पुलिस को पीछे हटना पड़ा
छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में, राजस्थान राज्य
विद्युत उत्पाउन निगम को, आवंटित कोयला खदानों, जिनका एमडीओ अडानी समूह के पास है
, मै पेडो की कटाई के खिलाफ हसदेव अरण्य बचाओ
संघर्ष समिति के आवाहन पर नागरिक प्रतिरोध मार्च में
बड़ी संख्या में आदिवासी गावों एवं रायपुर,
विलासपुर व अन्य शहरों के लोग, सरगुजा जिले के
विकासखंड उदयपुर अंतर्गत ग्राम हरिहरपुर पहुंचे । हालाकी पुलिस ने
रायपुर, बिलासपुर, कोरवा
समेत कई जिलों में बडी संख्या में उन लागों को रोका जो हसदेव अरण्य में स्तिथ इस गाँव
जाना चाहते थे।
जब कुछ पत्रकारो और यूट्यूर्बस ने सभा में आये गाँव के लोगों
विशेषकर आदिवासी लोगों से बात की तो उन्होने सीधे सीधे कहा कि वो जंगल बचाने आये
हैं,जंगल कटना नहीं चाहिए । आदिवासी सिर्फ पेड़ों को बचाने की बात नहीं कर रहे थे वे
वहां के जीव-जन्तुओं,हाथी की और नदी पानी को बचाने की बात भी जोर शोर से करते थे । एक आदिवासी व्यक्तिने कहा कि ये राजनितिक लड़ाई
नहीं है, ये जल जंगल
जमीन बचाने की लड़ाई है, ये सिर्फ आदिवासी या छत्तीसगढ़ीयों की लड़ाई नहीं है ये सब
की लड़ाई है पूरे देस की लड़ाई है । इसीलिए हम
तिरंगे को हाथ में लेकर आये हैं , हम तिरंगे के नीचे लड़ रहे हैं . लोग कॉंग्रेस
एवं वीजेपी दोनो को जंगल कटने के लिए जिम्मेदार बताते है । लोगो का कहना है कि इस
आंदोलन में पार्टी राजनिति नहीं होनी चाहिए यहां जंगल बचाना चाहिए ।. हमारे लोग 675 दिन
से धरने पे हैं ,और तब तक हैं जब तक कम्पनी वापिस नहीं जाती .
हसदेव जंगल छत्तीसगढ़ का फेफड़ा है, जब
फेफड़ा ही नहीं रहेगा तो फिर सांस कहां से लेगें हम।
प्रतिरोघ मार्च एवं प्रतिरोध सभा में नारे भी
लगातार लगते रहे- कम्पनी दलालों को,घूंसा मारो सालो को, ग्राम
सभा का फर्जी प्रस्ताव रद्द करो,रद्द करो । जल, जंगल, जमीन
की रक्षा कौन करेगा ,हम करेंगे, हम
करेंगे।, हसदेव की जय. ईंकलाब जिन्दा बाद का
नारा भी, लगता रहा--गुंजता रहा।
कांग्रेस पार्टी के राज्य अध्यक्ष दीपक बैज के पहुंचने पर उन्हें
विरोध का सामना करना पड़ा । क्यों कि पिछले पांच साल तक राज्य में कांग्रेस का शासन
रहा । आदिवासियों का आरोप है कि उस दौरान फर्जी ग्राम सभाएं आयोजित करवाईं गई और
कांग्रेस ने आंदोलनकारियों द्वारा इन सभाओं को रद्द करने की मांग के बावजूद कुछ
नहीं किया । जबकि पूर्व राज्यपाल ने परसा कोल ब्लॉक के प्रभावित गांवों में फर्जी
ग्राम सभा प्रस्ताव की जॉंच के आदेश
23
अक्टूबर 2023 को मुख्य सचिव छत्तीसगढ़ को दे
दिये थे।
25 अगस्त 2023 को
दिल्ली की पत्रिका संघर्ष संवाद के
पत्रकारों ने हरिहरपुर, में अनिश्चित कालीन धरने के 550 से
अधिक दिन होने पर भी, धरना स्थल पर
बैठे ग्रामिण आदिवासियों से जब मुलाकात की तो उनहोने कहा कि सरकार द्वारा
कोर्ट में एफिडेबिट देने से काम नहीं चलेगा। हसदेव की खदानों को दी गई स्वक्रित्यां
निरस्त की जानी चाहिएं।
याद दिला
दें कि छत्तीसगढ़ के वन विभाग के अतरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने 16 जुलाई 2023 को
सुप्रीम कोर्ट में हसदेव जंगल में किसी नई कोयला खदान की जरुरत न होने का हलफनामा
दिया था .
