गुरुवार, 4 जुलाई 2024

सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की सज़ा को रद्द करने हेतु

शासन को निर्देशित करने बाबत राष्ट्रपति महोदया को पत्र

( दिल्ली के साकेत कोर्ट द्वारा प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को  एक कथित मानहानि के केस में दोषी मानते हुए 5 माह के साधारण कारावास और 10 लख रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई है इसी सन्दर्भ में , सजा को दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय मानते हुए , सज़ा को रद्द करने की मांग को लेकर , समाजवादी जन परिषद के संगठन मंत्री अफलातून भाई का , माननीय राष्ट्रपति महोदया को  लिखे पत्र को हम यंहा दे रहे है  ताकि आप इस मानहानि के केस की प्रष्ठ भूमि और आशय को समझ संके )


राष्ट्रपति महोदया

नई दिल्ली

विषय : सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की सज़ा को रद्द करने  हेतु शासन को निर्देशित करने बाबत।

 माननीय राष्ट्रपति महोदया

     यह  ज्ञापन पत्र आपको सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर जी पर लगाए झूठे आरोपों और उन्हें दी गई सजा के विरोध में तथा आपसे हस्तक्षेप के आग्रह हेतू लिखा जा रहा है।

    हम इस प्रकरण के तथ्य आपके समक्ष रखना चाहते हैं। श्री वी के सक्सेना गुजरात के जे.के. सीमेंट और अडानी की संयुक्त परियोजना धोलेरा परियोजना के पदाधिकारी 1990 से बने थे। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने  जब 1991 से घाटी के हजारों आदिवासी, किसान, दलित, मजदूर, मछुआरे, व्यापारी सभी विस्थापितों के अधिकारों के लिए कानूनी और अहिंसक संघर्ष किया, तभी से सक्सेना जी ने आंदोलन की खिलाफत शुरू कर दी थी । आंदोलन विस्थापितों के संपूर्ण पुनर्वास के लिए चला था, गुजरात की कंपनियों को पानी देने के विरोध में नही था अर्थात विस्थापितों के संपूर्ण पुनर्वास और उसके बिना किसी का घर, खेत डूबने न देने के कानून, नीति तथा न्यायालयीन फैसलों के पालन के पक्ष में आंदोलन चलाया गया था, जो तीन राज्यों के 244 गांव और एक नगर के  50 हजार से अधिक परिवारों के पुनर्वास के लिए जरूरी था। 

     अभी तक जो भी अधिकार विस्थापित परिवारों को मिल पाए हैं वह सत्याग्रह और संघर्ष के कारण ही संभव हो पाया है। सर्वोच्च न्यायालय ने तथ्यों, कानून के अधिकार और धरातल की सच्चाई जानकर बांध रोकने का आदेश दिया, तो भी सक्सेना जी ने आंदोलन को दोषी ठहराकर मेधा पाटकर पर गंभीर आरोप लगाए और टिप्पणियां की। जैसा की  "मेधा पाटकर को फांसी दो!"  "होलिका में मेधा पाटकर का दहन करो !" आदि वक्तव्य मीडिया में मेधा पाटकर को बदनाम करने की नीयत से छपवाए। यही नहीं, सक्सेना जी ने सर्वोच्च न्यायालय में नर्मदा बचाओ आंदोलन को विदेशी पैसों से चलने वाली संस्था बतलाकर पीआईएल दाखिल की, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने जुलाई 2007 में  खारिज करते हुए यह कहा कि यह 'पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशननही,  'प्राइवेट इंटरेस्ट लिटिगेशन' है। न्यायालय ने 5000 रूपये का जुर्माना भी लगाया।

