सरकारी दावे और हकीकत
भूमिका:
23 जुलाई 2024
को लोक सभा
चुनाव के बाद संसद के बजट सत्र में केंद्रीय बजट पेश करते हुए वित मंत्री निर्मला
सीतारमण ने बिहार के
महत्वाकांक्षी और बहुप्रतीक्षीत कोसी-मेची नदी जोड़
परियोजना (Kosi-Mechi Intra River Link Project) समेत कई अन्य
परियोजनाओं के लिये बजट में 11,500 करोड़ रुपयेकी घोषणा की। बजट भाषण के
दौरान निर्मला सीतारमण ने कहा कि बिहार हमेशा से बाढ़ का दंश झेलता रहा है और इससे
मुक्ति दिलाने के लिये केंद्र सरकार आर्थिक रूप से बिहार की मदद करने के लिये
प्रतिबद्ध है|
1नंबर कोसी –मेची नदियों के जोड़ने के
संभावित लिंक को दर्शाता है
इसके पूर्व
जदयू संसदीय दल के नेता व सुपौल के सांसद
दिलेश्वर कामत ने प्रधानमंत्री
को पत्र भेजकर कोसी-मेची नदी जोड़
परियोजना के स्वीकृत एवं फंडिंग प्रदान करने की मांग की थी। पत्र में सांसद ने कहा
था कि बिहार के सीमावर्ती क्षेत्र में कोसी में प्रत्येक वर्ष आने वाली बाढ़ के
कारण जान-माल का भारी
नुकसान होता है। साथ ही पानी घटने के बाद गंभीर संक्रामकबीमारियाँ तेजी से फैलती हैं। लिहाजा राष्ट्रीय परिपेक्ष योजना अंतर्गत राष्ट्रीय
जल विकास अभिकरण के तहत हिमालय घटक के अंतर्गत 14 नदियों के
परस्पर जोड़ हेतु पहचान की गई है जिसमें नदियों के इंटर लिंकिंग परियोजनाओं में से
एक कोसी मेची लिंक का पीएफआर पूर्ण कर लिया गया है।
इसके बाद
बिहार में अखबारों और नेताओं के बयानों की बाढ़ आ गई कि इस परियोजना से कोशी नदी की बाढ़ की समस्या
खत्म हो जाएगी| दावा ये भी
किया जाने लगा कि सीमांचल में भी बाढ़ कम होगी और ऊपर से 2 लाख 15
हजार
हेक्टेयर क्षेत्रफल में सिंचाई होगी|
इस परियोजना
को कोशी अंचल में राज्य के ऊर्जा मंत्री की सफलता के रूप में देखा जा रहा है| कोशी क्षेत्र में चुनाव प्रचार के दौरान माननीय
मंत्री ने अनेक जगह कोशी के लोगों से
कहा भी था कि कोशी का पानी मेची मे ले जाकर कोशी की बाढ़ की
समस्या का स्थाई समाधान किया जाने वाला है|
राज्य के
पूर्व जल संसाधन मंत्री और वर्तमान जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा
लगातार इसके पैरोकार रहे है|
इस संदर्भ
में हमनें इस परियोजना से जुड़े दस्तावेजों का अध्ययन किया और क्षेत्र में जाकर
इसकी व्यावहारिकता और उपयोगिता पर लोगों से बात की। इस प्रयास से इस परियोजना पर
कई सवाल उठते हैं। इस आधार पत्र में इन्ही सवालों पर चर्चा है।
क्या है कोसी-मेची नदी जोड़ परियोजना?
