प्रदर्शनकारियों ने आदिवासी
इलाकों में जल,
जंगल, ज़मीन और खनिजों की
कॉर्पोरेट लूट को रोकने की पुरज़ोर माँग की और उन शोषणकारी आर्थिक मॉडलों की निंदा
की जो मूल निवासियों के जीवन और आजीविका पर कॉर्पोरेट मुनाफ़े को तरजीह देते हैं
8 अगस्त, 2025 को, पंजाब के तीन दर्जन से ज़्यादा जनवादी
संगठन आदिवासियों और उनके सहयोगी, प्रतिरोध बलों के जारी क्रूर नरसंहार की निंदा
करने के लिए मोगा में एक शक्तिशाली रैली और विरोध मार्च में एकजुट हुए। विरोध रैली में लगभग 10,000 लोगों ने
हिस्सा लिया। इस विरोध प्रदर्शन में राज्य
प्रायोजित हिंसा की तीखी निंदा की गई और आदिवासी क्षेत्रों में 'ऑपरेशन कगार' सहित सभी सैन्य अभियानों को तत्काल
रोकने, फर्जी मुठभेड़ों, हिरासत में हत्याओं और सभी प्रकार के
राज्य दमन को समाप्त करने,
आदिवासी क्षेत्रों से पुलिस शिविरों को
हटाने और आदिवासी क्षेत्रों से पुलिस और अर्धसैनिक बलों की पूरी तरह से वापसी की
मांग की गई। यह रैली आदिवासी संघर्षों के साथ लोकतांत्रिक एकजुटता का एक ज़ोरदार
दावा और जनता पर युद्ध को रोकने की स्पष्ट मांग थी।
प्रदर्शनकारियों ने आदिवासी इलाकों में
जल, जंगल, ज़मीन और खनिजों की कॉर्पोरेट लूट को रोकने की पुरज़ोर माँग की और उन
शोषणकारी आर्थिक मॉडलों की निंदा की जो मूल निवासियों के जीवन और आजीविका पर
कॉर्पोरेट मुनाफ़े को तरजीह देते हैं। उन्होंने इन जनविरोधी नीतियों को रद्द करने
और आदिवासी समुदायों को निशाना बनाकर किए जा रहे ड्रोन और हेलीकॉप्टर बम विस्फोटों
पर पूरी तरह रोक लगाने की माँग की। विरोध प्रदर्शन में यूएपीए और एएफएसपीए जैसे
कठोर कानूनों को निरस्त करने, राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) को भंग करने और जेल में बंद सभी
लोकतांत्रिक अधिकार कार्यकर्ताओं की बिना शर्त रिहाई की भी स्पष्ट माँग की गई।
प्रदर्शनकारियों ने जन संगठनों और आंदोलनों पर लगे प्रतिबंध हटाने और विरोध व
प्रतिरोध के लोकतांत्रिक अधिकार की बहाली की भी माँग की। संदेश स्पष्ट था: राज्य को
अपने ही लोगों पर युद्ध छेड़ना बंद करना होगा और सभी नागरिकों के लोकतांत्रिक
अधिकारों और संवैधानिक गारंटियों का सम्मान करना होगा।
मोगा अनाज मंडी में विरोध
सभा
मार्च से पहले, मोगा की अनाज मंडी में किसानों, मजदूरों, युवाओं, छात्रों, महिलाओं, तर्कवादियों, लोकतांत्रिक अधिकारों के रक्षकों, प्रगतिशील लेखकों, कलाकारों और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं
की एक विशाल सभा को विभिन्न नेताओं ने संबोधित किया।
उन्होंने कहा कि बस्तर और अन्य आदिवासी
क्षेत्रों में लाखों अर्धसैनिक बलों को तैनात करके चलाए जा रहे खूनी अभियानों का
उद्देश्य देश की जल-जंगल-ज़मीन और खनिज संपदा को विदेशी और देशी कॉर्पोरेट
इजारेदारों को सौंपना है। वक्ताओं ने कहा कि इस तरह
के अभियानों का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों तक कॉर्पोरेट पहुँच को आसान बनाना है
सभी लोकतांत्रिक और मानवीय मूल्यों को
त्यागकर और ड्रोन और हेलीकॉप्टरों के माध्यम से बमबारी का सहारा लेकर, यह स्पष्ट है कि मोदी सरकार आदिवासी
