हसदेव अरण्य में पेड़ों की फिर से कटाई
छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में जैव विविधता से भरपूर हसदेव अरंड क्षेत्र में परसा ईस्ट और केते बासेन (PEKB) चरण-दो- कोयला खदान के लिए पेड़ों की कटाई शुक्रवार, 30 /8/24, को स्थानीय ग्रामीणों के विरोध के बीच फिर से शुरू हो गई। सरकार और प्रसाशन ने कानून और व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर इलाके में बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों को तैनात किया । याद दिला दें कि पीईकेबी खदान राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (RRVUNL) को आवंटित है, तथा खान विकासकर्ता और संचालक के रूप में खदान चलाने के लिए अदानी समूह की जिम्मेदारी है और इसके लिये इन दोनों संस्थाओं द्वारा16/7/2008 में ,एक संयुक्त उद्यम का गठन किया गया, जिसमे कि अदानी समूह की हिस्सेदारी 74 परसेंट थी और आरआरवीयूएनएल की 26 परसेंट. भारत में इस तरह का पहला अनुबंध था।
राज्य वन विभाग की ओर से
शुक्रवार (30 अगस्त 2024) को जारी एक बयान में
कहा गया है कि केंद्रीय मंत्रालय ने 2022 में पीईकेकेबी चरण-दो- खदान (सरगुजा) के लिए 1,136 हेक्टेयर वन भूमि की अनुमति दी है । राजस्थान
राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को इस वर्ष 21 अगस्त 2024 को अतिरिक्त प्रधान मुख्य
वन संरक्षक (उत्पादन) छत्तीसगढ़ द्वारा और अगले दिन 22 अगस्त 2024 को मुख्य वन संरक्षक, सरगुजा वनवृत्त द्वारा परियोजना के 10 वें वर्ष में 74.130
हेक्टेयर वन भूमि में
खड़े 10,944 पेड़ों की कटाई और परिवहन
की अनुमति दी गई है।
पेंड्रामार घाटबर्रा में 10944 पेड़ों की कटाई का काम शुरू होने के साथ ही विरोध भी तेज हो गया है। ग्रामीणों ने विरोध स्वरूप जंगल के चारों ओर पहरा देते हुए प्रदर्शन शुरू कर दिया । पहले से ही भारी संख्या में तैनात पुलिस बल ने गुरुवार (29/8/24) रात से ही धरपकड़ शुरू कर दी और 48 घंटों में ही डेढ़ सौ से अधिक ग्रामीणों को हिरासत में ले, लखनपुर, दरिमा,उदयपुर एवं सीमावर्ती थानों के लिए भेजा गया है। हालांकि पुलिस ने इस तरह के आरोप से इनकार किया
इसके बाद भी विरोध प्रदर्शन कर रहे ग्रामीण
प्रदर्शनकारी पीछे नहीं हटे ।जंगलों के भीतर पेंड कटाई का नारेबाजी कर विरोध जताते
रहे। बंदूक की नोंक, पुलिस के डंडे के बल पर की जा
रही पेंड कटाई से लेकर पुलिस की कार्रवाई की वीडियो सोशल मीडिया में वायरल होते
रहे,जिसने विरोध प्रदर्शन को और हवा दी। ग्रामीण लगातार सोशल मीडिया के माध्यम से
यह संदेश देते रहे कि वे इस दमनात्मक कार्रवाई से नहीं डरेंगे, नहीं झुकेंगे, अंतिम सांस तक जल, जंगल, जमीन को बचाने की लड़ाई लड़ते
रहेंगे.
इसी कड़ी में मुख्यमंत्री विष्णु
देव साय के नाम कोरबा जिले के पुलिस चौकी मोरगा ( थाना बांगो) के प्रभारी अधिकारी
को एक ज्ञापन भी सौंपा गया है। बिलासपुर में भी जिला प्रमुख को इस सम्बन्ध में ज्ञापन दिया गया . साथ ही बिलासपुर और रायपुर में कुछ जागरूक लोगों नें विरोध में प्रदेर्शन भी किया .
सम्पूर्ण हसदेव अरण्य, संविधान
की, पांचवी अनुसूची का क्षेत्र है जहाँ पर ग्रामसभा के निर्णय सर्वोपरि हैं। हसदेव
की ग्रामसभाओं ने कोयला खनन परियोजना का सतत विरोध किया है। परसा कोल ब्लॉक से
प्रभावित ग्रामसभाओं के लगातार विरोध के बावजूद कम्पनी द्वारा कूटरचित फर्जी
ग्रामसभा सहमति के दस्तावेज बना कर वन भूमि डायवर्सन की स्वीकृति हासिल की गई।
स्थानीय समुदाय द्वारा फर्जी ग्रामसभा की जांच करने स्थानीय प्रशासन से लेकर
मुख्यमंत्री और राज्यपाल तक को गुहार लगाई गई। राज्यपाल ने फर्जी प्रस्ताव की जाँच
करने और सभी कार्यवाहियों को स्थगित रखने के लिए मुख्य सचिव को पत्र लिखा लेकिन आज
तक जांच नहीं हुई। मौजूदा परसा ईस्ट केते बासन (PEKB) खदान के फेस
।। में खनन को आगे बढ़ाने स्थानीय प्रशासन और पुलिस की मौजूदगी में दबावपूर्वक
भूमि अधिग्रहण की ग्रामसभा की गई जिसमे लोगों के विरोध को दरकिनार कर ग्राम सभा
कार्यवाही पंजी में खाली जगह छोड़कर रखी गई और बाद में उसमे सहमति का प्रस्ताव
लिखा गया।
सालों से लोग इस फर्जी ग्रामसभा के जांच की मांग कर रहे थे।10 सितम्बर 2024 को अंततः अनुसूचित आयोग के समक्ष सुनवाई और दस्तावेजों के जांच और पंचायत सचिवों के बयान हुए , जिसमें उन्होंने स्पष्ट कहा कि उनसे दबाव पूर्वक फर्जी प्रस्ताव लिखवाए गए है
परसा खदान प्रभावित साल्ही ग्राम पंचायत के सचिव छत्रपाल सिंह टेकाम ने आयोग के समक्ष सुनवाई में यह स्वीकार किया कि उन पर दबाव बना कर साल्ही और हरिहरपुर की ग्रामसभा जो 24/01/2018 और 27/01/2018 को आयोजित की गई थी उसमें 22 वां क्रमांक प्रस्ताव लिखवाया गया वो भी ग्रामसभा सम्पन्न हो जाने के बाद। यह प्रस्ताव ही वह फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव है जिसमे परसा खदान को सहमति देने की बात लिखी है, जिसका प्रभावित गांव के लोग लगातार जांच की मांग कर रहे थे। साथ ही उन्होंने बताया कि ग्रामसभा सूचना की तारीख से लेकर 15 दिन तक उन्हें बंधक बना कर तहसीलदार के कार्यालय में रखा गया उन्हें घर जाने नहीं दिया गया था। ग्रामसभा की उपस्थिति पंजी तत्कालीन SDM ने अपने कब्जे में रखा था.