कोसी तिब्बत (चीन) से निकलने
वाली एक अंतर्राष्ट्रीय नदी है, जो नेपाल से
गुज़रते हुए उत्तरी बिहार के मैदानी इलाकों के निचले हिस्से में बहती है। सरकारी
दस्तावेजों और आम जनमानस में कोसी नदी को “बिहार का शोक” कहा जाता है, क्योंकि हर
साल इस नदी की वजह से आने वाली बाढ़ से लाखों लोग प्रभावित होते हैं। सैलाब से
बिहार में सैकड़ों जानें जाती है और हज़ारों घर तबाह होते हैं। वहीं मेची नदी
नेपाल से निकलकर भारत-नेपाल की सीमा
बनाते हुए किशनगंज जिले में महानंदा नदी में मिलती है|
कोसी-मेची नदी जोड़ परियोजना के तहत कोसी नदी को नहर के ज़रिये महानंदा की सहायक नदी
मेची से जोड़ा जायेगा। परियोजना के डीपीआर के मुताबिक ख़रीफ़ की फसल के दौरान इस
प्रोजेक्ट से सीमांचल के चारों ज़िले –
पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज और
अररिया के 2 लाख 15 हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकेगी, जिससे पैदावार में इज़ाफ़ होगा।
कोसी और मेची
नदियों को एक नहर के माध्यम से जोड़ा जाएगा। कोसी-मेची लिंक नहर भारत-नेपाल सीमा के क़रीब मौजूदा हनुमान नगर बैराज के
बाएं हेड रेगुलेटर से निकलेगी। कोसी-मेची लिंक
नहर की कुल लंबाई 117.50 किमी है।
इसमें 41.3 किलोमीटर
लंबा पूर्वी कोसी मुख्य नहर भी शामिल है, जो पहले से
ही निर्मित है। इस हिसाब से मौजूदा प्रोजेक्ट की लंबाई 76.2 किलोमीटर है।
इसमें 9 नहर साइफन, 14 साइफन एक्वाडक्ट, 42 सड़क पुल,
9 पाइप कल्वर्ट,
28 हेड रेगुलेटर और 9 क्रॉस रेगुलेटर का निर्माण होगा।
इस तरह देखें
तो इस परियोजना को लेकर जो सरकारी दावे किए जा रहे है निम्न तीन तरह के है:
-
पहला दावा कोशी की विनाशक बाढ़ से मुक्ति मिलेगी
-
दूसरा सीमांचल में लाखों हेक्टेयर भूमि को सिंचाई
मिलेगी, और
-
तीसरा दावा भी कुछ मीडिया में या लोगों की चर्चा मे
मिल जाएगा कि सीमांचल क्षेत्र में भी बाढ़ से मुक्ति मिल सकती है
कोशी-मेची नदी जोड़ परियोजनाकी हकीकत
कोशी-मेची नदी जोड़ परियोजना की हकीकत जानने के लिए हम
लोगों ने जल शक्ति मंत्रालय के तहत नेशनल वाटर डवलपमेंट
एजेंसी (NWDA) (जो इसका
डीपीआर बनाई है), उसके
वेबसाइट से इस परियोजना का डीपीआर का अध्ययन किया और इसे लेकर प्रस्तावित
क्षेत्र में कुछ स्थानों पर गएजहां से कोशी पूर्वी मुख्य नहर से नहर का निर्माण
शुरू होगा और जहां नहर जाकर समाप्त होगा|
वहाँ कार्य
कर रहे सामाजिक-राजनीतिक
कर्मियों, लोगों और कुछ पत्रकारों से चर्चा की| कोशी और कोशी की नहर प्रणाली के दस्तावेजों को पुनः
अवलोकन किया |इसके आधार पर
इस परियोजना के संबंध में जो आरंभिक हकीकत पता चल पाया है उसे नीचे दिया जा रहा है|
1. कोशी-मेची नदी जोड़ परियोजना से कोशी में बाढ़ खत्म होने
का दावा झूठा:
इस परियोजना
के डीपीआर के चेक लिस्ट के कटेगरी में लिखा है कि यह सिचाई परियोजना है या
बहूद्देशीय परियोजना है? उसका उत्तर
है कि यह सिचाई परियोजना है| इस परियोजना
के उद्देश्य में स्पष्ट रूप से इसे सिंचाई परियोजना का
उल्लेख किया गया है|
इस परियोजना
के डीपीआर के प्रथम चैप्टर के टेबल 1.1
में देखा
जहां 0.0 RD पर लिखा है कि कोशी पूर्वी मुख्य नहर में वर्तमान
में 15000 क्यूसेक या 425 क्यूमेक पानी निकलता है। उसे रिमाडलिंग करते हुए 20247 क्यूसेक या 573 क्यूमेक किया जाएगा| इससे साफ है कि जब यह नदी जोड़ परियोजना पूरी तरह
कार्य करने लगेगी तो कोशी नदी से नहर में 5247 क्यूसेक या 148 क्यूमेक अतिरिक्त पानी का ही निस्तारण या निकास
होगा| भीम नगर बैराज के पूर्वी नहर से पानी निकलने के लिए
जो गेट बने है उसमें कोई बदलाव नहीं होगा|
अर्थात कोई
नया गेट नहीं लगेगा न ही उस गेट का आकार प्रकार ही बदलेगा|
कोशी नदी में
इस साल (2024) 7 जुलाई को 3 लाख 96 हजार
क्यूसेक
