( राम गाड़ नदी की कहानी-बची सिंह की जुवानी )
जब कभी भी हमारे
गांवों में खाज,खुजली और फोड़ा जैसे त्वचा रोग होते थे, तो लोग उसी नौले के पानी से स्नान करते थे। वास्तव में ठीक हो जाते
थे । हमारी आस्था थी, लेकिन वैज्ञानिक सोच के अनुसार उसमें अभ्रक और कुछ और
मिनरल्स होंगे, जो त्वचा रोग को ठीक कर देते हैं।
स्थानीय लोगों ने
वह स्थान अच्छे से बनाकर रखा है।
यही जो जल चक्कियां
थीं, स्थानीय गांवों के अनाज को पीसने के
काम आती थी।रात रात भर लोग वहां अपना पिसान लेकर जाते और सुबह लेकर आते थे।
तल्ला रामगढ़ से
नीचे झूतिया तक के घटों में हमने पिसाई करवाई है। आज उनका अस्तित्व ही खतम हो चुका
है।
जल संचय की इस
व्यवस्था को ढान कहते थे..जिसे गांव के लोग मिलकर बनाते थे ।अब उनके अवशेष तक शेष
नहीं हैं।
राम गाड़ एक पवित्र
और स्थानीय किसान बागवानों की जीवन रेखा है।इसी नदी पर आसपास के सभी गांवों के
लोगों के शमशान हैं और यही नदी बहुत लंबे समय तक ग्वालों को तैराकी सिखाती रही है।
ज्यादा नहीं तो
हल्की फुल्की बो काटना यानि तैरना और नदी में बने प्राकृतिक जल कुंडों को पार करना
सभी गांवों के लड़कों ने सीखा था।
अनाज था, नदी थी।नदी में पानी था।पानी के साथ जीवन और मृत्यु का संबंध था।
मंदिर, शमशान , घट के अलावा पशुओं के ग्वाले जाने का
भी संबंध था। तब के सभी लड़कों ने बंसी के कांटे से मछली मारना या राम बांस का मैन
डालकर मछली मारना इसी नदी पर सीखा था।नदी एक पूरी व्यवस्था होती है।जिसके साथ लोग, लोक और प्राकृतिक परितंत्र होता है।
सोलह प्राकृतिक जल
धाराएं इसे जीवंत रखती थी।
और तो और नए
बिल्डर्स ने प्रधानों और सरकारी संस्थानों के साथ मिलकर अपने बड़े खर्चीले होटलों
और घरों के लिए लोगों के प्राकृतिक श्रोतों से स्थानीय लोगों के नाम पर बनी
योजनाओं से पानी उठाना शुरू किया है।।नदियां खनन, अतिक्रमण और जल धाराओं के साथ छेड़
छाड़ से सबसे अधिक प्रभावित होती हैं।यही हुआ है।
राम गाड़ नदी के किनारे
लगातार कब्जा हो रहा है।नदी के प्राकृतिक स्वरूप के साथ छेड़ छाड़ और अतिक्रमण किया जा रहा है।नदी के पाट को संकरा किया जा
चुका है और तमाम जगहों से रेत उठाकर नदी की खाल खींच ली गई है।
बाहर से आकर नदी
किनारे की जमीन खरीदने के बाद जब कोई बिल्डर नदी के संगम पर ही कब्जा कर लेता है
तो सभी चुप रहते हैं लेकिन यहीं कोई स्थानीय व्यक्ति अपने घर की छत बनाने या खेत
की दीवार बनाने के लिए लकड़ी काट रहा होता, नदी से पत्थर, रेत निकाल रहा होता तो सभी विभाग लाव लश्कर के साथ उसका चालान करने
निकल आते।
राम गाड़ नदी के
घराट और उनके पुराने जल देने वाली गूलों पर भी कब्जा हो चुका है।
एक नदी जो हमारा
इतिहास, भूगोल, संस्कृति, जीवन और मरण की गवाह रही है, आज तमाम लोगों और सरकार नामक व्यवस्था
की उपेक्षा के कारण मर रही है।
सभी चुप हैं।जो बोलना
चाहते हैं उनकी आवाज को उठने की इजाजत ही नहीं है।
राम गाड़ आज एक
मरणासन्न नदी बनकर अपने 28 गांवों ,31,घराट से अनाज खाने वाले लोगों, अपने पूर्वजों की राख को बहाकर आए
लोगों और नदी से कई बार मछली खाकर स्वाद संतुष्ट कर चुके लोगों की प्रतीक्षा कर
रही है कि कोई तो उसकी मृत्यु पर चिंतित होकर कुछ बोले।
बोल तो वे भी नहीं
रहे जिन्होंने नदी की खाल उधेड़कर आजीविका चलाई है और वे भी चुप हैं , जिन्होंने अपने गांवों से होटलों तक नदी के पानी को खींचकर घरों की
प्यास बुझाना शुरू किया है।
" जल ही नारायण है।जिसमें श्री यानि
लक्ष्मी का वास रहता है।जल का होना मतलब धन समृद्धि का होना है।राम गाड़ के मरने
की सूचना यह बताने की भी कोशिश है कि उसके साथ ही इन गांवों से श्री लक्ष्मी भी
अपना स्थान छोड़ रही हैं"
नदी, जंगल, खेत,हवा और शुद्ध अनाज ही तो मनुष्य समेत
सभी जीवों की जरूरत पूरी करते हैं।नदी के साथ ही शुद्ध उत्पादन की याद तब आयेगी जब
सब कुछ लोगों के हाथ से निकल जायेगा और अगली पीढ़ियों को नदी की जगह पर बरसाती
रौखड़ ही मिलेगा..
(बची सिंह बिष्ट)
(साभार – बची सिंह का फेसबुक पेज )
पानी से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलन –पानी पत्रक
पानी पत्रक ( 126-2नवम्बर 2023) जलधारा अभियान, 221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com
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