सुप्रीम कोर्ट
में हसदेव अरण्य के जुड़े दो मामले लंबित हैं –
इसमें एक मामला
पर्सा ईस्ट केते बासन खदान की स्वीक्रति को लेकर है और दूसरा मामला घाटबर्रा में सामुदायिक वन अधिकार
को निरस्त करने से जुड़ा है . शुक्रवार ,30 अगस्त 2024 को अधिवक्ता प्रशांत भूषण और चन्द्र
उदय सिंह ने मुख्य न्याय धीश के समक्ष इन
मामलों को उठाया.
हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति और 'छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन' के संयोजक,'गोल्डमैन पर्यावरण
पुरस्कार' से सम्मानित अलोक शुक्ला कुछ प्रश्न करते हैं –
# हसदेव में यह कहते हुए
खनन की अनुमतियां दी जा रही हैं कि राजस्थान की बिजली के लिए कोयला चाहिए, जबकि कोई यह नहीं बता रहा कि कितना कोयला चाहिए और अभी तक कितना
निकाला जा चूका है . जबकि सच्चाई यह है कि अदानी के पावर प्लांटो को हसदेव के
मुफ्त के कोयले से चलाया जा रहा है। क्यों कि खदान से रिजेक्ट के नाम पर 30 प्रतिशत कोयला मुफ्त में मिलता है ।
# पिछले 10 वर्षो में छत्तीसगढ़ में किसी सरकार
की हिम्मत यह पूछने की नही हुई कि PEKB का रिजेक्ट के
नाम का 50 मिलियन टन कोयला
कहा गया।
# जिस कंपनी पर कोयला चोरी की FIR होनी चाहिए थी उसे 5 वर्ष पहले ही दूसरे चरण की खनन की
अनुमति दे दी गई। 50 मिलियन टन का राजस्व भी
राज्य सरकार को नही मिला।
# पिछले दिनों मुख्यमंत्री ने कहा था की कुछ
गलतफहमी हुई है हमने कोई सहमति नही दी है । फिर ये कटाई का आदेश कहां से जारी हुआ
है?
खबर है कि 13 सितम्बर 2024 तक, बड़ी तादात में पुलिस की मोजूदगी के चलते, भारी विरोध के वाबजूद, , 11 हज़ार पेड़ काट दिए गये. कार्यकर्ताओं के मुताबिक,हसदेव अरंड क्षेत्र में, अब तक खनन के लिए कुल मिला कर, एक लाख से ज्यादा पेड़ काटे जा चुके हैं. परसा ईस्ट और केते बासेन (PEKB) चरण-दो- में अब तक तीन चरणों के तहत लगभग 30,000 पेड़ काटे जा चुके हैं. इससे 206 हेक्टेयर जंगल साफ हो गया है
आलोक शुक्ला बताते हैं कि छत्तीसगढ में जगह जगह होर्डिंग लगाकर हसदेव के समृद्ध जंगल के विनाश को छुपाने के लिए राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (RRVUNL) और कम्पनी पौधारोपण के दावे किये जा रहे हैं महत्वपूर्ण है कि होर्डिंग और विज्ञापन में दी गई तस्वीर तक इंटरनेट से लेकर डाली गई है । उनका कहना है कि कम से कम तस्वीर तो लगाई गई झाड़ियों की छाप देते।
जंगल बचाने के लिए संघर्षरत कार्यकर्ता पूछते हैं “ कैसी अचरज की बात है कि छत्तीसगढ़ के वन विभाग की वेबसाइट खोलते ही सबसे पहले एक बैनर दिखाई देता है, जिसपर लिखा है- "एक पेड़ मां के नाम." इस बैनर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और वन मंत्री केदार कश्यप के मुस्कुराते हुए चेहरे भी नजर आते हैं. जबकि असलियत में जंगल के जंगल, पूरी राज्य सुरक्षा में, छल कपट के साथ , कम्पिनियों से कटवाय जा रहे हैं “.
(सन्दर्भ –सीजी खबर .कॉम ,एक्सप्रेस मीडिया सर्विस ,देशबंधु ,वेबदुनिया)
पानी से संबंधित सूचनाओ,समाचारों और सन्दर्भों का संकलन –पानी पत्रक (173-13 सितम्बर 2024)जलधारा अभियान, 221,पत्रकार कॉलोनी,जयपुर-राजस्थान,302020,संपर्क-उपेन्द्र शंकर-7597088300.मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com
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