से अधिक पानी आया था और 10
जुलाई को भी 3 लाख क्यूसेक था। उस समय कोशी पूर्वी और पश्चिमी नहर
के गेट बंद थे| यदि इस
परियोजना में बताया गया पूरा पानी 5247
क्यूसेक निकल
ही गया तो कोशी कि बाढ़ में कोई खास अंतर नहीं आएगा|
इस तरह बाढ़ नियंत्रण की बात सत्य नहीं है| सिर्फ प्रचार व छलावा है| कोशी तटबंध के भीतर के लोगों को पुनः भ्रम में डालकर असल बाढ़ के समाधान और उनके जीवन के मूलभूत सवालों से उनका ध्यान भटकाया जा रहा है|
2. कोशी मेची नदी जोड़ परियोजना से महानंदा
बेसिन में 2.15 लाख हे0 सिंचाई के दावों पर उठते सवाल:
पूर्वी कोसी
मुख्य नहर के मेची नदी तक विस्तार का उद्देश्य मुख्य रूप से ख़रीफ़ सीज़न के दौरान
“पानी की कमी” वाले महानंदा बेसिन क्षेत्र यानी कि सीमांचल के
ज़िलों – अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और
कटिहार को सिंचाई लाभ प्रदान करना है। सरकार की मानें तो कोसी-मेची लिंक नहर से महानंदा बेसिन के कुल क्षेत्र 4.45 लाख हेक्टेयर में से 2.15 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई हो सकेगी।
यह सिचाई सिर्फ पानी की उपलब्धता के आधार पर मात्र खरीफ की फसल के समय होगी| नेपाल में कोशी पर हाई डैम बनने के बाद रबी फसल के समय सिचाई दी जाएगी|डीपीआर में लिखा है कि महानंदा नदी बेसिन में 2050 mm कुल वर्षा का मानसून में 80% (1640 mm) वर्षा हो जाती है| उसी रिपोर्ट में लिखा है कि इस क्षेत्र में मानसून में औसत वर्षा के दिनों कि संख्या 55 दिन है या यूं कहे तो वर्षा और बाढ़ के दिनों में यह परियोजना सिचाई देगी|
इस नदी जोड़
परियोजना के तहत निकलने वाली नई नहर 13 छोटी नदियों
और अन्य जल स्रोतों को पार करके जाएगी|
मानसून में
इस क्षेत्र में बाढ़ आती रहती है और इन नदियों के बाढ़ से निजात की बात वहाँ के लोग
उठाते रहे है| जहां-जहां हम लोग गए थे वहाँ वहाँ खरीफ की खेती कर रहे
किसानों से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि हमारे यहाँ धानकी फसल में एक दो बार
ही औसत पटवन की जरूरत पड़ती है| ग्राउन्ड
वाटर का लेवल 20 फिट से 40 फीट तक मिल जाता है| इस समय हमलोग बाढ़ से भी परेशान होते है|
हम लोगों को रबी
की फसल के समय गेंहू और मक्के की उपज के लिए सिंचाईकी जरूरत होती है|
नहर परियोजना
शुरू करते समय सिंचाई के दावों की पूर्व में हुए अध्ययन भी जरूरी लगा इसलिए कोशी
पूर्वी मुख्य नहर के सिंचाई का आकडा देखा गया|
कोशी पूर्वी
नहर, जिसमें से
यह नहर निकल रही है, परियोजना
शुरू होने के समय 1953 में सिचाई के
लिए 7 लाख 12 हजार का लक्ष्य रखा गया था। जब वह परियोजना इतनी
सिचाई नहीं दे पाई तो 1973 में राम
नारायण मण्डल समिति का गठन हुए उसने पाया कि इस नहर से 3 लाख 74
हजार
हेक्टेयर से अधिक कि सिचाई नहीं मिल पाएगी|
इस तरह यह 3 लाख 38
हजार
हेक्टेयर की सिचाई का लक्ष्य घटा दिया गया|
घटा
हुआ लक्ष्य भी यह परियोजना पूरा शायद कभी नहीं कर पाई|परियोजना के डीपीआर में भी उल्लेख है कि इस
नहर में सिल्ट गाद भरा है|
कुछ सवाल
उठना लाजमी है।
-
पहला कि जब महानंदा बेसिन में बाढ़ और वर्षा
हो रही होगी उस समय पानी देने कि कितनी आवश्यकता है ?
-
दूसरा,
कोशी पूर्वी नहर के सिचाई के अनुभव
बताते है कि इसके लक्ष्य को ही घटाकर 52.53%
कर दिया गया तो उसी मुख्य नहर से
निकलकर मेची नदी तक जाने वाली इस नई नहर के वर्तमान लक्ष्य भी पूरा हो सकेंगे?
-
तीसरा,
नेपाल में हाई डैम बनाने कि बात तो आजादी
के पहले से चलती है तो यह मृग मिरिचिका का भरोसा किसानों को दिया
जा रहा है?
-
चौथा,
क्या सिल्ट जमा होने और मानसून में भी
कम वर्षा या सूखा होने पर कोशी पूर्वी मुख्य नहर के पुराने कमांड एरिया और नदी
जोड़के नए कमांड एरिया के किसानों के बीच आपस
में तकरार शुरू नहीं होगी?
