक डॉ. परमिंदर, भारतीय किसान यूनियन (डकौंडा) के महासचिव हरनेक सिंह महीमा, क्रांतिकारी किसान यूनियन के प्रदेश प्रेस सचिव अवतार सिंह महीमा, प्रदेश अध्यक्ष भारतीय किसान यूनियन (क्रांतिकारी) के बलदेव सिंह जीरा, पेंडू मजदूर यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष तरसेम पीटर, कारखाना मजदूर यूनियन के अध्यक्ष लखविंदर सिंह, तर्कशील सोसायटी पंजाब के प्रदेश अध्यक्ष राजिंदर भदौड़, जम्हूरी अधिकार सभा पंजाब के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतपाल सिंह, पीएसयू के प्रदेश अध्यक्ष; रणबीर सिंह रंधावा, पीएसयू के नेता (शहीद रंधावा) हुशियार सिंह, मेडिकल प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष धन्ना मल्ल गोयल; क्रांतिकारी पेंडू मजदूर यूनियन के प्रदेश संयुक्त अध्यक्ष दिलबाग सिंह जीरा और पूर्व सैनिक क्रांतिकारी यूनियन के जिला अध्यक्ष बलकरन सिंह ने सभा को संबोधित किया। दलित एवं मजदूर मुक्ति मोर्चा, ऑटो रिक्शा यूनियन मोगा और छात्रों, बुद्धिजीवियों और अधिकार कार्यकर्ताओं के समूह शामिल हुए। कई अन्य जन संगठनों ने भी सभा में भाग लिया।

उन्होंने कहा कि बस्तर और अन्य आदिवासी क्षेत्रों में लाखों अर्धसैनिक बलों को तैनात करके चलाए जा रहे खूनी अभियानों का उद्देश्य देश की जल-जंगल-ज़मीन और खनिज संपदा को विदेशी और देशी कॉर्पोरेट इजारेदारों को सौंपना है। वक्ताओं ने  कहा कि इस तरह के अभियानों का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों तक कॉर्पोरेट पहुँच को आसान बनाना है

सभी लोकतांत्रिक और मानवीय मूल्यों को त्यागकर और ड्रोन और हेलीकॉप्टरों के माध्यम से बमबारी का सहारा लेकर, यह स्पष्ट है कि मोदी सरकार आदिवासी जनता और अपने अधिकारों की रक्षा करने वाली अन्य संघर्षशील ताकतों को खत्म करने पर तुली हुई है ताकि शिकारी पूंजीपतियों के स्वामित्व वाली खनन परियोजनाओं को शुरू करने के लिए जंगलों को साफ किया जा सके।

इस क्रूर युद्ध के एक हिस्से के रूप में, जन-पक्षधर लेखकों, जन बुद्धिजीवियों, और लोकतांत्रिक व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, जो सरकार की जन-विरोधी नीतियों और दमनकारी हमलों का जायज़ विरोध करते हैं, को झूठे मुकदमों में जेल में डाला जा रहा है, जबकि आदिवासियों और माओवादियों को फर्जी मुठभेड़ों में मारा जा रहा है।

बड़े कॉर्पोरेट घरानों का लालची लालच पूरे देश की कृषि भूमि, कृषि और खनिज संपदा पर चौतरफा हमला कर रहा है। आज आदिवासी इलाकों में जो कुछ हो रहा है, वह कोई अलग-थलग युद्ध नहीं हैयह हिंसा और दमन के ज़रिए संसाधनों पर कब्ज़ा करने के एक बड़े लालची अभियान की अग्रिम पंक्ति है। अगर भारत की मेहनतकश जनता अभी एकजुट प्रतिरोध में नहीं उठ खड़ी हुई, तो यह कॉर्पोरेट-संचालित युद्ध जल्द ही हर राज्य के लोगों को अपनी चपेट में ले लेगा। कार्रवाई करने का समय बाद में नहीं, बल्कि अभी है।

आदिवासी इलाकों में फैला यह फासीवादी आतंक का राज पंजाब में भी उन्हीं कॉर्पोरेट हितों की पूर्ति के लिए प्रतिरोध शक्तियों को निशाना बना रहा है। यहाँ भी, जैसे-जैसे जन संघर्ष आगे बढ़ेंगे, लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन और प्रतिबंधों व पाबंदियों के ज़रिए बढ़ता दमन और तेज़ होता जाएगा।

इसलिए, दुनिया भर में कॉर्पोरेट पूँजी के हित में छेड़े गए इस समन्वित हमले के ख़िलाफ़ एकजुट संघर्ष की तत्काल आवश्यकता है, और यह संयुक्त रैली उस दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।

प्रतिभागियों ने आदिवासी क्षेत्रों की स्थिति को पंजाब में भूमि अधिग्रहण, पर्यावरण क्षरण और नागरिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंधों सहित व्यापक चिंताओं से जोड़ा। कश्मीर और गाजा के आंदोलनों के साथ एकजुटता व्यक्त की गई और दोनों क्षेत्रों में हिंसा की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया गया।

 लेखक, अनुवादक और लोकतांत्रिक कार्यकर्ता बूटा सिंह महमूदपुर द्वारा प्रस्तावों का एक संग्रह प्रस्तुत किए जाने पर सभा प्रतिरोध के स्वरों से गूंज उठी, जिन्हें सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। इन प्रस्तावों ने राज्य द्वारा अपने नागरिकों के विरुद्ध छेड़े गए युद्ध को और भी तीखा कर दियाआदिवासी इलाकों में ऑपरेशन कगार और अन्य सभी अर्धसैनिक हमलों को तत्काल रोकने, आदिवासियों और माओवादियों के निर्मम नरसंहारों को रोकने, और गरीबों की कीमत पर कॉर्पोरेट लालच को पूरा करने के लिए बनाई गई जनविरोधी आर्थिक नीतियों को रद्द करने की माँग की। एक विशेष प्रस्ताव में गाजा में जारी नरसंहार की निंदा की गई और रैली की फिलिस्तीनी जनता के मुक्ति संघर्ष के प्रति अटूट एकजुटता की घोषणा की गई।

एक मार्मिक क्षण में, प्रतिष्ठित लोकतांत्रिक कार्यकर्ता और महान नाटककार गुरशरण सिंह की पुत्री डॉ. नवशरण का एकजुटता संदेश पढ़ा गया। उन्होंने अपने संदेश में बताया कि इस सितंबर में, अमृतसर में गुरशरण सिंह की जयंती आदिवासी संघर्षों को समर्पित होगी। इस मंच ने सभी लोकतांत्रिक आवाज़ों से एकजुट होकर इस स्मृति समारोह में भाग लेने का आह्वान किया।

कई गायकों ने प्रतिरोध और एकजुटता के गीत प्रस्तुत किए, जिनमें सबसे प्रमुख थे पीएलएस मंच के जगसीर जीदा, जिनके भावपूर्ण गीतों ने प्रतिभागियों के दिलों में संघर्ष की आग जला दी।

(सन्दर्भ / साभार –Groundxero , Counterview )

धरती पानी  से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलनपानी पत्रक 

 पानी पत्रक-247 ( 20अगस्त  2025) जलधारा अभियान,221,पत्रकारकॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्र शंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com 



  

 

 

नर्मदा बचाओ आंदोलन : बांध विरोध के चालीस साल

वैसे बड़े बांधों का विरोध उन्हें ‘ नए भारत के तीर्थ ’ के तमगे से नवाजे जाने के बरसों पहले शुरु हो गया था , लेकिन आर्थिक , राजनीतिक , सामाजिक...