      साबरमती आश्रम में गुजरात में दंगों के बाद शांति बैठक का निमंत्रण मिलने पर मेधा पाटकर जब आश्रम में पहुंची तब  उन पर  हमला किया गया जिसमें  वी के सक्सेना शामिल थे, जिसके कई गवाह है।  गुजरात शासन ने वी के सक्सेना एवं अन्य तीन राजनीतिक व्यक्तियों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज किया। जिसमें 2002 से आज तक फैसला नही हो पाया है। लेफ्टिनेंट गवर्नर होने से उन्हें किसी अपराधी प्रकरण से छुटकारा नही मिल सकता है, यह निर्णय साकेत कोर्ट, दिल्ली और अहमदाबाद के मेट्रो पॉलिटियन मजिस्ट्रेट दोनों ने संवैधानिक प्रावधानों के आधार पर किया है। यह प्रकरण अहमदाबाद हाई कोर्ट में  लंबित है।

     सक्सेना जी ने मेधा पाटकर और नर्मदा बचाओ आंदोलन पर लाल भाई ग्रुप कंपनी के नाम फर्जी चेक  के मामले में, धन्यवाद का पत्र और रसीद लेकर इंडियन एक्सप्रेस में विज्ञापन देकर हवाला व्यवहार का झूठा आरोप लगाया था। इस मामले में मेधा पाटकर जी की ओर से मानहानि का प्रकरण 2000 से आज तक साकेत कोर्ट, दिल्ली में लंबित है ।

 एक फर्जी मेल के आधार पर सक्सेना जी ने मानहानि का प्रकरण 2001 में दर्ज किया, जिसमें मेधा पाटकर को 24 मई 2024 को साकेत कोर्ट के मेट्रो पॉलिटियन मजिस्ट्रेट द्वारा दोषी करार देकर 1 जुलाई को 5 महीने के कारावास तथा 10 लाख रुपए की  मुआवजा राशि- जुर्माना भरने की सजा सुनाई गई।

    यह सर्वविदित है कि मेधा पाटकर और नर्मदा बचाओ आंदोलन आदिवासीयों, किसानों, मजदूरों आदि सभी अन्यायग्रस्तों - विस्थापितों के साथ संघर्ष और निर्माण के कार्य में सक्रिय रहा है। विकास की अवधारणा विनाश, विषमतावादी नही, समता, न्याय और निरंतरता के मूल्य मानकर हो, ताकि 'त्याग' के नाम पर प्रकृति निर्भर और श्रमिक परिवारों को अत्याचार भुगतना न पड़े, यही उनकी मान्यता रही है। आज भारत और दुनिया जो जलवायु परिवर्तन भुगत रही है और देश में गत 76 वर्षों से विस्थापितों का सम्पूर्ण पुनर्वास नहीं किया गया है, तो क्या विकास संबंधी सवाल उठाना और संवाद करना न्यायसंगत नहीं है

     अहिंसा और सत्य के आधार पर चलते नर्मदा घाटी के कार्य को विकास विरोधी मानना क्या गलत नही है

     ऐसा लगता है कि मेधा पाटकर जी पर झूठे आरोप लगाकर पहले वी के सक्सेना जी खादी ग्रामोद्योग के अध्यक्ष बने बाद में दिल्ली के उप राज्यपाल बने।

 38 वर्षों से मेधा पाटकर ने नर्मदा घाटी में ही नही, देश के विभिन्न इलाकों के श्रमिकों, किसानों, मजदूरों, शहरी गरीबों और जल-जंगल-जमीन पर जीने वाले आदिवासियों के साथ कार्य किया है। आज भी नर्मदा घाटी में हजारों परिवारों के संपूर्ण पुनर्वास हेतु आंदोलन जारी है।

   इस परिपेक्ष में उन्हें सत्ता का इस्तेमाल कर झूठे आरोपों में सजा देना, व्यक्तिगत तौर पर प्रताड़ित करना, जनतंत्रसंविधानिक मूल्यों के खिलाफ होने के साथ-साथ अन्यायपूर्ण एवं गैरकानूनी है ।

  आपसे सविनय अनुरोध है कि आप इस मामले में त्वरित हस्तक्षेप कर मेधा पाटकर की सजा रद्द करने हेतु शासन को निर्देशित करें।

भवदीय,

अफ़लातून,

संगठन मंत्री,

समाजवादी जन परिषद

 

पानी से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलन –पानी पत्रक        

पानी पत्रक (156-04 जुलाई  2024) जलधारा अभियान221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्रशंकर-

7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com



 

 


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