3. 13 नेपाल से आने वाली नदियों के बीच के क्षेत्र में जल
निकासी और फ्लस फ़्लड की प्रबल होती आशंका
कोसी-मेची लिंक नहर पूर्वी कोसी मुख्य नहर से अररिया
जिले के फारबिसगंज के पास से निकल कर किशनगंज के मेची नदी के बीच जाने
के क्रम में 13 छोटी नदियों
को पार करेगी|
ये,नदिया,परमान,टेहरी, लोहन्द्रा, भलुआ, बकरा, घागी, पहाड़ा, नोना, रतुआ/गेरुआ, कनकई,
सराह, बूढ़ी कंकई नदी है। छोटी-छोटी दिखने वाली नदियां वर्षा के समय नेपाल और
पहाड़ी क्षेत्र नजदीक होने के कारण वेग में भारी मात्रा में पानी लाती
है और उन पानी का फैलाव आसपास होकर वर्षा के कुछ समय बाद निकल जाता है। यह लिंक
परियोजना इन नदियों कि धारा के लम्बवत बनने से उनका स्वभाविक जल निकासी का मार्ग
अवरुद्ध होगा और आसपास पानी जमा होने का खतरा रहेगा| फ्लस फ़्लड के बढ़ने से नहरों के टूटने कि आशंका
रहेगी| इसके डीपीआर के चेक लिस्ट में यह भी उल्लेखित है कि
क्या समग्र नदी बेसिन के मास्टर प्लान को बनाकर चर्चा हुई है तो उसके उत्तर में
नहीं लिखा है| इसलिए आशंका
और प्रबल हो जाती है कि यह बाढ़ कम होने के बजाय बाढ़ का क्षेत्रफल बढ़ाएगी।
8
-बैकल्पिक प्रयासों कि चर्चा नहीं होना :
इस परियोजना
के डीपीआर के चेक लिस्ट में यह भी उल्लेखित है कि क्या बैकल्पिक परियोजना का कोई
प्रस्ताव भी बना था जिसके गुण दोषों पर चर्चा कि गई हो? इसके उत्तर में नहीं लिखा है|
कोशी कि बाढ़
नियंत्रण के लिए यदि बैकल्पिक प्रयासों कि चर्चा होती तो कोशी की छाड़न धाराओं को
पुनरुद्धार करते हुए उसकी क्षमता बढ़ाकर कोशी के कुछ पानी को उसमें ले जाने के बाढ़ की
समस्या में कमी आती। उसी प्रकार कोशी मेची नदी जोड़ परियोजना के तहत जिन 13 नदीयों को पार करना है, उसमे अधिकांश नदियों मे वर्ष भर पानी रहता
है। उनके पानी का चेक डैम और लिफ्ट एरिगेसन के माध्यम से बहुत कम लागत मे
सिचाई उपलब्ध कराने की तरफ बढ़ा जा सकता है|
इससे रबी के
सीजन में भी सिचाई मिलने की संभावना बढ़ जाएगी|
इन विकेंद्रत परियोजनाओं से बाढ़ नियंत्रण की दिशा में कार्य कर सकती थी|
निष्कर्ष:
कोशी मेची
नदी जोड़ परियोजना एक गैरजरूरी, लोगों को भ्रमित करने वाली परियोजना है। इससे न
कोशी की बाढ़ कम होगी और नहीं सिचाई के समय महानंदा नदी बेसिन में सिचाई
मिलेगी। उलटे बाढ़ और मानसून मे पानी देने की बात और नहर की संरचना जल निकासी के
मार्ग में अवरोध खड़ा करेंगी जिसके दूरगामी प्रभाव पड़ेंगे| बैकल्पिक उपायों की पड़ताल और पूरे कोशी महानंदा नदी
के बेसिन का समग्रता में मास्टर प्लान बनाना, कोशी पूर्वी मुख्य नहर के कमांड क्षेत्र की नहरों की
उराही करना आवश्यक है|
[महेंद्र यादव (संस्थापक, कोशी नवनिर्माण मंच व नदी घाटी मंच)एवं
राहुल यादुका (शोधार्थी व कोशी नदी घाटी जनआयोग)दुआरा तैयार आलेख (अगस्त 2024)]
(सन्दर्भ -https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=2036078
https://nwda.gov.in/content/innerpage/kosi-mechi-link-project.php)
पानी से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलन –पानी पत्रक (164-11 अगस्त 2024)जलधारा अभियान, 221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्रशंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com
We can't generate a river, but all existing rivers cannot meet the needs of India's 1.4 billion population. The solution lies in limiting the population's water needs in urban areas. I believe that connecting rivers is not a solution.
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