जनता और अपने अधिकारों की रक्षा करने वाली अन्य संघर्षशील ताकतों को खत्म करने पर
तुली हुई है ताकि शिकारी पूंजीपतियों के स्वामित्व वाली खनन परियोजनाओं को शुरू
करने के लिए जंगलों को साफ किया जा सके।
इस क्रूर युद्ध के एक हिस्से के रूप
में, जन-पक्षधर लेखकों, जन बुद्धिजीवियों, और लोकतांत्रिक व मानवाधिकार
कार्यकर्ताओं, जो सरकार की जन-विरोधी नीतियों और
दमनकारी हमलों का जायज़ विरोध करते हैं, को झूठे मुकदमों में जेल में डाला जा रहा है, जबकि आदिवासियों और माओवादियों को
फर्जी मुठभेड़ों में मारा जा रहा है।
बड़े कॉर्पोरेट घरानों का लालची लालच
पूरे देश की कृषि भूमि, कृषि और खनिज संपदा पर चौतरफा हमला कर
रहा है। आज आदिवासी इलाकों में जो कुछ हो रहा है, वह कोई अलग-थलग युद्ध नहीं है—यह हिंसा और दमन के ज़रिए संसाधनों पर कब्ज़ा करने के एक बड़े लालची
अभियान की अग्रिम पंक्ति है। अगर भारत की मेहनतकश जनता अभी एकजुट प्रतिरोध में
नहीं उठ खड़ी हुई, तो यह कॉर्पोरेट-संचालित युद्ध जल्द ही
हर राज्य के लोगों को अपनी चपेट में ले लेगा। कार्रवाई करने का समय बाद में नहीं, बल्कि अभी है।
आदिवासी इलाकों में फैला यह फासीवादी
आतंक का राज पंजाब में भी उन्हीं कॉर्पोरेट हितों की पूर्ति के लिए प्रतिरोध
शक्तियों को निशाना बना रहा है। यहाँ भी, जैसे-जैसे जन संघर्ष आगे बढ़ेंगे, लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन और प्रतिबंधों व पाबंदियों के ज़रिए
बढ़ता दमन और तेज़ होता जाएगा।
इसलिए, दुनिया भर में कॉर्पोरेट पूँजी के हित में छेड़े गए इस समन्वित हमले
के ख़िलाफ़ एकजुट संघर्ष की तत्काल आवश्यकता है, और यह संयुक्त रैली उस दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
प्रतिभागियों ने आदिवासी क्षेत्रों की
स्थिति को पंजाब में भूमि अधिग्रहण, पर्यावरण क्षरण और नागरिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंधों सहित व्यापक
चिंताओं से जोड़ा। कश्मीर और गाजा के आंदोलनों के साथ एकजुटता व्यक्त की गई और
दोनों क्षेत्रों में हिंसा की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया गया।
एक मार्मिक क्षण में, प्रतिष्ठित लोकतांत्रिक कार्यकर्ता और
महान नाटककार गुरशरण सिंह की पुत्री डॉ. नवशरण का एकजुटता संदेश पढ़ा गया।
उन्होंने अपने संदेश में बताया कि इस सितंबर में, अमृतसर में गुरशरण सिंह की जयंती आदिवासी संघर्षों को समर्पित होगी।
इस मंच ने सभी लोकतांत्रिक आवाज़ों से एकजुट होकर इस स्मृति समारोह में भाग लेने
का आह्वान किया।
कई गायकों ने प्रतिरोध और एकजुटता के
गीत प्रस्तुत किए, जिनमें सबसे प्रमुख थे पीएलएस मंच के
जगसीर जीदा, जिनके भावपूर्ण गीतों ने प्रतिभागियों
के दिलों में संघर्ष की आग जला दी।
(सन्दर्भ / साभार –Groundxero
, Counterview )
धरती पानी से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलन–पानी पत्रक
पानी पत्रक-247 ( 20अगस्त 2025) जलधारा अभियान,221,पत्रकारकॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्र शंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com
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