इससे पहले 26 जुलाई 2022 को
छत्तीसगढ़ विधानसभा के सदन दुआरा सभी कोल ब्लाक रद्द किये जाने का अशासकीय संकल्प पूर्ण बहुमत से पारित किया गया था.
2 मार्च से 2022 से जारी धरने के 275 दिन पूरे होने के अवसर पर, 20 दिसम्बर 2022 को हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक एवं सरपंच पतुरियाडांड, उमेश्वर आर्मो ने कहा था कि, राज्य सरकार ने परसा खदान की वन स्वीकृति को निरस्त करने केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को पत्र लिखा है और व्यापक जन आक्रोश को संज्ञान में लिया है, लेकिन फर्जी ग्रामसभा और पर्यावरणीय चिंताओं का कोई उल्लेख नहीं किया। वे स्वयं ही अंतिम वन स्वीकृति निरस्त कर सकते है और परसा कोल खदान को रद्द कर सकते है। जब तक हसदेव अरण्य की सभी खदाने आधिकारिक रूप से निरस्त नहीं कि जाती यह आंदोलन सतत चलता रहेगा।
लेकिन इन सब के वावजूद अप्रैल 2023 में कांग्रेसी सरकार के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने
हसदेव जंगल में खनन की अनुमति दे दी
इन्ही बातों
को आदिवासी आंदोलनकारी आज भी दोहराते है
दीपक बेज ने भी मंच से स्वीकार
किया की कांग्रेस के शासन के दौरान कुछ गलतियाँ हुयी।
हसदेव अरण्य बचाओ
आंदोलन कर रहे ग्रामीण किसी भी सूरत में पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने
भाजपा-कांग्रेस सभी को हसदेव के मामले में सियासी खेल करने वाला बताया है । प्रदर्शन में शामिल लोगों की शिकायत है कि पार्टियों के नेता
यहां आते हैं फोटो खिचाते हैं और चले जाते हैं। सियासी पार्टियों के लगातार आंदोलन
में पहुंचने से उनको कोई मदद नहीं मिल पा रही है । प्रदर्शनकारियों का कहना है कि
सियासी पार्टियों के आने से उनका आंदोलन कमजोर पड़ सकता है।
वर्तमान में जिस परसा ईस्ट केतेवासन कोयला
खनन परियोजना के दूसरे चरण के लिए पेड़ों
की कटाई की गई है। वह वन क्षेत्र ग्राम घाट वर्रा के सामुदायिक निस्तार का जंगल था
। इस गांव को प्राप्त समुदायिक वन अधिकार पत्र को गैर कानूनी रूप से जिला स्तरीय
समिति सरबुजा ने निरस्त किया था । जिसके खिलाफ बिलासपुर उच्च न्यायलय में मामला
लम्बीत है। गांव के लोग आगे भी लड़ने के लिए तैयार हैं एवं धरना अभी भी चल रहा है।
(संदर्भ –छत्तीसगढ़ खबर
,खबर बिलासपुर ,जनचौक,खबर छतीसी ,वर्कर्स यूनिटी ,तीसरी जंग ,सामना ,घटती घटना,फटाफट
न्यूज़ )
पानी से संबंधित
सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का
संकलन
–पानी पत्रक
पानी पत्रक (135- 12 जनवरी 2024) जलधारा
अभियान, 221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें